हड़प्पा में बाढ़

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– यूसुफ किरमानी

पाकिस्तान में बाढ़ का शिकार सबसे ज्यादा महिलाएं और बच्चे बनते हैं। इस बार भी ऐसा हुआ है। ग्रामीण पाकिस्तान में लैंगिक असमानता जबरदस्त है। महिलाओं को सबसे ज्यादा कठिन हालात का सामना करना पड़ता है। ऐसी आपदाओं के बाद बड़े पैमाने पर बेघर महिलाएं और बच्चे शहरों में काम की तलाश में पहुंचते हैं और वहां मानव तस्करी का शिकार हो जाते हैं। पाकिस्तान के हुक्मरानों को बलूचिस्तान और सिंध के लिए एक व्यापक नजरिया रखना होगा। उन्हें सब कुछ पाकिस्तान के पंजाब को समर्पित करने के अपने नजरिए को बदलना होगा।

 

सिर्फ भारत में ही नहीं पाकिस्तान में भी  दो पाकिस्तान बसते हैं। पाकिस्तान की बाढ़ ने फिर से यही साबित किया है। भारत की तरह पाकिस्तान की बाढ़ ने यह बताया है कि कैसे सत्ताधीश हाशिये पर पड़े लोगों के लिए भारत की ही तरह बेरहम साबित होते हैं। पाकिस्तान की बाढ़ ने यह भी बताया कि कैसे एक पड़ोसी मुल्क इतने बुरे हालात में सिर्फ बयान देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है, बेशक उसके हिंदुत्व की पताका की धरोहर मोहन जोदाड़ो डूब जाए, उसकी बला से। उपन्यासकार कमलेश्वर आज जिंदा होते तो कितने पाकिस्तान  लिखने वाले लेखक को जवाब मिल गया होता कि एक पाकिस्तान में अनगिनत पाकिस्तान बसते हैं। एक पाकिस्तान इस्लामाबाद की पॉश कॉलोनियों में नीतियां तय करता है, तो दूसरा पाकिस्तान लाहौर और कराची में बैठा हुआ है। जहां के धन्नासेठ और कुलीन वर्ग पाकिस्तान के संसाधनों पर कब्जा करने के लिए दिन-रात राजनीतिक चालें चलते हैं। पाकिस्तान में जो कुछ है वो पंजाब है और पंजाब में जो कुछ है वही असली पाकिस्तान में है। बेशक बलूचिस्तान डूबे या बचा रहे। बेशक सिंध के गांव बाढ़ में बह जाएं।

मौजूदा दौर की पत्रकारिता में अगर आपके पास अपनी बात कहने के लिए आंकड़े नहीं हैं, तो आपकी बात को कोई मानने को तैयार नहीं होता। तो डेटा साइंस के हिसाब से पाकिस्तान के बाढ़ पर पहले बात कर लेते हैं। हालांकि, यह बड़ा उबाऊ होता है, लेकिन बातों को आंकड़ों के जरिये साफ करना जरूरी है। पाकिस्तान का एक तिहाई इलाका पानी के नीचे है, मरने वालों की तादाद 1, 400 हो गई है, और तीन करोड़ 30 लाख से अधिक लोग बाढ़ की वजह से बेघर हैं। 20 लाख एकड़ खेती वाली जमीन पानी के नीचे है। 5,735 किमी परिवहन संपर्क, और डेढ़ करोड़ घर बह गए हैं, जबकि 7,50,000 पशुधन (गाय, भैंस, बैल, बछड़े, बकरी-बकरे, ऊंट) का अता पता ही नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि 64 लाख लोगों को मदद की जरूरत है, जबकि डेढ़ करोड़ से ज्यादा बच्चे संकट में हैं, जिनमें से 34 लाख को ‘जीवन रक्षकÓ सहायता की जरूरत है। जल जनित बीमारियां फैल रही हैं। पाकिस्तान में 14 जून, 2022 से भारी बारिश शुरू हुई। जिससे हालात बदलते गए। पाकिस्तान की मुखर नेता शेरी रहमान को पाकिस्तान मीडिया ने छापा है, जिसमें कहा गया है कि इस बार सिंध और बलूचिस्तान में क्रमश: 784 प्रतिशत और 500 प्रतिशत ज्यादा बारिश हुई। पाकिस्तानी सरकार तुरंत कार्रवाई करने में नाकाम रही। पाकिस्तान के राजनीतिक नेता सत्ता की लड़ाई में मस्त रहे। उन्होंने अपने झगड़ों को रोकने के लिए कोई जहमत नहीं उठाई। पाकिस्तान के संदर्भ में बात को आगे बढ़ाने से पहले पाकिस्तान की बाढ़ के संदर्भ में भारत की प्रतिक्रिया पर बात करना सबसे जरूरी है। पड़ोसी का क्या धर्म है, उसे पाकिस्तान की बाढ़ के संदर्भ में समझना जरूरी है।

 

पाकिस्तान की बाढ़ और भारत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 अगस्त, 2022 को एक ट्वीट किया, जिसमें कहा गया था – ”पाकिस्तान में बाढ़ से हुई तबाही को देखकर दुखी हूं। हम पीडि़तों, घायलों और इस प्राकृतिक आपदा से प्रभावित सभी लोगों के परिवारों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं और सामान्य स्थिति की जल्द बहाली की उम्मीद करते हैं।‘’

नामीबिया से चीते मंगाने वाला देश और अफगानिस्तान को पाकिस्तान के रास्ते मदद भेजकर अपनी पीठ थपथपाने वाला देश एशिया में आई इस भीषण तबाही के लिए अपना खजाना नहीं खोल सका। यहां तक कि मानवीय आधार पर मदद के लिए आगे हाथ तक नहीं बढ़े। मोदी के सत्ता में आने के बाद से पिछले आठ वर्षों में पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों में लगातार गिरावट आ रही है। इसलिए मोदी का ऐसा रुखा बयान वसुधैव कुटुम्बकम वालों को भी हैरान नहीं कर पाया। 2010 में मुंबई हमले के बाद पाकिस्तान से रिश्ते बेहतर नहीं थे। लेकिन 2014 में मोदी की जब ताजपोशी हुई तो माहौल बदलने का संकेत मिला। 2014 में अपनी ताजपोशी में मोदी ने खासतौर से पाकिस्तान के सबसे बड़े औद्योगिक घराने के मुखिया और तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को शपथ ग्रहण का दावतनामा भेजा। शरीफ आ पहुंचे। इसके बाद एक जुमला मशहूर हुआ, जब मोदी शरीफ के परिवार की शादी में उनके यहां अचानक जा पहुंचे थे। शाकाहारी मोदी के लिए कांग्रेसी उस समय एक जुमला कहा करते थे कि मोदी पाकिस्तान बिरयानी खाने गए थे।

भारत के हिस्से वाले कश्मीर को लेकर संबंधों में चाहे जितनी भी खटास रही हो, इतिहास बताता है कि भारत या पाकिस्तान में जब भी प्राकृतिक आपदा आई है, दोनों देश एक दूसरे के लिए खड़े हुए हैं। जनवरी-फरवरी 2001 में, गुजरात में भुज में आए भूकंप के बाद, पाकिस्तान मदद के लिए आगे बढ़ा था और उसने भुज के लोगों के लिए तंबू और कंबल भेजे थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के सैन्य शासक जनरल परवेज मुशर्रफ से औपचारिक रूप से सहायता भेजने के लिए उन्हें शुक्रिया कहा था। हालांकि, मदद की यह एक बड़ी खेप नहीं थी, लेकिन इशारा महत्वपूर्ण था। इसके बाद वाजपेयी और मुशर्रफ के बीच फोन पर संक्षिप्त बातचीत हुई। इसके बाद मुशर्रफ जुलाई, 2001 में भारत यात्रा पर आए, हालांकि आगरा में नाकाम शिखर सम्मेलन हुआ।

इसके बाद 2005 में, जब भारत और पाकिस्तान, दोनों में शक्तिशाली भूकंप आया तो भारत ने भी पाकिस्तान को राहत सामग्री के साथ विमान भेजा और संयुक्त राष्ट्र के जरिए 25 मिलियन डॉलर दिलाने का वचन दिया। 2010 में, जब पाकिस्तान में ‘सुपरफ्लड’ आया था तो भारत ने मदद में 5 मिलियन डॉलर मदद की पेशकश की, लेकिन इस्लामाबाद ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

पाकिस्तान इस बार मदद की पूरी उम्मीद कर रहा था। लेकिन वह चाह रहा था कि मदद सीधे न आकर यूएन के जरिये आए तो उसमें कोई एहसान नहीं होगा। लेकिन पाकिस्तान का यही नजरिया गलत है। आप भारत से सीधे मदद लेने को तैयार नहीं हैं, लेकिन अगर यूएन के जरिए आए तो मदद लेने को तैयार हैं। हालांकि, 21 सितंबर, 2022 को पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने टेलीविजन चैनल ‘फ्रांस 24’ को दिए इंटरव्यू में कहा है कि पाकिस्तान को भारत से मदद की उम्मीद थी, लेकिन भारत ने पेशकश ही नहीं की। लेकिन हकीकत ऊपर बता चुका हूं। पाकिस्तान को इस बाढ़ में भारत के संदर्भ में अपनी कूटनीति को भूल जाना चाहिए था।

लेकिन आखिर मोदी ने अपने ‘शरीफ कनेक्शन’ का इस्तेमाल क्यों नहीं किया। इस बात पर विचार होना चाहिए कि पाकिस्तान में अब शरीफ खानदान की हुकूमत है। जिन्हें पाकिस्तान में भारत से व्यापारिक रिश्तों की वजह से मोदी समर्थक माना जाता है। मोदी शरीफ खानदान के यहां शादी होने पर अचानक पहुंच जाते हैं, लेकिन इतनी बड़ी आपदा में मदद न करना सोचने पर मजबूर करता है। तमाम विश्लेषण से नतीजा यह निकलता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मोदी भारत के कट्टरपंथी लोगों को नाराज नहीं करना चाहते। 2014 से लेकर अब तक भारत के बहुसंख्यकवादी मीडिया ने पाकिस्तान का जो चित्र भारत के जनमानस में बैठा दिया है, उसने पाकिस्तान की मदद के लिए मोदी के मदद के हाथ बांध दिए हैं। लेकिन इसे लेकर किसी को सहानुभूति नहीं होना चाहिए। बहुसंख्यकवादी मीडिया ने वही किया जो बीजेपी या नागपुर चाहते थे। पाकिस्तान के खिलाफ नफरत का मतलब है भारतीय मुसलमानों से नफरत का बाजार गर्म रखना।

इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि नजर तो पाकिस्तान पर है, लेकिन लक्ष्य भारत के मुसलमान हैं। क्योंकि जिस देश में उस समुदाय को कपड़ों से पहचानने के जुमले यहां के हुक्मरान कहते हों, तो भारतीय मुसलमान उनकी नजर में और उसके जेबी मीडिया की नजर में पैदाइशी पाकिस्तानी ही होता है। जिस देश के मीडिया को भारत में 100 रुपए से ऊपर पेट्रोल के रेट पहुंचने पर चिंता न हो, उस देश का मीडिया पाकिस्तान में 250 रुपए पेट्रोल बिकने पर ऐसे चिल्लाता है, जैसे पाकिस्तान तुरंत बर्बाद हो जाएगा। श्रीलंका में वहां की जनता के सड़कों पर आने के बाद भारतीय जनता की चिंता छोड़कर भारतीय मीडिया पाकिस्तान की जनता के सड़क पर आने का इंतजार करता रहा।

 

भारत और मोइन जोदड़ो

पाकिस्तान की बाढ़ ने सिंधु घाटी में बसी मोहन जोदड़ो की धरोहर को अपनी चपेट में लिया है। काफी कुछ नष्ट हो गया है। कई दीवारें पानी में बह गई हैं। यहां पर 2010 के सुपर फ्लड में भी नुकसान पहुंचा था। मोइन जोदड़ो को सिंधु घाटी की सभ्यता भी कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने इसे अंतरराष्ट्रीय धरोहर घोषित कर रखा है। भारत का इस धरोहर से सीधा संबंध है। भारत की बहुसंख्यक आबादी हिंदू है। मोहन जोदड़ो की सभ्यता से ही पता चलता है कि हजारों साल पहले भी देवी-देवता पूजे जाते थे। उसके अवशेष यहां मौजूद हैं। पुजारी ही राजा होता था, उसके प्रमाण यहां मिले हैं। कुल मिलाकर हिंदुत्व धर्म की सहनशीलता की तमाम निशानियां यहां मौजूद हैं। पुरातन हिंदू किस तरह मांसभक्षी थे, उसकी पुष्टि भी यहां हुई थी। भारत में इस समय हिंदू हितों की रक्षा का दम भरने वाली सरकार का शासन है। बीजेपी नामक मुखौटे को जन्म देने वाले संगठन आरएसएस का अखंड भारत के सपने की भी पुष्टि दरअसल मोइन जोदड़ो सभ्यता करती है। अफगानिस्तान तक भारत की सीमाएं थीं। हिंदू राजाओं का शासन था। लेकिन बीजेपी ने हिंदू सभ्यता को बताने वाली अंतरराष्ट्रीय धरोहर को इस बाढ़ में नष्ट होने दिया। होना तो यह चाहिए था कि 2010 में जब पाकिस्तान के सुपर फ्लड ने यहां नुकसान पहुंचाया था तो उसी समय भारत सरकार को एक योजना बनाकर यूएन के जरिये इस ऐतिहासिक स्थल को संरक्षित करने की पहल करनी चाहिए थी। लेकिन कांग्रेस तो कांग्रेस ठहरी। 2014 में जब खुद को हिंदू हृदय सम्राट कहने वाले और समझने वाले साहब दिल्ली में तख्तनशीन हुए तो भी मोइन जोदड़ो में हिंदुत्व के अवशेषों को बचाने की पहल नहीं हुई। ब्रिटेन से कोहिनूर हीरे को लाने के लिए तो फिर भी कोशिश हुई, लेकिन यूएन के जरिए जिस अंतरराष्ट्रीय साइट को आसानी से संरक्षित किया जा सकता है, उसकी तरफ हिंदू सम्राट का ध्यान नहीं गया। अब भी समय है। कम-से-कम 2022 की बाढ़ के कहर को देखते हुए भारत मोइन जोदड़ो को बचाने की पहल कर सकता है। इस बचाया जाना जरूरी है, ताकि हिंदुत्व की पुख्ता सनद बची रहे।

 

निकम्मे पाकिस्तानी हुक्मरान

जुलाई में बाढ़ तेजी से पाकिस्तान के बड़े हिस्से को लील रही थी। लेकिन इसके बावजूद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ कतर की यात्रा पर चले गए। बाद में कहा गया कि वह मदद मांगने के लिए गए हैं। यह झूठ था। पाकिस्तान के जाने-माने उद्योगपति शाहबाज शरीफ किसी भी राजनीतिक संकट का सामने करने पर एक बार खाड़ी देशों की यात्रा पर जरूर जाते हैं। पाकिस्तान के अपदस्थ प्रधानमंत्री इमरान खान ने जिस तरह की राजनीतिक गोटियां बिछाई हैं, उससे शरीफ खानदान को सरकार चलाना मुश्किल हो रहा है और शाहबाज शरीफ का एक पैर विदेश में रहता है।

भारत को जब 1947 में आजादी मिली तो उसी समय पाकिस्तान को भी आजादी मिली। फर्क सिर्फ इतना था कि पाकिस्तान धार्मिक आधार पर बना था। पाकिस्तान वाले पंजाब का हिस्सा भारत की ही तरह पहले से खुशहाल था। इन 75 वर्षों में पाकिस्तान का पंजाब तो और खुशहाल हुआ, लेकिन बलूचिस्तान के हालात नहीं बदले। सिंध से भुट्टो परिवार के सत्ता में होने के बावजूद सिंध का इलाका तमाम तरक्कियों से महरूम रहा। सिंधु नदी का पानी बलूचिस्तान और सिंध में तबाही लाता है।

 

सिर्फ जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार नहीं

पाकिस्तान के हुक्मरान सारी जिम्मेदारी जलवायु परिवर्तन और विकसित देशों की नीतियों पर इस बाढ़ के लिए डाल रहे हैं, लेकिन अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं। पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में बाबा आदम के जमाने में सौ बांध बनाकर सिंधु नदी के पानी को रेगुलेट करने का एक प्रोजेक्ट कागजों पर तैयार हुआ था। मकसद यह था कि भारी बारिश की वजह से सिंधु नदी का जो पानी भारी तबाही लेकर आता है, उस पानी को बांधों के जरिए रेगुलेट किया जाए। उससे बिजली पैदा की जाए और पाकिस्तान की जरूरत पूरी हो सके। लेकिन यह बांध प्रोजेक्ट 2026 तक पूरा किया जाएगा। अभी तबाही का जो मंजर है, उसमें इस तरह की बातें होना सबसे बड़ा मजाक है। पाकिस्तान के हुक्मरान इस सवाल का जवाब देने को राजी नहीं हैं कि 75 वर्षों में उन्होंने बलूचिस्तान को सिंधु नदी की बाढ़ से बचाने के लिए कितने बांध बनाकर खड़े कर दिए। बलूचिस्तान से हर बार बारिश के मौसम में बांध के टूटने की खबर जरूर आती है। पाकिस्तान इंस्टिट्यूट ऑफ डेवलपमेंट इकनॉमिक्स की मई, 2020 की रिपोर्ट बताती है कि 41 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं। पाकिस्तान के कुल गरीबों का 11 फीसदी हिस्सा बलूचिस्तान में रहता है। बलूचिस्तान बहुआयामी गरीबी सूचकांक (मल्टीडायमेंशनल पावर्टी इंडेक्स या एमपीआई) 2016 की रिपोर्ट बताती है कि वहां पर 71 फीसदी आबादी इसी सूचकांक के तहत जिंदगी गुजार रही है। एमपीआई अर्थशास्त्र के मुताबिक वो टर्म है, जिसके जरिए भी गरीबी को मापा जाता है। इस गरीबी में सिर्फ आर्थिक रूप से कमजोर होने की गरीबी नहीं मापी जाती, बल्कि ऐसा परिवार जिसके पास खाने को रोटी ही नहीं, बल्कि सोने के लिए चटाई तक नहीं, बिछाने के लिए चादर तक नहीं, साफ पानी मयस्सर नहीं और तमाम ऐसी चीजें जिसके बारे में वो लोग सोच भी नहीं सकते। उनके लिए भारत की तरह कोई मनरेगा जैसी योजना नहीं है। यह सच है कि बाढ़, भूकंप, पहाड़ों का टूटना जैसी प्राकृतिक घटनाओं को रोकना नामुमकिन है। लेकिन किसी तूफान आने से पहले बचाव का इंतजाम तो करना ही पड़ता है। तूफान को अल्लाह या भगवान की आपदा मानकर कोसते रहने से उस तूफान से तबाही नहीं रुकने वाली। 75 वर्षों से पाकिस्तान ने ऐसी बाढ़ से निपटने के लिए कुछ नहीं किया। न बांध बने, न और कोई कोशिश हुई।

 

इतिहास पर नजर

इतिहास बताता है कि पाकिस्तान नियमित रूप से बाढ़ का शिकार रहा है। इस साल की बाढ़ 1950 के बाद से देश की छठी ऐसी बाढ़ है जिससे तबाही मच गई। इन आपदाओं ने बाढ़ जोखिम के प्रबंधन की कलई खोल दी। भारत की तरह पाकिस्तान में भी खराब तरीके से लागू किए गए शहरी विकास ने कंक्रीट के जंगल तो खड़े कर दिए, लेकिन पानी की निकासी का प्रबंध नहीं किया गया। जब पाकिस्तान के शहरों का हाल ऐसा है तो अंदाजा लगाइए कि बलूचिस्तान और सिंध के ग्रामीण इलाकों के हालत क्या होंगे। पाकिस्तान में बाढ़ जोखिम प्रबंधन के नाम पर ढांचागत उपायों का बोलबाला है। लेकिन उन पर निर्भरता ने हर बार बाढ़ के प्रभाव को और खराब किया है।

जब एक बड़ी बाढ़ आती है तो सारी इंजीनियरिंग का शोर धरा रह जाता है और बाढ़ के शोर में गरीबों की आवाजें सुनाई नहीं पड़तीं। 2005 में बलूचिस्तान का शादी कौर बांध भारी बारिश के दौरान टूट गया, जिससे सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी। मौजूदा बाढ़ ने इसी क्षेत्र में आठ बांधों को क्षतिग्रस्त कर दिया है। पाकिस्तान के हुक्मरानों ने सोचा ही नहीं कि 2005 में जब शादी कौर बांध टूट गया तो आगे बाकी बचे बांधों को बचाने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं। ऐसी ही एक बाढ़ के बाद 2016 में एक अध्ययन किया गया कि बाढ़ आने पर उससे निपटने के लिए लोगों की तैयारी क्या होना चाहिए। अध्ययन से पता चला कि पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में लोगों को बाढ़ के जोखिम और तैयारी के बारे में बहुत नहीं के बराबर जानकारी थी। इस अध्ययन के दौरान लोगों ने कहा कि वे शिक्षा और रोजगार के मौके तलाश रहे हैं। उनके पास ऐसी तैयारियों के लिए कहां समय है।

पाकिस्तान में बाढ़ का शिकार सबसे ज्यादा महिलाएं और बच्चे बनते हैं। इस बार भी ऐसा हुआ है। ग्रामीण पाकिस्तान में लैंगिक असमानता जबरदस्त है। महिलाओं को सबसे ज्यादा कठिन हालात का सामना करना पड़ता है। ऐसी आपदाओं के बाद बड़े पैमाने पर बेघर महिलाएं और बच्चे शहरों में काम की तलाश में पहुंचते हैं और वहां मानव तस्करी का शिकार हो जाते हैं। पाकिस्तान के हुक्मरानों को बलूचिस्तान और सिंध के लिए एक व्यापक नजरिया रखना होगा। उन्हें सब कुछ पाकिस्तान के पंजाब को समर्पित करने के अपने नजरिए को बदलना होगा। बाढ़ जब बलूचिस्तान और सिंध की नियति बन गई है तो आपको नीतियां उसी हिसाब से बनानी होंगी। उसमें शिक्षा सबसे बड़ा हथियार बन सकती है। पाकिस्तान में बाढ़ जैसी आपदाओं से बचने के लिए संसाधन और तकनीक मौजूद हैं। लेकिन इन संसाधनों को प्रभावी ढंग से वितरित नहीं किया गया है। जलवायु परिवर्तन से असमान बारिश तो हो सकती है, लेकिन उससे पैदा होने वाली बाढ़ को रोकने का इंतजाम तो हुक्मरानों को ही करना होगा। भारत के लिए पाकिस्तान की बाढ़ एक सबक है। अगर आप देश के किसी हिस्से को वहां के लोगों के रहमोकरम पर छोड़ देंगे, उन्हें हाशिये पर धकेल देंगे तो यही हाल होगा।

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