लेख
हमारे मुल्क ने अपनी नैतिक दिशा खो दी है’
हमारे वक्त की सबसे हैरान कर देने वाली उलझन यह है कि ऐसा लगता है कि सारी दुनिया में लोग खुद को और भी कमजोर और वंचित बनाने के लिए वोट दे रहे हैं। वे मिली हुई सूचनाओं के आधार पर वोट डालते हैं। वह सूचना क्या है और उस पर किसका नियंत्रण है – यह आधुनिक दुनिया का मीठा जहर है। जिसका तकनीक पर कब्जा है, उसका दुनिया पर कब्जा है। पर मैं मानती हूं कि अवाम पर अंतत: कब्जा नहीं किया जा सकता है और वे कब्जे में नहीं आएंगे।
स्टेडियम से अखाड़े तक
देश के, ओलंपिक जैसी अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में, पदक जीतनेवाले सर्वश्रेष्ठ खिलाडिय़ों के साथ, आज जो हो रहा है, वह शर्मनाक है। लोकतांत्रिक व्यवस्था […]
फिलिस्तीनियों के नरसंहार में नजरिया तलाशती दुनिया
– यूसुफ किरमानी कुल मिलाकर इस युद्ध पर आपकी राय को पश्चिमी देश और उनका मीडिया नियंत्रित कर रहा है। आप में से बहुत […]
‘मनुस्मृति’ में सवर्ण स्त्री
इस लेख का उद्देश्य मुख्यत: ‘सवर्ण-स्त्रियों के व्यभिचार’ के आरोप पर मंथन करना है, न कि सवर्ण-पुरुषों, निम्नवर्णीय-स्त्रियों और पुरुषों के व्यभिचार पर। क्योंकि सवर्ण-पुरुषों का किसी भी तथाकथित उच्च या निम्नवर्णीय-स्त्रियों से व्यभिचार ब्राह्मण-विधान के अनुसार ‘व्यभिचार’ नहीं, उनका ‘विशेषाधिकार’ था।
आओ राजनैतिक भ्रमजाल छोडें!
यदि किसी पार्टी को मतदान में बहुमत हासिल होता है, तो यह माना जाता है कि उसे जनादेश हासिल है। इसीलिए, वे लोग जो चुनावी राजनीति में भाग लेते हैं, मतदान को लोकतंत्र के पर्व के तौर पर व्याख्यायित करते हैं। सिर्फ राजनीतिक दल ही नहीं, बल्कि कुछ ऐसे बुद्धिजीवी भी इस बारे में ऐसी ही मासूमियत के साथ सोचते हैं जो पूरी गंभीरता के साथ जनता के पक्ष में ही खड़े रहते हैं।
बरास्ता चंद्रमा, मानवता का भविष्य
ज्ञान-विज्ञान कोई स्थिर चीज नहीं है। ज्ञान का संबंध समाज से है और उसका विस्तार इस बात पर निर्भर करता है कि कोई समाज ज्ञान […]
‘गागर में सागर-सा पानी’
– योगेंद्र दत्त शर्मा शैलेंद्र के संदर्भ में चकित करने वाली बात यह है कि फिल्म की चाक्षुक विधा ने उनकी सर्जनात्मकता को नए आयाम […]