लेख
हॉब्सबॉम: युग का इतिहासकार
एरिक हॉब्सबॉम का जन्म सिकंदरिया में एक यहूदी परिवार में हुआ। माता-पिता का कम उम्र में ही देहांत हो जाने से उनका लालन-पालन उनके चाचा ने किया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बर्लिन और उच्च शिक्षा कैंब्रिज में हुई। इतिहास में उनका शोध 19वीं सदी के योरोप पर केंद्रित था, लेकिन उनकी दृष्टि कभी भी योरोप-केंद्रित नहीं रही। उन्होंने 19वीं सदी के योरोप को अपना शोध क्षेत्र इसलिए चुना क्योंकि यही वह जगह है जहां बहुत सारे ऐसे विकास सबसे पहले हुए जिन्होंने सदा के लिए हमारे जीवन को बदल दिया। प्रस्तुत है एरिक हॉब्सबॉम के जन्म माह (उनकी जन्म तिथि अज्ञात है) के अवसर पर समयांतर में नवंबर 2012 में प्रकाशित लेख।
‘मत चूके चौहान’
मुजफ्फरपुर, बिहार से यह समाचार मुख्यधारा के मीडिया में दो दिन बाद 27 मई को पहुंच पाया था। घटना 25 मई अपरान्ह के बाद की है। अपने प्राइम टाइम बुलेटिन में एनडीटीवी ने एक क्लिपिंग दिखलाई जिसमें मुश्किल से दो साल का एक बच्चा प्लेटफार्म पर लेटी अपनी मां के ऊपर पड़ी चादर से खेल रहा है। बच्चा इस बात से अनभिज्ञ है कि मां नहीं रही है। वैसे भी इतने छोटे बच्चे से कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वह जाने कि मौत जिंदगी के कितने समानांतर चलती है? विशेष कर गरीबों के लिए।
कर्तव्यच्युत होती राज्य सत्ता
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने गरीबों का खयाल रखने के लिए अमीरों का आह्वान किया और बंदी के दौरान प्रत्येक संपन्न परिवार से नौ गरीब परिवारों की मदद करने को कहा। यह संदेश बिलकुल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नजरिए से मेल खाता है, जहां राज्य के उपकरणों पर समाज भारी होता है। आरएसएस के विचारक दीनदयाल उपाध्याय ने पचास के दशक में ही राज्य निर्माण की नेहरूवादी अवधारणा के खिलाफ संघर्ष शुरू कर दिया था, जब आजादी के बाद केंद्र द्वारा शुरुआती सरकारी अस्पताल बनाए जा रहे थे।