राष्ट्रवादियों के समय में औरतें

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– सीमा आजाद

भारतीय कुश्ती संघ में यौन हिंसा के खिलाफ मुंह खोलने की हिम्मत जुटाने वाली एक लड़की नाबालिग है। कानूनी रूप से ऐसे मामलों में एफआईआर तो तुरंत होनी ही चाहिए, गिरफ्तारी भी 24 घण्टे के अंदर हो जानी चाहिए, लेकिन यह भी नहीं हुआ। इसके लिए महिला पहलवानों को धरने पर बैठना पड़ा है, उनका धरना 23 अप्रैल से जंतरमंतर, दिल्ली में पर चल रहा है। इस बीच सरकार ने इस आंदोलन को तोडऩे के लिए कई हथकंडे अपनाए हैं पर उन्हें समर्थन देने वालों और कार्यक्रमों का दायरा बढ़ता जा रहा है। 

 

अंग्रेजों के जाने के बाद यह पहली बार है कि ‘राष्ट्रवाद’ इतनी अधिक बार और इतने अधिक मौकों पर बोला जा रहा है। इसी ‘वाद’ के नाम पर चुनाव लड़ा और जीता-हारा जा रहा है, इसी ‘वाद’ के नाम पर कइयों को जेल में डाला जा रहा है, उत्पीडि़त किया जा रहा है और इसी के नाम पर कईयों को जान से मारा तक जा रहा है। लेकिन अजीब है कि इसी राष्ट्र’वादीÓ समय में राष्ट्र के लिए पदक जीत कर लाने वाली, और भविष्य में राष्ट्र के लिए पदक विजेता होने वाली पहलवान लड़कियों ने जब भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर यौन हिंसा का आरोप लगाया, तो सारे राष्ट्र’वादी’ आरोपी के पक्ष में खड़े हो गए और लड़कियों को ही भला-बुरा कहने लग गए। मौजूदा राष्ट्रवादी समय की यही हकीकत है कि बलात्कारियों को जेलों से रिहाकर फूल-मालाओं से उनका स्वागत किया जा रहा है। यह समय कई समुदायों के साथ औरतों के लिए भी अत्यधिक प्रतिकूल है। यह बेहद दुखद है कि किसी लोकतान्त्रिक देश में आरोपी के खिलाफ एफआईआर लिखाने के लिए लड़कियों को सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा। एकमात्र यही तथ्य इस ‘राष्ट्र’ में लड़कियों की स्थिति को बयान करने के लिए काफी है।

भारतीय कुश्ती संघ में यौन हिंसा के खिलाफ मुंह खोलने की हिम्मत जुटाने वाली एक लड़की नाबालिग है। कानूनी रूप से ऐसे मामलों में एफआईआर तो तुरंत होनी ही चाहिए, गिरफ्तारी भी 24 घण्टे के अंदर हो जानी चाहिए, लेकिन यह भी नहीं हुआ। इसके लिए महिला पहलवानों को धरने पर बैठना पड़ा है, उनका धरना 23 अप्रैल से जंतर-मंतर पर चल रहा है जो लेख लिखे जाने तक जारी था, उन्हें समर्थन देने वालों का दायरा और कार्यक्रमों का दायरा बढ़ता जा रहा है। देश भर से लोग बृजभूषण की गिरफ्तारी के लिए धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं, ज्ञापन भेज रहे हैं, लेकिन उसकी गिरफ्तारी नहीं ही हुई। उल्टे इस बीच बृजभूषण शरण सिंह कई बार सोशल मीडिया पर आकर लड़कियों और उनको समर्थन करने वाले लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से धमकी भी दे चुका। उसने यह संकेत भी दे दिया, कि आरोपों की जांच के लिए गठित दोनों कमेटियां उसके खिलाफ कुछ भी नहीं कर सकेंगी। बॉक्सर मेरी कॉम की ही अध्यक्षता वाली जनवरी में गठित की गई इन दोनों कमेटियों के सदस्य भी लगभग एक ही हैं। यानी कमेटियों को इसलिए बनाया गया है कि लोगों को सिर्फ संतुष्ट किया जा सके, न कि न्याय हो सके। इसने अब तक जिस तरीके से काम किया है, उससे भी साफ होता है कि ये कमेटी सही रिपोर्ट पेश नहीं करेगी। इस कमेटी के सामने अपना बयान रखने वाली लड़कियों ने बताया कि उनके बयान लेते समय पूरा बयान रिकार्ड करने की बजाय बार-बार कैमरे खोले बंद किए जा रहे थे। आसपास ऐसे लोग मौजूद थे, जिनकी उपस्थिति ही धमकी जैसी थी। इस कमेटी में बाद में शामिल की गई बबिता फोगट ने भी कमेटी की कार्यशैली पर आरोप लगाये हैं। ये कमेटियां क्या न्याय देंगी, यह पहले से तय हैं। ऐसे में लड़कियों का डर स्वाभाविक है और आंदोलन वाजिब है।

हमारे प्रधानमंत्री जनवरी से (जब से लड़कियों ने संघ में होने वाली यौन हिंसा के खिलाफ मुंह खोला है) लेकर अब तक 5 बार अपने ‘मन की बातÓ बता चुके हैं, लेकिन इस गंभीर सरकारी अपराध पर एक शब्द भी नहीं बोला है। यह आश्चर्य की बात भी नहीं है, उनके ‘मनुÓ की बात ही यही है कि घर की चारदीवारी के बाहर कदम रखने वाली औरतों के साथ यही होगा। उनका ‘मनुÓ बोलता है कि औरतों की जगह घर में किसी के अधीन ही है, वे स्वतंत्र छोडऩे लायक नहीं। यह छिपी हुई बात नहीं है कि इस वक्त सत्ता में जो लोग हैं उनके मन में ‘मनु’ ही हैं। वरना यह आश्चर्यजनक है कि अपने एक सांसद को बचाने के लिए सरकार ने देश के लिए मेडल लाने वाली लड़कियों की सुरक्षा और देश की छवि तक को दांव पर लगा दिया है।

 

पहलवान लड़कियों का संघर्ष

इस पुरुष प्रधान देश में लड़कियों का पहलवानी या कुश्ती जैसे क्षेत्र में प्रवेश करना और अपनी जगह बनाना कितना कठिन रहा होगा, इसे समझा जा सकता है। सदियों से घरों के सीमित कामों तक समेट दी गई लड़कियों को अपनी मांसपेशियां बनाने में पुरुषों के मुकाबले कई गुना अधिक मेहनत करनी पड़ती है। समाज के व्यंग-बाणों का मौन रहकर या अपने कामों से जवाब देने के लिए पुरुषों के मुकाबले कई गुना अधिक मानसिक मजबूती की जरूरत होती है। कुश्ती, बॉक्सिंग, कराटे जैसे खेलों के बारे में थोड़ा भी जानने वाले लोग जानते होंगे कि इसमें सामने वाले को हराने के लिए एकाग्रता और मानसिक मजबूती की क्या भूमिका होती है। लेकिन जब लड़कियों के लिए बने कुश्ती संघ में ही यौन हिंसा द्वारा लड़कियों की मानसिक मजबूती पर हमले किए जा रहे हों, तो वे यह एकाग्रता कैसे बना सकेंगी। पीडि़त लड़कियों ने (जिसमें एक लड़की नाबालिग भी है) जो एफआईआर दर्ज कराई है, उसमें बृजभूषण सिंह के कारनामें सुनकर कोई भी न्यायपसंद इंसान आगबबूला हो जाएगा। सामान्य अभ्यास के दिनों में ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों तक के दौरान बृजभूषण सिंह उन पर यौन हमले करता रहा है। इसके बाद भी अपना मानसिक संतुलन बनाए रखकर लड़कियों ने देश के लिए पदक जीता है, तो उन्हें सलाम है।

लड़कियों की स्थिति यह थी कि कुश्ती संघ के अध्यक्ष के खिलाफ अगर वे मुंह खोलती हैं, तो उनका कुश्ती कैरियर नष्ट हो जाएगा, (बृजभूषण लड़कियों को यही धमकी देता रहा है) जिसके लिए उन्होंने इतनी मेहनत की है। अगर वे कैरियर को बचाने के लिए चुप रहती हैं तो इन यौन हमलों को झेलते हुए मानसिक संतुलन बनाए रखना एक मुश्किल काम है। इसी पशोपेश में लड़कियों ने कई सालों तक मुंह नहीं खोला, फिर आपसी एकजुटता कायम करके मुंह खोला, तो उसके बाद जो हुआ वो आपके सामने है।

उन पर की गई यौन हिंसा कितनी गंभीर और ‘राष्ट्रद्रोही’ कृत्य है, इसे समझना मुश्किल नहीं है। जब यह अपराध उच्च पद और प्रभाव वाले पुरुष द्वारा किया जा रहा हो, तो यह अपराध और भी जघन्य हो जाता है और जब यह अपराध नाबालिग लड़की या लड़के के साथ किया जा रहा है, तो यह अपराध जघन्यतम हो जाता है। बृजभूषण पर ऐसे ही जघन्यतम श्रेणी के अपराध के आरोप लगे हैं, फिर भी वह खुल्ला घूम-घूमकर अपने पक्ष में लोगों को जुटा रहा है, सरकारी बाहुबल का इस्तेमाल कर रैलिया करवा रहा है, यह सब करने में सत्तासीन ‘राष्ट्रवादीÓ पार्टी बृजभूषण सिंह के साथ खड़ी हैं, यह इस देश के लिए शर्मनाक है।

जो ‘राष्ट्रवादी’ लोग यह सवाल खड़े कर रहे हैं कि ‘पहले क्यों नहीं बोला अब क्यों बोला’ उनसे उल्टा सवाल है कि जब बोला तब भी क्यों नहीं कुछ हुआ? हमारे देश में लड़कियों के मुंह खोलने पर उन पर ही सवाल खड़े करने की जो संस्कृति है, उसी के कारण लड़कियों को मुंह खोलने में इतनी देर लगती है, वे तभी मुंह खोलती हैं, जब अति हो जाती है, या जब वे इन सवालों के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार कर लेती हैं। यह बेहद निंदनीय है कि यौन हिंसा के खिलाफ धरने पर बैठी लड़कियों/पीडि़तों के साथ भारतीय राज्य की रक्षक पुलिस ने 4 मई की रात में फिर से मार-पीट और यौन हिंसा की। ‘बेटी बचाओ’ का नाटक करने वाली महिला विरोधी विचार रखने वाली सरकार ने इस दिन अपना पितृसत्तात्मक पक्ष और मंशा साफ-साफ उजागर कर दिया।

 

पूरे मामले में सरकार का रूख

इन विरोध प्रदर्शनों के कारण अभी तक सिर्फ एक ही बात हुई है कि भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह का कार्यकाल जो कि 7 मई 2023 को समाप्त हो गया, उसे आगे नहीं बढ़ाया। बृजभूषण सिंह 2011 से कुश्ती संघ का अध्यक्ष है और उसने 7 मई को अपना तीसरा कार्यकाल पूरा किया। वह उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के केसरगंज क्षेत्र से 5 बार भाजपा से सांसद चुना गया है, बीच में एक बार समाजवादी पार्टी से भी। पहली बार 1991 में जब उसे भाजपा से चुनाव लडऩे का टिकट मिला, तभी उस पर 34 मुकदमे दर्ज थे, जिनकी संख्या सांसद बनने के बाद बढ़ गई। बाबरी मस्जिद विध्वंश में भी लालकृष्ण आडवानी के साथ वो आरोपी रहा है।

ऐसे दबंग व्यक्ति के खिलाफ लड़कियों ने मुंह खोला है, तो यह हिम्मत का काम है। बृजभूषण सिंह सामंती पितृसत्ता का उत्पाद भर नहीं, समाज में सामंती पितृसत्ता का मजबूत वाहक और रक्षक भी है। इसीलिए लड़कियों की लड़ाई अधिक मुश्किल है।

लड़कियों ने आरोप लगाया है कि बृजभूषण सिंह सालों से उनके साथ यौन हिंसा करता रहा है। देश भर के प्रमुख महिला संगठनों की नेतृत्वकारी टीम ने जब इस मामले की छानबीन की, तो पता चला कि भारतीय कुश्ती संघ के अंदर यौन हिंसा से संबंधित कोई ‘आंतरिक शिकायत समिति’ (आईसीसी) है ही नही, जो कि किसी भी 10 से अधिक कर्मचारी वाले संस्थान में कानूनी रूप से अनिवार्य है। सार्वजनिक स्थलों पर यौन हिंसा को रोकने के लिए 2013 में ‘यौन हिंसा रोकथाम कानून लाया गया, जो हर संस्थान में आईसीसी के गठन को अनिवार्य बताता है। लेकिन मई 2014 से देश को आजाद बताने वाली इस सरकार ने इतने बड़े संस्थान में इसकी जरूरत ही नहीं समझी। इस खबर के बाहर आने के बाद ‘इंडियन एक्सप्रेस ने इस विषय पर छानबीनकर यह खबर लगाई कि सिर्फ कुश्ती संघ ही नहीं, अधिकांश खेल संघों में आंतरिक शिकायत समिति है ही नहीं, जहां वे ऐसी घटनाओं की शिकायत दर्ज करा सकें। यह सब सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने तो स्वत: संज्ञान लेते हुए सभी खेल संघों से जवाब मांगा है, लेकिन सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के खिलाफ ऐसे असहज और असुरक्षित माहौल को ठीक करने की बजाय सरकार आरोपी बृजभूषण सिंह को गिरफ्तार करने की बजाय बचाने में बेशर्मी से लगी है। लेख लिखे जाने तक यह खबर मिल रही थी कि आगामी 5 जून को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट के जन्मदिन पर बृजभूषण सिंह खुद के समर्थन में एक बड़ी रैली करने की तैयारी कर रहा है, जिसमें वह कानूनी विशेषज्ञों से भाषण दिलवाएगा कि ऐसे आरोपों से बचने का क्या कानूनी प्रावधान है। यही है इस ‘राष्ट्रवादी’ समय का अमृतकाल।

महिलाओं को उनकी सुरक्षा के लिए बने कानून थाली में परोस कर नहीं मिले हैं, बल्कि इसके लिए उन्होनें संघर्ष किया है। भंवरी देवी बलात्कार कांड के बाद देश भर की महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीडऩ से बचाव के लिए कोर्ट से ‘विशाखा गाइडलाइंस’ मिली और निर्भया केस के बाद उठे आंदोलनों के दबाव में 2013 में क्कह्रस्॥ यानी ‘प्रिवेंशन ऑफ सेक्सुअल हरासमेंट’ कानून पास किया गया। लेकिन इस पितृसत्तात्मक समाज में सिर्फ कानून बनाने भर से कुछ नहीं बदलने वाला, उसे लागू कराने के लिए भी पीडि़तों को संघर्ष करना पड़ रहा है।

इस पृष्ठभूमि में देखें तो पहलवान लड़कियों की लड़ाई का संदर्भ सिर्फ कुश्ती संघ के अंदर यौन हिंसा तक सीमित न होकर बहुत व्यापक है। यह आंदोलन देश के विभिन्न संस्थानों में लड़कियों को सुरक्षित माहौल देने के संदर्भ में महत्वपूर्ण है और इससे भी महत्वपूर्ण कि यह आंदोलन महिलाओं के प्रति सरकार के रूख की पोल खोलने वाला है। हालांकि यह पहला मौका नहीं है, जब सरकार यौन हिंसा करने वालों के साथ खड़ी हुई है। इसके पहले भाजपा के उन्नाव सांसद कुलदीप सेंगर के मामले में भी वह सेंगर को बचाने में लगी रही, शाहजहांपुर के बाबा चिन्मयानंद के खिलाफ यौनहिंसा के मुकदमे को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी की सरकार ने वापस ही ले लिया। रामरहीम को बहुत दिनों तक भाजपा सरकार ने बचाया। लोगों के प्रतिरोध के कारण वो जेल भेजा भी गया, तो ज्यादातर समय पेरोल के नाम पर बाहर ही रहता है। जम्मू की बकरवाल समुदाय की बच्ची आसिफा के बलात्कारियों और हत्यारों को भाजपा की सरकार ने बचाने का पूरा प्रयास किया। लड़की के धार्मिक पहचान के कारण इस मामले में तो इस सरकार की पार्टी ने बलात्कारियों के समर्थन में तिरंगा झंडा लेकर रैली तक निकाली। हाथरस में दलित लड़की की बलात्कार और हत्या के ‘ठाकुर’ दोषियों को बचाने के लिए सरकारी पुलिस अधिकारियों ने लड़की की लाश रातों-रात जला डाली। इसकी रिपोर्टिंग करने वालों को, समर्थन देने के लिए जाने वालों को गिरफ्तार करवा लिया। बिलकिस बानो का जघन्य सामूहिक बलात्कार करने और उसकी छोटी बच्ची को पत्थर पर पटक कर मार देने वाले लोगों को इसी भाजपा सरकार ने ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ की पूर्व संध्या पर तोहफा देते हुए समय पूर्व जेल से रिहा कर दिया। जबकि उन्हें सजा दिलवाने के लिए व्यक्तियों और संगठनों को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा था। उदाहरण और भी हैं, जो इस सरकार के महिला विरोधी कारनामों का बयान करती है।

इनके ये कार्य इनके विचार को प्रकट करती हैं। ये जिस किताब को अपना संविधान मानते हैं, वो किताब यानी मनुस्मृति औरतों को नागरिक नहीं मानती है, बल्कि पुरुषों की सेवादार, सेक्स का साधन और उनके वंश चलाने यानी बच्चे पैदा करने की मशीन मानते है। उस किताब में महिलाओं द्वारा एकनिष्ठता तोडऩे, अपनी मर्जी से प्रेम और विवाह करने पर कई सारे दंड बताये गए हैं, (अगर ये संबंध दलित पुरुष के साथ बनते हैं तो पुरुष को और अधिक दंडित करने का प्रावधान है) लेकिन सवर्ण पुरुषों के लिए दंड का कोई प्रावधान नहीं है, बल्कि उन्हें दलित स्त्रियों के साथ जबरन संबंध बनाने की छूट मिली हुई है। इस धार्मिक पुस्तक के विचार औरतों को बराबरी का इंसान नहीं, बल्कि भोगने की वस्तु बनाते हैं। इस धार्मिक पुस्तक के विचार पुरुषों को अराजक और छुट्टा सांड़ बनाते हैं। यह किताब खुल्ल-खुल्ला भाजपा के मातृ संगठन आरएसएस के लिए संविधान और पवित्र पुस्तक है। तो भला इस विचार से जुड़े लोग महिलाओं के साथ कैसे पेश आएंगे? वैसे ही-जैसे चिन्मयानंद, सेंगर, और बृजभूषण पेश आए हैं। तो भला इस विचार से जुड़े प्रधानमंत्री, गृहमंत्री महिलाओं को कैसे न्याय देगे, वैसे ही-जैसे वे बृजभूषण सिंह को खुल्ला छोड़कर महिला खिलाडिय़ों को दे रहे हैं। यह लड़ाई कानूनी तो है ही, साथ ही वैचारिक-राजनीतिक और सामाजिक भी है। सरकार ऐसे हर मामले में लड़कियों के खिलाफ और आरोपियों के पक्ष में न सिर्फ खुद खड़ी हो रही है, बल्कि जनता के एक बड़े महिला विरोधी तबके को अपने समर्थन में खड़ा कर ले रही है। यह जनता से जनता को लड़ाने का फासीवादी तरीका है, जिससे सत्ता खुद निशाना बनने से बच जाती है। जबकि महिला पहलवानों की लड़ाई वास्तव में मनुवादी पितृसत्तात्मक सत्ता से है। उनकी लड़ाई का संदर्भ व्यापक है, यह समाज को लोकतान्त्रिक बनाने की लड़ाई का हिस्सा है। इसलिए यह केवल उनकी नहीं, हम सबकी लड़ाई है।

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