भविष्य के लिए अच्छा लक्षण नहीं है ‘सेंगोल’

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तमिल नाडु की सत्तारूढ़ पार्टी डीएमके द्रविड़ मुनेत्र कषगम के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री सी.एन. अन्नादुराई (1967-69) ने 24 अगस्त, 1947 को तमिल साप्ताहिक द्रविडऩाडु में अपनी प्रखर व्यंग्यात्मक शैली में विवादस्पद स्वर्ण आभूषित छड़ी, राजदंड या धर्मदंडसेंगोलकी पृष्ठभूमि में छिपे मूल वर्गीय हितों और भावी कुप्रभावों को लेकर एक बड़ा लेख लिखा था। लेख में द्रविड़ आंदोलन के नेता ने आधुनिक भारत के आर्किटेक्ट प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के वैज्ञानिक मानस को झकझोरने वाली चेतावनियां भी दी हैं। तब के लिए ही नहीं, ये गंभीर चेतावनियां 21वीं सदी के भारत पर भी लागू होती हैं। दिवंगत नेता अन्नादुराई लेख में ब्राह्मण पुजारियों द्वारा प्रधानमंत्री नेहरू को सेंगोल दिए जाने पर हैरत भी जाहिर करते हैंलेख के कुछ हिस्सों का तात्कालिक अनुवाद प्रस्तुत है।

 

– सी.एन. अन्नादुराई

तिरुवादुतुरई अधीनम ने नई सरकार के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को एक सेंगोल सौंपा है। उन्होंने ऐसा क्यों किया? क्या यह तोहफा था या चढ़ावा या कोई लाइसेंस शुल्क? यह अप्रत्याशित है। और बेमतलब। निश्चित ही हमने ऐसे काम की उम्मीद नहीं की थी। पर अगर यह अर्थहीन होता तो भी कोई बात नहीं थी। लेकिन इस सदभाव में गहरे अर्थ छिपे हैं और अब यह लगातार साफ होता जा रहा है कि यह भावी खतरे का भावी है।

हम नहीं जानते कि पंडित नेहरू के विचार इस संबंध में क्या हैं और न ही हम यह जानते हैं कि अधीनम ने इसके (सेंगोल) साथ जो एक नोट भेजा है उसमें क्या है। लेकिन, हम पंडित नेहरू से कुछ शब्द कहना चाहते हैं।

आप राष्ट्रों के इतिहास से भलीभांति परिचित हैं। एक सिंहासनरूढ़ राजा अपने दरबारी सामंतों के सुखमय जीवन के लिए अपनी प्रजा से मेहनत करवाता है। राजा के स्वर्ण महल के भीतर ऐसे लोग हैं जो स्वतंत्र हैं और चारदीवारी के अंदर घूमने की उन्हें पूरी इजाजत है। ऐसे अभिजन धर्म की पूंजी है समृद्ध हैं। यदि हमें जनता के शासन को बनाए रखना है तो इन अभिजनों के विशेषाधिकारों को समाप्त करना होगा। यह एक ऐतिहासिक यथार्थवाद है। आप इसे जानते हैं।

सवाल यह है कि अधीनम जैसे लोग कैसी चिंताओं से ग्रस्त हैं। कुछ चिंता के साथ उन्हें भय भी है कि कहीं आपकी सरकार ऐसा कोई कदम न उठाले जो उनके न्यस्त स्वार्थों के विरुद्ध हो। इसलिए अपने निहित स्वार्थों की रक्षा के लिए वे स्वर्ण राजदंड ही नहीं, वरन नव रत्नों से जडि़त राजदंड भी आपको दे सकते हैं।

ईश्वर की कृपादृष्टि के इच्छुक भक्त ने भावविभोर हो कर गाते हुए जो राजदंड सामने रखा है… वह अधीनम की ऐसी भेंट है जोकि जनता के कठोर श्रम से गढ़ी हुई है। इसे बनाने में जिन्होंने स्वर्ण दिया है उन्हें इस बात की कतई चिंता नहीं है कि यहां लोग गरीब हैं, दिन-रात भूखे रहते हैं। इन लोगों ने दूसरों की संपत्ति का दुरूपयोग किया है, किसान के पेट पर लात मारी है, जितना कम दे सकते थे उतना ही मजदूरों को न्यूनतम दिया है, उनके ऋण का आदर नहीं किया लेकिन अपने मुनाफों में कई गुणा इजाफा कर लिया है। और अपने गलत कर्मों व पापों को छुपाने के लिए ईश्वर को धोखा देते हैं और उस पर स्वर्ण के चढ़ावों की वर्षा करते हैं। यदि हमारे भावी शासक ऐसे व्यक्तियों से राजदंड को स्वीकार करते हैं जो लोगों की देह और मस्तिष्क का शोषण करते हैं, तो यह भविष्य के लिए शुभ लक्षण नहीं है।

ब्राह्मण: अधीनम औरों के लिए आदर, प्रेम और चिंता से प्रेरित होकर तुम शुभ घड़ी में नई सरकार के लिए संगोल भेजोगे क्योंकि हमारे जयपुर, बड़ोदा, उदयपुर, मैसूर जैसी रियासतों के राजे-महाराजे से तुम्हें प्रशंसा मिलेगी …वे एक-दो मिनट के लिए सेंगोल का उल्लेख कर सकते हैं … लेकिन वास्तविकता में वे दिन भर इसका गुनगान करते रहेंगे।

अधीनम: क्या सेंगोल को भेजने का विचार अच्छा नहीं था?

ब्राह्मण: सेंगोल वह है जिसे राजा अपने हाथ में रखता है। और जो इसे सरकार को सोंपता है। अधीनम, वह संगोल को सौंपते हुए अपनी स्वीकृति की मोहर लगाता है, गोया कि वह नई सरकार को अपने आशीर्वादों से नवाज रहा हो … नई सरकार को कार्य आरंभ करने की अनुमति दे रहा हो-अब शहर में इस तरह की चर्चाएं चल पड़ेंगी। अभी नहीं, भविष्य में भी चलती रहेंगी।

इस संगोल की तरफ देखो। यह सुंदर है। लेकिन शायद तुम्हें इसमें पवित्र नंदी से और अधिक दिखाई दे सकता है, और यह है ऋशबम। तुम इसमें हजारों एकड़ भूमि जोकि आधी-ठहरी जिंदगी जीते खेतिहर मजदूरों द्वारा सिंचित है, देख सकते हो। तुम उनकी झोंपड़ी को देखोगे और उसमें फैली निर्धनता को भी जिस पर शासन होगा इस राजदंड का। तुम्हें मिरसदार का बांग्ला दिखाई देगा, वह सोने की तश्तरी में खाते हुए मिलेगा। और फिर से थकीमांदी देह और अति व्यग्रह आंखें… तुम एक मठ को देखोगे, वहां भयानक मोटा ताला दिखाई देगा, उसका शानदार बिस्तर, उसके स्वर्णजडि़त कान, और सोने के ही स्लीपरें।

पंडित नेहरू को भेजा गया सेंगोल कोई भेंट-तोहफा नहीं है। या प्रेम का प्रतीक। और या देशभक्ति की अभिव्यक्ति। बल्कि भारत के भावी शासकों से प्रार्थना है कि वे अधीनमों की धन-दौलत और शान-शौकत को बख्श दें। इन बेशकीमती वस्तुओं को उनसे नहीं छीनें। हमारे शासकों के साथ ऐसा करके अधीनम उनके साथ मित्रता गांठ रहे हैं जिससे कि उनका यश और प्रभुत्व कभी विलुप्त न हो।

साधु-संन्यासियों के पास जो स्वर्ण है, तो भी यह एक कलंक है। यदि मठों में जमा इनके सोने को जब्त कर लिया जाता है और लोककल्याण पर खर्च किया जाता है तो सेंगोल का सजावटी रूप स्वत: ही समाप्त हो जायेगा और इसके स्थान पर यह आम जन के जीवन में सुधार लाने का माध्यम बन जाएगा।  

सौजन्य: इंडियन एक्सप्रेस

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