शिरीन अबू अक्लेह

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– चंद्र प्रकाश झा

बुधवार 11 मई 2022 को जोर्डन नदी के किनारे इजरायल अधिकृत वेस्ट बैंक क्षेत्र में बसे फलिस्तीन के प्राचीन शहर जेनिन में अल जजीरा टेलीविजन चैनल की 51 वर्षीय पत्रकार शिरीन अबू अक्लेह की गोली मार कर हत्या कर दी गई। शिरीन अपनी रिपोर्टिंग के लिए बुधवार सुबह जेनिन में उस फलिस्तीनी शरणार्थी शिविर गई थीं जहां इजरायली सेना ने आतंकी पकडऩे के बहाने छापे मारे थे। उनकी नीली जैकेट पर साफ-साफ प्रेस लिखा हुआ था। उन्होंने हेलमेट भी पहन रखा था। निशाना बनाकर उन्हें सर पर ऐसे गोली मारी गई थी जो सीधे सिर में लगी। शिरीन के साथ उनके प्रोड्यूसर अली समोदी को भी पीछे से गोली मारी गई जिनकी हालत अब स्थिर है। अली समोदी के बयान के मुताबिक इजरायली सैनिकों ने उन्हें वहां की जा रही जबरिया बेदखली का वीडियो बनाने से रोकने की चेतावनी दिए बगैर गोली चला दी। तब वहां कोई फलिस्तीनी प्रतिरोध नहीं था। एक प्रत्यक्षदर्शी पत्रकार के अनुसार इजराइली सैनिकों ने शिरीन के गिर जाने के बावजूद गोलीबारी नहीं रोकी और अंतत: एक पत्रकार ने जान पर खेल कर उन्हें बाहर खेंचा।

शिरीन फलिस्तीन मूल की इसाई और अमेरिकी नागरिक थीं पर वह पूर्वी जेरुसेलम और वेस्ट बैंक में ही रहतीं तथा काम करती थीं। वह 1997 में अल जजीरा के अरबी चैनल के लिए लगभग उसकी शुरूआत से ही रिपोर्टिंग करने लगीं थीं और इन 25 वर्षों में पूरी अरब दुनिया के करोड़ों दर्शकों के लिए अल जजीरा का दूसरा नाम हो गई थीं। गत माह अल जजीरा पर दिखलाए गए एक साक्षात्कार में शिरीन अबू अक्लेह ने बतलाया था कि 2000-2005 के दूसरे इंतिफदा के दौरान जेनिन में किस बड़े पैमाने पर विध्वंस होता था और हर क्षण लगता था कि मौत आसपास ही खड़ी है। इसी साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि ”मैंने पत्रकारिता को इसलिए चुना जिससे कि मैं जनता के निकट रह सकूं। वास्तविकता को बदलना तो संभव न हो, पर कम से कम मैं लोगों की आवाज को दुनिया तक पहुंचाने में कामयाब तो हुई हूं। ‘’

इजराइली दैनिक हरेत्ज में स्तंभकार गिदियन लेवी ने उन्हें श्रृद्धाजलि देते हुए लिखा, ”अबू अक़्लेह किसी शूरवीर की तरह अपना काम करते हुए मरीं। वह जेनिन और अन्य उन अधिग्रहित क्षेत्रों में बेधड़क जाती थीं जहां इजराइली पत्रकार अपवाद स्वरूप ही जाते हैं।‘’

शिरीन अबू अक्लेह के जनाजे में शामिल हजारों लोग उनकी लोकप्रियता के सबूत थे। हद यह हुई की उनके जनाजे तक पर इजराइली सैनिकों ने अड़ंगे लगाए और मारपीट की यहां तक कि उनका ताबूत गिरते गिरते बचा।

इजरायल के प्रधानमंत्री नफताली बेनेट ने दावा किया कि शिरीन फलिस्तीनी की गोली से मारी गईं। पर बाद में इजरायल के सेना प्रमुख अवीव कोहावी को विश्वव्यापी भत्र्सना के दबाव में शिरीन की मौत पर दुख प्रकट करते हुए कहना पड़ा कि अभी पता नहीं चल सका है कि वह किसकी गोली से मारी गईं। फलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने इस हत्या के लिए पूरी तरह से इजरायल की सरकार को जिम्मेदार बताया। कहने को अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने शिरीन की हत्या को प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला बतलाते हुए इसकी तत्काल पूरी जांच की मांग की पर यह किसी से छिपा नहीं है कि इजराइल का सबसे बड़ा समर्थक संयुक्तराज्य अमेरिका ही है ।

पिछले वर्ष एक हमले के दौरान इजराइली सेनाओं ने वैस्टबैंक स्थित अल जजीरा के दफ्तर पर, जो वहां अमेरिकी समाचार एजेंसी एसोशिएटेड प्रेस की बिल्डिंग ही में था, बमबारी की थी और उसे ध्वस्त कर दिया था। सच यह है कि वैस्ट बैंक में स्थिति फिलिस्तीनी पत्रकारों को अक्सर ही इजराइली हमले का सामना करना पड़ता है। कहा नहीं जा सकता कि कब किस को गोली लग जाए।

अमेरिकी साम्राज्यवाद की वित्तीय और सैन्य शह पर आतंक मचाये हुए इजराइली सैनिकों की गोलियों से 1967 से अब तक कम से कम 86 फलिस्तीनी पत्रकार मारे जा चुके हैं। नई सहस्त्राब्दी में सन 2000 के बाद से 50 पत्रकार गोली का निशाना हुए हैं। 2018 से कायम फलिस्तीनी अवाम के प्रतिरोध के साप्ताहिक प्रदर्शनों के दौरान अब तक कम से कम 44 और पत्रकारों को इजराइली सेना ने रबर बुलेट, आंसू गैस आदि शस्त्रों से हमलों का निशाना बनाया है। इजरायल को अभी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो पावर से लैस अमेरिका को छोड़ दुनिया भर में शायद ही किसी और देश का समर्थन हासिल है।

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