आयुर्वेद और सर्जरी: कीमत जनता चुकाएगी

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  • रामप्रकाश अनंत

बीस नवंबर को केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने एक नोटिफिकेशन जारी किया। इसके अनुसार, आयुर्वेद में पोस्ट ग्रेजुएट 39 जनरल सर्जरी और 19 नाक, कान, गला और आंख की सर्जरी कर सकेंगे। नोटिफिकेशन के गजट में छपने के बाद से अभी तक यह मुद्दा चर्चा में है। इस पर एलोपेथिक डॉक्टरों की सबसे बड़ी संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने सख्त एतराज किया है। 11 दिसंबर को संस्था ने देश भर में जरूरी सेवाओं को छोड़कर बाकी सेवाएं बंद कर अपना विरोध प्रदर्शन किया।

आईएमए एलोपैथिक डॉक्टरों का सबसे बड़ा संगठन है। इस संगठन का चरित्र एक व्यापारी संगठन की तरह है। हालांकि संगठन के अध्यक्ष राजन शर्मा अब कह रहे हैं कि सरकार मिक्सोपेथी लागू कर रही है। यह देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को भ्रष्ट करने की जबरदस्त कोशिश है। इससे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी। सवाल यह है कि आईएमए को क्या वास्तव में देश के स्वास्थ्य व्यवस्था की चिंता है? यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आईएमए की प्रतिबद्धता न तो चिकित्सा विज्ञान के प्रति है और न देश की स्वास्थ्य व्यवस्था के प्रति है।

25 अक्टूबर, 2014 को रिलायंस हॉस्पिटल का विमोचन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गणेश की प्लास्टिक सर्जरी और कर्ण के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी होने की बात कही थी। तब से लेकर अब तक तमाम मंत्री इस तरह की बातें सार्वजनिक मंचों पर करते रहते हैं। हर साल इंडियन साइंस कांग्रेस होती है और उसमें ऐसी ही बेतुकी बातें की जाती हैं। मुंबई में हुई 102वीं इंडियन साइंस कांग्रेस को याद करें जहां एक से एक बेहूदा बातें की गईं। भारतीय नोबेल पुरुस्कार विजेता रामाकृष्णन वेंकट रमन ने इसके विरोध में इंटरव्यू दिए थे। भारत में वैज्ञानिक पुष्पमित्र भार्गव ने इसकी आलोचना में लेख लिखा। आईएमए इतनी बड़ी संस्था है लेकिन वह उस समय एक बयान भी इन मूर्खताओं के विरुद्ध जारी कर देती तो उसका प्रभाव पड़ता। कह सकते हैं कि आईएमए को राजनीतिक बातों से क्या मतलब। फिर उसे आयुर्वेद के डॉक्टरों के सर्जरी करने से भी कोई मतलब नहीं होना चाहिए क्योंकि सरकार के मातृ संगठन आरएसएस का लक्ष्य देश को हिंदू राष्ट्र घोषित करना रहा है और प्रधानमंत्री उसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए गणेश की प्लास्टिक सर्जरी और कर्ण के टेस्ट ट्यूब बेबी होने की बात करते हैं। वह भारतीय आयुर्विज्ञान के डायमंड युग को वापस लाने के लिए प्रयासरत हैं।

दूसरा उदहारण लेंसेट का है। स्वास्थ्य विज्ञान के क्षेत्र में इस पत्रिका की अपनी प्रतिष्ठा है।  लेंसेट ने अगस्त, 2019 का संपादकीय कश्मीर पर लिखा कि जिस तरह के हालात वहां हैं उससे वहां के लोगों में घबराहट और अवसाद, जैसी मानसिक बीमारियां बढ़ जाएगीं। इस पर आईएमए ने लेंसेट को नसीहत दी कि यह भारत का आतंरिक मामला है इसमें उसे दखल नहीं देना चाहिए। सवाल उठता है कि आईएमए के लिए देश का मतलब सरकारी एजेंडा और सरकारी पॉलिसी है तो फिर वह किस मुंह से कह रहा है कि इससे देश की स्वास्थ्य सेवा भ्रष्ट होगी।

अब हम बात करते हैं आयुर्वेदिक डॉक्टरों द्वारा सर्जरी -शल्यक्रिया-करने की। सर्जरी का मतलब सिर्फ सर्जरी नहीं होता है। यह एक सहयोगी-टीम वर्क-काम है और लंबी प्रक्रिया है। उदाहरण के लिए एक व्यक्ति की पिथ की थैली में पथरी है और वह उसका ऑपरेशन कराना चाहता है। ऑपरेशन से पहले मरीज की पीएसी यानी प्री-अनेस्थेटिक क्लिनिक होगा जिसमें उसकी सभी आवश्यक जांच कराई जाएंगी और तय किया जाएगा उसे कोई ऐसी बीमारी तो नहीं है, जिससे ऑपरेशन के समय जटिलता आएगी। उसकी स्थिति ऑपरेशन करने लायक है भी या नहीं। ऑपरेशन शुरू होने से अंत तक एनेस्थीसिओलॉजिस्ट सर्जन के साथ रहता है जिसका एनेस्थेसिया में स्पेशलाइजेशन होता है। जिसमें वह सीखता है कि किस तरह के मरीज को कौन सा एनेस्थेसिया देना है। सर्जरी के समय कोई कम्प्लीकेशन होता है तो उसे कैसे डील करना है। सर्जरी के बाद मरीज ऑब्जर्वेशन में रखा जाता है। कभी-कभी पोस्ट ऑपरेशन कम्प्लीकेशन हो जाते हैं तो उन्हें संभालना होता है।

सवाल है, आयुर्वेद के पास क्या वैज्ञानिक तरीके से सर्जरी की पूरी प्रक्रिया से निबटने की व्यवस्था है? अगर आयुर्वेदिक डॉक्टर सिर्फ सर्जरी करते हैं और बाकी प्रक्रिया एलोपैथी की अपनाते हैं तो यह देश की स्वास्थ्य व्यवस्था के पतन की शुरुआत होगी और इसका खामियाजा गरीब जनता को उठाना पड़ेगा। आप यह नहीं कह सकते कि जिन्हें आयुर्वेदिक डॉक्टरों से सर्जरी करानी है वे कराएं जिन्हें नहीं करानी है न कराएं। जो नेता और मंत्री जनता को बता रहे हैं कि पापड़ खाने से, गाय के गोबर से, गौमूत्र से, हनुमान चालीसा पढऩे से कोरोना नहीं होगा जब उन्हें कोरोना हुआ तो उन्होंने मेदांता जैसे मंहगे अस्पतालों की शरण ली।

सवाल यह भी है कि जिस पेथी के डॉक्टर पांच साल अपनी पेथी की पढ़ाई करते हैं और प्रैक्टिस एलोपैथी की करते हैं और दावा यह है कि वे सर्जरी करेंगे। सर्जरी जिसमें पूरी प्रक्रिया के दौरान हुई एक छोटी सी चूक मरीज के लिए जानलेवा हो सकती है।

आयुष मंत्रालय ने 39 जनरल सर्जरी और 19 नाक, कान, गला व दांत की सर्जरी करने की अनुमति दी है। नाक, कान, गला व आंख की सर्जरी स्पेशलाइज्ड ब्रांच में आती हैं। इसमें छोटी सर्जरी भी मरीज के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। जरा सी चूक मरीज का बड़ा नुकसान कर सकती है। सोचने की बात यह है कि अप्रशिक्षित (क्वेक, जराह, नीमहकीम) लोग भी एलोपैथी की प्रैक्टिस करते हैं। कानून व्यवस्था नकारा है। लोग उनसे इलाज कराते हैं। इनसे समृद्ध वर्ग और नेताओं पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। गरीब जनता को ही इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है। वास्तव में यह सरकार द्वारा जन स्वास्थ्य के प्रति अपनी जिम्मेदारी से पिंड छुड़ाने का आसान रास्ता है।

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