आगे बढ़ने का क्या यही रास्ता है?
– अरुण कुमार हाल ही में एक इंटरव्यू में, राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेन मिश्रा ने कहा, ”हमारे युवा इस बात को […]
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सिविल सेवा परीक्षा परिणामों के घोषित हो जाने के दो दिन बाद की घटना है। देश की प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग के सबसे बड़े केंद्र, […]
– जवरीमल्ल पारख एनसीइआरटी और स्कूल की पुस्तकों में बदलाव पहली बार नहीं किया गया है। जब–जब भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई है, चाहे […]
लगता है उच्च न्यायालय ने गुजरात सरकार को अंतत: ऐसा बहाना दे दिया है जिससे वह छह माह पहले मोरबी के ‘झूलतो पुल’ उर्फ झूलता […]
औसत आंकड़ों के साथ दिक्कत यह है कि भारत में विभिन्न क्षेत्रों और तबकों के बीच की आय में अत्यधिक विषमता को यह छुपा लेता है। इसी तरह, एक ही काम के बदले पुरुषों और महिलाओं तथा युवाओं और वृद्धों द्वारा अर्जित मजदूरी में भी अंतर होता है। असंगठित क्षेत्र का एक श्रमिक एक लाख रुपए तक कमा सकता है, जबकि एक कंपनी का मालिक 100 करोड़ रुपए से ज्यादा कमा सकता है।
अभी बहस जारी ही थी और यह मसला बहसतलब था कि ऐसी रचनाओं को आधुनिक युग की संवेदनाओं के मददेनजर किस तरह देखा जाए। क्या ऐसी रचनाओं का संपादन किया जाए या उन्हें बिल्कुल त्याग दिया जाए, उस पृष्ठभूमि में देश के अग्रणी केंद्रीय विश्वविद्यालय में शुमार काशी हिंदू विश्वविद्यालय का धर्मशास्त्र मीमांसा विभाग ऐसा प्रस्ताव लेकर उपस्थित हुआ, जिससे इस विवाद के थमने के बजाय और बढऩे के ही आसार लग रहे हैं।
– कृष्ण प्रताप सिंह मुझे नहीं मालूम कि आप अगली बार अयोध्या आयेंगे तो इस ध्वंस को किस निगाह से देखेंगे? उस निगाह से, जिससे […]
– यूसुफ किरमानी नरेंद्र मोदी, संघ और भाजपा के लिए कन्याकुमारी से लेकर श्रीनगर तक भारत जोड़ो यात्रा एक चुभन बन गई। क्योंकि 7 […]
आखिर ऐसा क्यों है कि वामपंथी ऐसे दौर में, जब देश में बरोजगारी, किसानों में बढ़ता असंतोष, मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग के लिए जीना मुश्किल […]
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