राजनीति, धर्म और प्रकृति
भारतीय राजनीति जो रुख अपना रही है वह परेशान करने वाला तो है, पर उसके वास्तव में परिणाम क्या हो सकते हैं, ठीक-ठीक अनुमान थोड़ा […]
भारतीय राजनीति जो रुख अपना रही है वह परेशान करने वाला तो है, पर उसके वास्तव में परिणाम क्या हो सकते हैं, ठीक-ठीक अनुमान थोड़ा […]
देश में बढ़ते दक्षिणपंथी प्रभाव और आक्रामकता ने ऐसा लगता है मानो वामपंथी या प्रगतिशील लोकतांत्रिक ताकतों के लिए अस्तित्व के संकट के साथ […]
किसी समाज, विशेषकर लोकतांत्रिक समाज, का आधार वे नैतिक मूल्य होते हैं जो अंतत: उसके विकास का आधार बनते हैं। कहने की जरूरत नहीं, अनैतिकता […]
भाषा किसी भी समाज के सांस्कृतिक ही नहीं बल्कि भौतिक विकास का भी मापदंड होती है। दूसरे शब्दों में, किसी भी भाषा का विकास और […]
कोई रूढि़वादी, यथास्थितिवादी या फिर सांप्रदायिक मान्यताओं वाला नेतृत्व किसी समाज का क्या कर सकता है, आज संभवत: इसका सबसे अच्छा उदाहरण अमेरिकी समाज है। यद्यपि संयुक्त राज्य अमेरिका में वर्तमान में रिपब्लिकन पार्टी सत्ता से बाहर है, पर वह किस तरह का नस्लवादी या यथास्थितिवादी दबाव किसी समाज पर बना सकती है, इसे अमेरिका से सीखा और समझा जा सकता है। आज यह समाज सिर्फ कालों के लिए ही चुनौतियों भरा नहीं है, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए खतरनाक है जो रंग रूप में ‘गोरा’ (योरोपीय नस्ल का) नहीं है, अपनी मान्यताओं में उदार और व्यवहार में सहिष्णु है।
मई के पहले पखवाड़े में उत्तराखंड के बड़े औद्योगिक शहर रुद्रपुर से लगे उतने ही छोटे कस्बे, दिनेशपुर में, जो मूलत: भारत विभाजन के बांग्ला […]
हिंदी में रायल्टी को लेकर चलने वाला विवाद कोई नया नहीं है। आज, उम्र के सातवें-आठवें दशक में पहुंचे लेखक, जो तब कलम चलाना सीख […]
सुल्ली डील्स और बुल्ली बाई नाम के एप्स का कांड जिस तरह से उद्घाटित हो रहा है वह अत्यंत डरावना है। इस अर्थ में नहीं […]
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