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बेरोजगारी की छाया में

April 7, 2024 admin 0
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ये मरने वाले बच्चे इंजीनियरिंग या एमबीबीएस करने के उम्मीदवार थे। स्पष्ट है कि तैयारी की यह पूरी प्रक्रिया इतनी कठोर, प्रतिद्वंद्विता से भरी, संवेदनाविहीन है कि बच्चों को टूटने में देर नहीं लगती।

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हमारे मुल्क ने अपनी नैतिक दिशा खो दी है’

March 14, 2024 admin 0
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हमारे वक्त की सबसे हैरान कर देने वाली उलझन यह है कि ऐसा लगता है कि सारी दुनिया में लोग खुद को और भी कमजोर और वंचित बनाने के लिए वोट दे रहे हैं। वे मिली हुई सूचनाओं के आधार पर वोट डालते हैं। वह सूचना क्या है और उस पर किसका नियंत्रण है – यह आधुनिक दुनिया का मीठा जहर है। जिसका तकनीक पर कब्जा है, उसका दुनिया पर कब्जा है। पर मैं मानती हूं कि अवाम पर अंतत: कब्जा नहीं किया जा सकता है और वे कब्जे में नहीं आएंगे।

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स्टेडियम से अखाड़े तक

March 14, 2024 admin 0
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देश के, ओलंपिक जैसी अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में, पदक जीतनेवाले सर्वश्रेष्ठ खिलाडिय़ों के साथ, आज जो हो रहा है, वह शर्मनाक है। लोकतांत्रिक व्यवस्था […]

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‘मनुस्मृति’ में सवर्ण स्त्री

November 4, 2023 admin 0
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इस लेख का उद्देश्य मुख्यत: ‘सवर्ण-स्त्रियों के व्यभिचार’ के आरोप पर मंथन करना है, न कि सवर्ण-पुरुषों, निम्नवर्णीय-स्त्रियों और पुरुषों के व्यभिचार पर। क्योंकि सवर्ण-पुरुषों का किसी भी तथाकथित उच्च या निम्नवर्णीय-स्त्रियों से व्यभिचार ब्राह्मण-विधान के अनुसार ‘व्यभिचार’ नहीं, उनका ‘विशेषाधिकार’ था।

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‘जेनरिक’ दवाओं का दिवा स्वप्न

November 4, 2023 admin 0
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आज जेनरिक दवाओं को लेकर कुछ ऐसा माहौल बन गया है जैसे जेनेरिक दवाओं से ही सारी स्वास्थ्य समस्याएं हल हो जाएंगी। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी जेनेरिक दवाएं काफी प्रचलन में हैं और गरीब जनता को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है।

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अकादमिक आजादीः बढ़ता खतरा

October 7, 2023 admin 0
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सरकारी हस्तक्षेप की वजह से विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुकी है। कुलपति और विश्वविद्यालय के नीति निर्धारण के लिए बनी कार्य परिषदें भाजपा और आरएसएस प्रतिनिधियों की तरह व्यवहार कर रही हैं।

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आओ राजनैतिक भ्रमजाल छोडें!

October 7, 2023 admin 0
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यदि किसी पार्टी को मतदान में बहुमत हासिल होता है, तो यह माना जाता है कि उसे जनादेश हासिल है। इसीलिए, वे लोग जो चुनावी राजनीति में भाग लेते हैं, मतदान को लोकतंत्र के पर्व के तौर पर व्याख्यायित करते हैं। सिर्फ राजनीतिक दल ही नहीं, बल्कि कुछ ऐसे बुद्धिजीवी भी इस बारे में ऐसी ही मासूमियत के साथ सोचते हैं जो पूरी गंभीरता के साथ जनता के पक्ष में ही खड़े रहते हैं।

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‘गागर में सागर-सा पानी’

September 8, 2023 admin 0
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– योगेंद्र दत्त शर्मा शैलेंद्र के संदर्भ में चकित करने वाली बात यह है कि फिल्म की चाक्षुक विधा ने उनकी सर्जनात्मकता को नए आयाम […]