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प्रतीक बनाम राजसत्ता : प्रतीकों का अभिप्राय कला-कर्म या ललित कलाओं से

November 25, 2022 admin 0
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– गोपाल नायडू   हर काल में राजसत्ता प्रतीकों को लेकर खेल खेलती है और अपने हित में, अपनी सुविधा से उनका इस्तेमाल करती है। […]

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निरालाः पुनर्विचार और नए नतीजे

November 25, 2022 admin 0
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रामविलास शर्मा की प्रतिष्ठा का आधार उनकी पुस्तक निराला की साहित्य साधना (भाग दो )है। यहां तक कि अक्सर निराला को स्थापित करने का श्रेय भी इस किताब को मिल जाता है। यह पहली बार 1972 में प्रकाशित हुई थी। इस तरह इस के प्रकाशन के 50वें साल में इस पर दुबारा नजर डालना अनुपयुक्त न होगा। प्रस्तुत है तीन अंकों में प्रकाशित होने वाले इस लेख की दूसरी किस्त।

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अक्षय स्मृति की रचनाकार

November 25, 2022 admin 0
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इस वर्ष की नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रांसीसी लेखक एनी अर्नो में ऐसी कौनसी खासियत या खूबी है कि लोग उनकी किताबों के दीवाने बन जाते हैं और फ्रांस में उन्हें बेशुमार लोकप्रियता हासिल है। क्या किसी का निजी जीवन दूसरे व्यक्ति के लिए या एक लेखक का जीवन गाथा पाठक में कोई उत्सुकता जगा सकती है, रोमांचित या आल्हादित या उद्वेलित कर सकती है? वह निजी वृत्त के अनुभव और स्मृति को एक सार्वभौव व्यथा-कथा में तब्दील कर पाती हैं।

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फासीवाद की बढ़ती छाया

November 18, 2022 admin 0
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इतालवी और योरोपीय समाज में सतह के नीचे मौजूद फासीवादी विचारधारा के प्रभाव को रेखांकित करते हुए प्रसिद्ध इतालवी उपन्यासकार और निबंधकार अम्बर्तो इको ने लिखा था, ”उर-फासीवाद (आंतरिक फासीवाद) लगातार हमारे आस पास है, कई बार तो बिल्कुल ही सादे कपड़ों में। यह हमारे लिए बहुत ही सामान्य बात होगी कि कोई व्यक्ति इस परिदृश्य में हमारे सामने आए और कहे, मैं आउशवित्स को फिर से खोलना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि इटली के चौराहों पर काली कमीज वाले लोग परेड करें।”

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राजनीति, धर्म और प्रकृति

November 16, 2022 admin 0
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भारतीय राजनीति जो रुख अपना रही है वह परेशान करने वाला तो है, पर उसके वास्तव में परिणाम क्या हो सकते हैं, ठीक-ठीक अनुमान थोड़ा […]

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आप्रवासियों के देश में भारतवासी

November 16, 2022 admin 0
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– रामशरण जोशी राष्ट्रपति बाइडेन ने स्पष्ट शब्दों में स्वीकार किया है कि अमेरिका आप्रवासियों का राष्ट्र है। इसके मायने हैं कि अमेरिका श्वेतों का […]

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पूजा ही जब अपराध घोषित हो

November 12, 2022 admin 0
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– सुभाष गाताडे   पूजा के अपने अधिकार से वंचित करने के मामले में, इबादत को ही जुर्म साबित करने में ईरान अकेला मुल्क नहीं […]

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सांस्कृतिक हीनता बोध का शिकार एक समाज

November 2, 2022 admin 0
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इधर, उत्तराखंड में जो हो रहा है, उसे कोई अपवाद नहीं माना जाना चाहिए। धर्म, सांप्रदायिकता के सहारे कोई देश नहीं चल सकता। कम-से-कम उत्तराखंड से यही संकेत आ रहा है जो खासा स्पष्ट है।