सुरक्षा की आड़, पर्यावरण की मार

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– अतुल सती

सर्वोच्च न्यायालय में रक्षा मंत्रालय सीमा को जोडऩे वाले मार्गों के संदर्भ में यह अपील लेकर गया है कि नीति मार्ग सहित सीमा को जाने वाले मार्गों की चौड़ाई कम-से-कम 10 मीटर होनी चाहिए, क्योंकि ये रणनीतिक महत्त्व के मार्ग हैं और इनसे ब्रह्मोस-जैसी मिसाइल सीमा पर पहुंचाई जानी है। आज ये मार्ग सुरक्षा के लिए इतने महत्त्वपूर्ण होने के बावजूद सत्य यह है कि ये मार्ग आवाजाही के लिए महीनों बंद रहते हैं और राष्ट्रीय मीडिया में खबर तक नहीं बनती। नीति मार्ग जब अगस्त में हफ्ते भर से ज्यादा बंद रहा तो जोशीमठ में इस मार्ग को शीघ्र खोले जाने के लिए आंदोलन हुआ, आमरण अनशन किया गया। तब जाकर 15 दिन बाद मार्ग खुल पाया। यह महज इस साल का मसला नहीं है।

 

इस साल सितंबर से जोशीमठ में सेना की हलचल दिखाई देने लगी। जोशीमठ उत्तराखंड में चीन सीमा पर अंतिम नगर है। यहां से 100 किलोमीटर पर नीति दर्रे की सीमा और 50 किलोमीटर पर माणा दर्रे की सीमा शुरू होती है। सितंबर से लगातार जोशीमठ से सैनिकों से लदे ट्रक सीमा की तरफ बढ़ते दिखाई दिए। सैन्य साजो सामान भी सीमा की तरफ जाता दिखा। लगा कुछ गंभीर हुआ है। 25 सितंबर को मीडिया में खबर छपी कि चीन के 100 से अधिक सैनिक भारतीय सीमा में घुस आए थे। चीनी सैनिकों ने भारतीय सीमा के भीतर के एक पुल को भी तोड़ फोड़ दिया था और अपनी उपस्थिति के और दखल के निशान भी छोड़े थे।

इसके लगभग एक माह बाद अक्टूबर में दो-तीन दिन (17 -19 ) की बारिश के बाद नीति की ओर जाने वाला मार्ग जो चीन सीमा को जाता है, हफ्ते भर के लिए बंद हो गया। इससे पूर्व अगस्त माह में भी यह मार्ग 15 दिन बंद रहा था। सात फरवरी की आपदा के बाद यह मार्ग लगभग एक माह से आधिक तक बंद रहा। यही हाल माणा दर्रे की सीमा को जाने वाले मार्ग का भी रहता है। इस मार्ग पर लामबगड़ भूस्खलन क्षेत्र है जो अक्सर ही बंद हो जाता है। ध्यान रहे ये दोनों मार्ग देश की सीमा से जोडऩे वाले अति संवेदनशील रणनीतिक महत्त्व के मार्ग हैं।

ये वही मार्ग हैं जिनके संदर्भ में 15 नवंबर को सर्वोच्च न्यायालय में बहस के दरमियान न्यायाधीश महोदय ने पूछा कि देश की सुरक्षा महत्त्वपूर्ण है अथवा पर्यावरण। साथ ही उनके हवाले से यह भी शाया हुआ कि निश्चित ही देश की सुरक्षा को पर्यावरण पर तरजीह दी जानी चाहिए। यह सुरक्षा कितनी महत्त्वपूर्ण है कि महीनों यह मार्ग आवाजाही के लिए बंद रहते हैं और राष्ट्रीय मीडिया में खबर तक नहीं बनती। नीति मार्ग जब अगस्त में हफ्ते भर से ज्यादा बंद रहा तो जोशीमठ में इस मार्ग को शीघ्र खोले जाने के लिए आंदोलन हुआ, आमरण अनशन किया गया। तब जाकर 15 दिन बाद मार्ग खुल पाया। यह महज इस साल का मसला नहीं है। लगभग हर साल कुछ-न-कुछ समय के लिए ये मार्ग बंद होते हैं। सन 2004 में तो नीति मार्ग तीन माह के लिए बंद हो गया था। वहां रहने वाली आबादी के लिए तमाम तरह के संकट पैदा हो गए। नवंबर माह में वहां की शिफ्टिंग (जनजाति की) वाले गांव को नीचे आना होता है। वह अपने मवेशियों समेत नीचे कैसे आएं यह संकट होने पर जोशीमठ में धरना दिया गया। तब जाकर प्रशाशन सक्रिय हुआ और फिर हफ्तेभर में मार्ग खुल गया। चीनी सेना सीमा के इस हिस्से में हमेशा ही आवाजाही करती रही है। 1962 से लगातार ही कुछ-न-कुछ यहां होता रहा है। कभी चरवाहों के टेंट उखाड़े गए (2014 ), कभी चीनी सैनिकों से झड़प हुई।

सर्वोच्च न्यायालय में रक्षा मंत्रालय इसी सीमा को जोडऩे वाले मार्गों के संदर्भ में यह अपील लेकर गया है कि इन मार्गों की चौड़ाई कम-से-कम 10 मीटर होनी चाहिए, क्योंकि ये रणनीतिक महत्त्व के मार्ग हैं और इनसे ब्रह्मोस-जैसी मिसाइल सीमा पर पहुंचाई जानी है। रक्षा मंत्रालय वही मंत्रालय है जहां के अधिकारी वर्षो तक सीमा की सड़क को आगे बढ़ाने में इस तर्क के साथ अड़ंगा लगाए रहे कि यदि चीन सीमा तक सड़क बनाई गई तो चीनी सैनिक आसानी से भारत में घुस आएंगे। इस क्षेत्र से 1962 से पूर्व भारत तिब्बत व्यापार को पुन: शुरू करवाने के लिए जब केंद्र सरकार से जोशीमठ ब्लॉक के स्थानीय लोगों ने वर्षों पूर्व गुहार लगाई तो वरिष्ठ पत्रकार हरीश चंदोला को यही तर्क तब के रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने दिया।

सन 2018 में केंद्र सरकार अपनी महत्त्वाकांक्षी योजना आल वेदर (सर्वकालिक) सड़क के नाम पर यह कह कर लाई कि उत्तराखंड के चारों धामों को सालभर हर मौसम में खुला रखने के लिए सड़क निर्माण किया जाएगा, 12 हजार करोड़ रुपयों में 899 किलोमीटर। शुरू में तो यह लगा और लगवाया गया कि मानो कोई नई सड़क बनने वाली हो। जबकि यह योजना पुरानी अस्तित्वमान सड़क को ही थोड़ा और चौड़ा भर करने की ही थी। जब इस योजना के तहत पर्यावरण के सभी मानकों की धज्जियां उड़ाई जाने लगीं तब कुछ लोग इस परियोजना में पर्यावरण मानकों के पालन करवाने के लिए ग्रीन ट्रिब्यूनल में गए और बाद में सर्वोच्च न्यायालय में अपील की। जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने एक उच्चाधिकार प्राप्त कमेटी का गठन रवि चोपड़ा की अध्यक्षता में किया। जिसने विस्तृत अध्ययन कर वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर सिफारिश की कि सड़क की चौड़ाई सात मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। क्योंकि हिमालय का यह क्षेत्र ‘फ्रेजाइल’ (कमजोर) है। यह क्षेत्र भूकंप संवेदी क्षेत्र है। यहां अधिक कटान से भूस्खलन का खतरा है। इस रिपोर्ट को सरकार ने पहले तो कमेटी में अपने अधिकारियों के माध्यम से कमजोर करने की कोशिश की, लेकिनन जब कमेटी के अध्यक्ष के कड़े रुख के चलते और केंद्रीय सड़क मंत्रालय के अपने पूर्व के 2012 एवं 2018 के सर्कुलर के तहत ही सड़क की चौड़ाई सात मीटर रखे जाने पर सर्वोच्च न्यायालय ने सहमति जताई तो इसके खिलाफ केंद्र सरकार के रक्षा मंत्रालय को आगे कर दिया गया। उनके माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर दलील दी गई कि रक्षा जरूरतों के लिए सड़क की चौड़ाई 10 मीटर होनी जरूरी है। जहां दोनों पक्षों, रक्षा मंत्रालय और पर्यावरण की रक्षा के लिए अपीलकर्ताओं के वकील कॉलिन गोनजाल्वेज की दलील सुनने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

रक्षा मंत्रालय की इस दलील का मखौल सिर्फ उपरोक्त लेख के शुरुआत में रखे तथ्य ही नहीं उड़ाते बल्कि पूर्व सेनाध्यक्ष व वर्तमान चीफ ऑफ स्टाफ जनरल विपिन रावत का बयान, जो उन्होंने गढ़वाल दौरे के समय पत्रकारों के सवाल के जवाब में दिया, वह भी उड़ाता है। इसमें उन्होंने कहा कि सेना की जरूरत लिए वर्तमान चौड़ाई की सड़क पर्याप्त है। सैन्य साजो-सामान, जो कि सड़क मार्ग से नहीं जा सकता उसके लिए हवाई मार्ग का विकल्प है ही। हवाई मार्ग से भारी-से- भारी साजो सामान सीमा तक पहुंचाया जा सकता है। यह उनका कहना था, जिसका वीडियो साक्ष्य उपलब्ध है।

सन 2013 की आपदा में हजारों लोगों ने जान गंवाई। इस आपदा के बाद गठित हाईपावर कमेटी ने साफ कहा कि आपदा के लिए विकास का पर्यावरण विरोधी ढांचा मुख्यरूप से जिम्मेदार है। जिसमें जलविद्युत परियोजनाएं और सड़क निर्माण का अवैज्ञानिक तरीका मुख्य है। ‘आलवेदर’ नाम से बनने वाली सड़क पर्यावरण के मानकों के उल्लंघन की शिकायतों से घिरने पर कब ‘आलवेदर’ से चारधाम यात्रा परियोजना में बदल गई पता ही नहीं चला। और अब जब उच्चाधिकार प्राप्त कमेटी की सिफारिश, कि सड़क की चौड़ाई सात मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए, आई तब चार धाम को जोडऩे वाली सड़क अचानक रक्षा जरूरतों के लिए बनने वाली सड़क में तब्दील हो गई है। जबकि असलियत यह है कि केंद्रीय सड़क मंत्रालय के मानकों के तहत 10 मीटर से कम चौड़ाई के दो लेन मार्ग पर टोल टैक्स नहीं लिया जा सकता है। इसलिए यह सारी कवायद है। टोल टैक्स वसूलने को लेकर केंद्रीय सड़क मंत्री नितिन गडकरी का प्रसिद्ध बयान आया ही है कि फ्री में कुछ नहीं… अगर सुविधा चाहिए तो भुगतान करो।

इस साल बरसात के दो महिनों में ‘आलवेदर’ सड़क 145 से अधिक स्थानों पर बाधित रही, जो आज तक कभी नहीं हुआ था। यह सरकारी रिपोर्ट है। आलवेदर सड़क निर्माण से पूर्व जहां गिनती के कुल 7-8 भूस्खलन क्षेत्र थे, वहीं अब इस सड़क के निर्माण के दौरान और बाद में 45 से अधिक अत्यंत गंभीर भूस्खलन क्षेत्र हो गए हैं। जहां पहले के भूस्खलनों को हम विकास के ‘साइड इफेक्ट्स’ कहते थे अब जो नए भूस्खलन क्षेत्र हैं ये साइड इफेक्ट्स का विकास कहे जाएं तो अतिश्योक्ति नहीं है। 1960 कि दशक में जब शुरू शुरू पहाड़ में सड़क पहुंची तो सड़क आने की खुशी में लोक गीत रचे गए। ‘सिमली मोटर एगेंन पल बाजार बीच’ बड़ा प्रसिद्ध गीत है। अब जब सड़क अनाप-शनाप काटकर बन रही है और जगह- जगह भूस्खलन खतरनाक होकर लोगों की जान ले रहा है, तब इसी सड़क के शोक गीत रचे जा रहे हैं। किसी समय 1974 के चिपको आंदोलन की नेत्री गौरा देवी का स्मारक नीति मार्ग पर रिणी में सड़क के नजदीक, यह सोच कर बनाया गया था कि, आते-जाते लोग उसके दर्शन कर उनसे प्रेरणा लेंगे। अगस्त में वही सड़क उस स्मारक की कब्रगाह बन गई। सड़क स्मारक को लील गई। चिपको का गांव रिणी इसी साल 7 फरवरी को भयानक आपदा का गवाह बना, पर्यावरण की अनदेखी कर बन रही जलविद्युत परियोजना के चलते। जिसमें 200 से अधिक लोगों की जान गई।

दिलचस्प तथ्य यह भी है कि सेना के लिए सीमा तक सड़क बनाने की जिम्मेदारी जिस सीमा सड़क संगठन की है, जो सेना की ही सड़क निर्माण इकाई है, वह वर्षों से सक्रीय भूस्खलन क्षेत्रों तथा लामबगड़, सिरोबगड़ का इलाज नहीं कर पाया है। उसके भूस्खलनों के इलाज का दिलचस्प तरीका यह है कि जब किसी क्षेत्र विशेष में कुछ भी करके भूस्खलन नहीं रुकता तो सीमा सड़क संगठन वहां दैवीय प्रकोप मान कर मंदिर बना कर्तव्य की इतिश्री कर देता है।

ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय में सवाल उठा है कि पर्यावरण जरूरी है कि देश की रक्षा। ग्लॉसगो में देश के प्रधानमंत्री पर्यावरण रक्षा पर लंबा भाषण देकर संरक्षण और कार्बन उत्सर्जन कम करने का संकल्प व्यक्त कर आए हैं।

और यह सवाल (रक्षा सुरक्षा का) उठा है उस हिमालय के संदर्भ में जिसके लिए गाया गया… पर्वत वो सबसे ऊंचा हम साया आसमां का वो संतर हमारा वो पासबां हमारा…।

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