आखिर हिंदी की उपयोगिता क्या है?
भाषा अपने बोलने वालों की बौद्धिक सक्रियता और गतिविधि का तो प्रमाण होती ही है, सत्ता से अपने जीवंत संवाद के सामथ्र्य की, और ज्ञान के संचयन की क्षमता के, अनुपातिक संबंध का भी मानदंड होती है। इसलिए उसके स्तर में समानता नहीं होती। दूसरे शब्दों में भाषा की शक्ति काफी हद तक उसके बोलने वालों की क्षमता पर निर्भर करती है। और यह क्षमता भाषा के स्वाभाविक गुणों से इतर कारणों से भी अर्जित की जाती है।