पंडित जसराजः एक अप्रतिम आवाज (28 जनवरी, 1930 -17 अगस्त, 2020)

Share:
  • निमिषा सिंघल

पंडित जसराज अद्भुत, अद्वितीय मधुर कंठ के धनी, संगीत मार्तंड थे। उनकी आवाज का जादू सिर चढ़कर बोलता है। तभी तो, पंडित जसराज को गायकी का रसराज कहा जाता है। उनके कंठ से निकले स्वर श्रोताओं को अलौकिक आनंद की अनुभूति कराते हैं।

पंडित जसराज का जन्म पिली मंडोरी, जिला फतेहाबाद, हरियाणा में हुआ था। उनके परिवार को चार पीढिय़ों तक हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक से बढ़कर एक रत्न देने का गौरव प्राप्त है। इनके पिता पंडित मोतीराम मेवाती घराने के विशिष्ट संगीतज्ञ थे। वह चार वर्ष के ही थे कि उनके पिता की मृत्यु हो गई। उनके बाद उनके बड़े भाई ने उनकी शिक्षा-दीक्षा का बीड़ा उठाया।

बचपन में ही शिक्षा के साथ-साथ उन्होंने तबला वादन सीखा और शास्त्रीय गायन की सभाओं में तबला वादक के रूप में जाना शुरू किया। लेकिन तबला वादकों के साथ होने वाले क्षुद्र व्यवहार से खिन्न होकर इन्होंने तबला वादन छोड़ दिया और प्रण लिया कि जब तक शास्त्रीय गायन में संगीत विशारद प्राप्त नहीं कर लेंगे अपने बाल नहीं कटवाएंगे। बेगम अख्तर की गायकी ने उनका रुझान शास्त्रीय संगीत की तरफ मोड़ा। बेगम अख्तर की गाई गजल ‘दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे वरना कहीं तकदीर तमाशा ना बना देÓ, को, गजल का अर्थ सही ढंग से समझ में ना आने पर भी, घंटों सुना करते थे।

भारतीय शास्त्रीय संगीत के संसार में जब अधिकांश गायिकी ध्रूपद, ख्याल और ठुमरी आधारित रहती आई है, ऐसे में अपनी शास्त्रीयता की राह को मेवाती घराने से पूरी तरह संबद्ध रखते हुए पंडित जसराज ने वैष्णवता का आंगन चुना। एक ऐसा परिसर, जहां भक्ति संगीत की आवाजाही थी, पारंपरिक ख्याल गायन की परंपरा में धार्मिक और आध्यात्मिक बंदिशों के गायन की रवायत रही है, जिसमें कई दफा मुस्लिम गायकों ने भी देवी-स्तुतियां और शिव-आराधना की बंदिशों को अपनी रागदारी में उतारा है। मगर पंडित जसराज की राह थोड़ी अलग थी, जिसमें एक ऐसा लोक-विन्यास भी ढूंढा जा सकता है, जो कहीं न कहीं मठ-मंदिरों, हवेलियों और देवताओं की ठाकुरबाड़ी से सृजित होता है। वह वैष्णव परंपरा की पुष्टिमार्गी शाखा की अप्रतिम आवाज थे, जिसने इस भक्ति मत को व्यवहारिक तौर पर संगीत-प्रेमियों के मन में सम्मान से प्रतिष्ठित किया।

मेवाती घराने के अलावा उन पर हवेली संगीत का असर स्पष्ट है। सुर और ताल के पक्के पंडित कहा करते थे, ”मैं नहीं मानता संगीत में मेरा कोई योगदान है सब ईश्वर और बड़े भाई जी की कृपा है। मैं तो बस एक माध्यम हूं और ईश्वर के लिए गाता हूं।‘’

अपनी पत्नी और भारतीय फिल्मों की जानी-मानी हस्ती वी.शांता राम की बेटी मधुरा शांताराम ने उन पर जो फिल्म बनाई है उसमें पंडित जसराज ने गाया है। इसके अलावा उन्होंने मराठी और हिंदी आदि भाषाओं की कुछ फिल्मों भी गायन किया है। फिल्म बीरबल माई ब्रदर के साउंड ट्रैक में उन्होंने भीमसेन जोशी के साथ गाया है। फिल्म 1920 में उनका गाया हुआ ‘वादा तुमसे है वादा’ सुचर्चित है।

82 वर्ष की उम्र में अंटार्कटिका के दक्षिणी ध्रुव पर शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति देकर सातों महाद्वीपों में कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले वह पहले भारतीय बन गए। उन्हें संगीत नाटक अकादमी, पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा मास्टर दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार, लता मंगेशकर पुरस्कार, महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार से भी अलंकृत किया गया।

पंडित जसराज जी का सीधा-सरल स्वभाव, मंद-मंद मुस्कुराना स्नेह से समझा कर हर बात कहना, बात पूरी हो जाने पर मुस्कुराकर जय हो कहना- हर किसी को उनके साथ बंधन में बांध लेता था। जिन्हें भी पंडित जसराज जी से मिलने का मौका मिला वे सभी बेहद भाग्यशाली थे। उनके द्वारा शास्त्रीय संगीत में अलग-अलग रागों में कई बंदिशें गाई गईं। शास्त्रीय रागों में भजनों का सृजन किया गया। सतरंगी जुगलबंदी का निर्माण किया गया जिसे स्त्री-पुरुषों के द्वारा विभिन्न रागों में गाया जा सकता है।

उनके द्वारा राग भैरवी में गाई गई ठुमरी ‘सुमिरन करले’, मियां की मल्हार में गाई बंदिश ‘बाबा तोपे बरसत’, भजन ‘गोकुल में बाजत’ अद्वितीय हैं। जहां कहीं भी उन्हें भजन गायन के लिए बुलाया जाता था मधुराष्टकम् जरूर गाते थे। उनके मुख से गाया मधुराष्टकम् मंत्रमुग्ध कर देता था।

14 वर्ष पहले नासा ने बृहस्पति और मंगल के बीच पाए जाने वाले एक ग्रह का नाम पंडित जसराज दिया है। आज तक कभी किसी और संगीतज्ञ के नाम पर किसी ग्रह का नाम नहीं रखा गया है। उनके प्रसिद्ध शिष्यों में गायक संजीव अभ्यंकर, कला रामनाथ, संदीप रानाडे और सप्त रिशी चक्रवर्ती हैं।

पंडित जसराज का देहांत, 90 वर्ष की परिपक्व आयु में न्यू जर्सी, अमेरिका में हुआ।

हम सभी बेहद भाग्यशाली हैं जिन्होंने ऐसे समय में जन्म लिया जो युग पंडित जसराज जी के गायन से आह्लादित था। पंडित जसराज जी का शरीर भले ही आज हमारे सामने न हो लेकिन उनका गायन सदियों तक उनकी उपस्थिति दर्ज कराता रहेगा। शास्त्रीय संगीत को विदेशों में भी ऊंचाइयां देने वाले और अपने देश का परचम हर जगह फैलाने वाले भारत के इस रत्न को सदियों तक याद किया जाएगा। मेरा प्रणाम ऐसी महान विभूति को।

 

समयांतर, सितंबर, 2020

Visits: 218

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*