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राजनीति, धर्म और प्रकृति

November 16, 2022 admin 0
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भारतीय राजनीति जो रुख अपना रही है वह परेशान करने वाला तो है, पर उसके वास्तव में परिणाम क्या हो सकते हैं, ठीक-ठीक अनुमान थोड़ा […]

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देश और कांग्रेस की जरूरत

October 21, 2022 admin 0
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  देश में बढ़ते दक्षिणपंथी प्रभाव और आक्रामकता ने ऐसा लगता है मानो वामपंथी या प्रगतिशील लोकतांत्रिक ताकतों के लिए अस्तित्व के संकट के साथ […]

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अपराध और दंड

September 24, 2022 admin 0
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किसी समाज, विशेषकर लोकतांत्रिक समाज, का आधार वे नैतिक मूल्य होते हैं जो अंतत: उसके विकास का आधार बनते हैं। कहने की जरूरत नहीं, अनैतिकता […]

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शब्द और संदर्भ

August 8, 2022 admin 0
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भाषा किसी भी समाज के सांस्कृतिक ही नहीं बल्कि भौतिक विकास का भी मापदंड होती है। दूसरे शब्दों में, किसी भी भाषा का विकास और […]

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दो समाजों की वापसी का अंतर

July 14, 2022 admin 0
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कोई रूढि़वादी, यथास्थितिवादी या फिर सांप्रदायिक मान्यताओं वाला नेतृत्व किसी समाज का क्या कर सकता है, आज संभवत: इसका सबसे अच्छा उदाहरण अमेरिकी समाज है। यद्यपि संयुक्त राज्य अमेरिका में वर्तमान में रिपब्लिकन पार्टी सत्ता से बाहर है, पर वह किस तरह का नस्लवादी या यथास्थितिवादी दबाव किसी समाज पर बना सकती है, इसे अमेरिका से सीखा और समझा जा सकता है। आज यह समाज सिर्फ कालों के लिए ही चुनौतियों भरा नहीं है, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए खतरनाक है जो रंग रूप में ‘गोरा’ (योरोपीय नस्ल का) नहीं है, अपनी मान्यताओं में उदार और व्यवहार में सहिष्णु है।

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छोटी पत्रिकाएं बड़े लक्ष्य

June 15, 2022 admin 0
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मई के पहले पखवाड़े में उत्तराखंड के बड़े औद्योगिक शहर रुद्रपुर से लगे उतने ही छोटे कस्बे, दिनेशपुर में, जो मूलत: भारत विभाजन के बांग्ला […]

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नज़र आ लिबासे मजाज़ में

March 23, 2022 admin 0
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मान लीजिए ‘महल’ फिल्म का ‘आएगा आने वाला’ गीत अगर लता मंगेशकर की जगह नूरजहां, संध्या मुखर्जी, सुरैया, गीता दत्त, सुमन कल्याणपुर या आशा भोंसले ने गाया होता तो क्या उस गीत का महत्व कम होता?

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सांप्रदायिकताः ऑनलाइन अपराध के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक संदर्भ

February 14, 2022 admin 0
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सुल्ली डील्स और बुल्ली बाई नाम के एप्स का कांड जिस तरह से उद्घाटित हो रहा है वह अत्यंत डरावना है। इस अर्थ में नहीं […]