टीकाकरण में पिछड़ता भारत

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– सिद्धार्थ

देशीविदेशी अधिकांश गैरसरकारी विशेषज्ञ और जमीनी रिपोर्टर इस तथ्य से सहमत हैं कि भारत में कोरोना की दूसरी लहर में कम से कम 15 लाख लोग मारे गए हैं। वहीं, विशेषज्ञ भारत के टीकाकरण की वर्तमान धीमी गति से आशंकित हैं और चेतावनी दे रहे हैं कि भारत कोरोना महामारी की कई लहरों की चपेट में सकता है और लाखों नहीं, कोरोड़ों लोगों की जिंदगियां खतरे में पड़ सकती हैं, भारत का यह संकट दुनिया के लिए भी संकट का सबब बनेगा।

 

भारत सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, कोरोना की दूसरी लहर के चलते अब तक (28 मई, 2021) 3 लाख 22 हजार 321 लोगों की मौत हो चुकी है। बहुत सारे विशेषज्ञों का कहना है कि वास्तविक आंकड़ा इससे 5 से 10 गुना अधिक है। देश-दुनिया के सारे विशेषज्ञ भारत सरकार के आधिकारिक आंकड़े को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। इस संदर्भ में ‘द न्यूयॉर्क टाइम्सÓ समाचारपत्र ने 25 मई को वैज्ञानिक मॉडल के आधार पर संक्रमित होने वाले और मरने वालों की वास्तविक अनुमानित संख्या के संदर्भ में आंकड़े प्रस्तुत किए। भारत के आधिकारिक आंकड़ों के संदर्भ में अखबार लिखता है- ”रिकॉर्ड के खराब रख-रखाव और व्यापक पैमाने पर परीक्षण की कमी के चलते भारत में संक्रमणों की कुल संख्या की भी स्पष्ट तस्वीर प्राप्त करना कठिन है। मौतों की सही संख्या जानने के लिए संक्रमित लोगों में होने वाली मौतों की संख्या के आधार पर एक अनुमान लगाने वाली एक्स्ट्रापोलेशन तकनीक के एक और चरण के इस्तेमाल की जरूरत होती है।“ भारत में तबाही के सही स्वरूप को जानने के लिए न्यूयॉर्क टाइम्स ने दर्जन भर विशेषज्ञों के साथ भारत में तारीखवार संक्रमणों, मौतों तथा बड़े पैमाने पर एंटीबॉडी परीक्षणों का विश्लेषण किया, ताकि अनेक संभावित अनुमानों पर पहुंचा जा सके। अखबार विशेषज्ञों के मॉडलों के आधार पर एक सबसे ज्यादा संभावित परिदृश्य प्रस्तुत करता है, जिसके अनुसार 53.9 करोड़ लोग संक्रमित हुए और 16 लाख लोगों की मौत हुई, लेकिन इस परिदृश्य को भी पूरी तरह से प्रमाणिक नहीं मानता। अखबार 0.6 प्रतिशत मृत्यु दर के आधार पर यह अंदाज लगाता है कि 70.07 करोड़ लोग संक्रमित हुए और 42 लाख लोगों की मौत हुई। गांव, कस्बों और महानगरों के श्मशान स्थलों और कब्रिस्तानों के लिखित और अनुभवजन्य आंकड़े भी बड़ी संख्या में लोगों की दूसरी लहर में कोरोना से मृत्यु की पुष्टि करते हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स का यह कहना ठीक है- ”हालांकि समय और क्षेत्र के लिहाज से अनुमानों में भिन्नता आ सकती है, फिर एक बात बिल्कुल स्पष्ट है कि भारत में महामारी का आकार आधिकारिक आंकड़ों की तुलना में बहुत बड़ा है।‘’ देशी-विदेशी अधिकांश गैर-सरकारी विशेषज्ञ और जमीनी रिपोर्टर इस तथ्य से सहमत हैं कि भारत में कोरोना की दूसरी लहर में कम से कम 15 लाख लोग मारे गए हैं। ये 15 लाख लोग आंकड़े नहीं, जीते-जागते इंसान थे। सभी महामारी विशेषज्ञों, जिसमें सरकारी विशेषज्ञ भी शामिल हैं, का कहना है कि कोरोना की तीसरी लहर अपरिहार्य है, तीसरी लहर ही नहीं, चौथी-पांचवी अनेक लहरें आ सकती हैं और हर अगली लहर पिछली लहर से ज्यादा घातक और मारक हो सकती है, क्योंकि कोरोना का वायरस लगातार म्यूटेट कर रहा है और अपनी संक्रामकता और मारकता, दोनों को बढ़ा रहा है।

कोरोना संक्रमण से जुड़े सारी दुनिया के विशेषज्ञ एक स्वर से इस बात से सहमत थे और हैं कि कोरोना का शिकार होने और मरने से लोगों को बचाने का एकमात्र पुख्ता रास्ता आबादी के अधिकतम हिस्से का टीकाकरण है। जब तक टीकों की खोज नहीं हुई थी, तब तक सारी दुनिया टकटकी लगाए बाट जोह रही थी कि जल्द से जल्द कोरोना से बचाव करने वाले टीकों की खोज हो। आखिरकार दुनिया के वैज्ञानिकों-महामारी विशेषज्ञों ने मिलकर कोरोना से बचाव के टीकों को विकसित करने में सफलता प्राप्त कर ली। अब तक दुनियाभर में 15 टीकों को आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी दी जा चुकी है। इन टीकों में शामिल हैं- फाइजर-बायोएनटेक, मॉडर्ना (आरएनए वैक्सीन), ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका, स्पुतनिक वी, जॉनसन एडं जॉनसन, कोविनडेसिया, स्पुतनिक लाइट (एडेनोवायरस वेक्टर वैक्सीन), सीनोफार्मा (बीबीआईबीपी), कोरोना वैक्स, कोवैक्सीन, सीनोफार्म (डब्ल्यूआईबीपी), कोविवैक्स, क्वाजकोविड-इन, (इनएक्टिव वायरस वैक्सीन), इपीवैककोरोना, आरबीडी-डाइमर (प्रोटीन सबयूनिट वैक्सीन)। अन्य बहुत सारी वैक्सीन ट्रायल के चरण में हैं और जल्दी ही उनके इस्तेमाल की मंजूरी मिल जाने की संभावना है। भारतीय वैज्ञानिक और चिकित्सा विशेषज्ञों ने मिलकर एक टीका भारत में भी तैयार किया है, जिसे कोवैक्सीन नाम दिया गया है, जिसके उपयोग की आपातकालीन मंजूरी भारत सरकार द्वारा मिल चुकी है, हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अभी इसे औपचारिक मंजूरी नहीं दी है। ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को भी भारत में इस्तेमाल की आपातकालीन मंजूरी मिल चुकी है। इसके अलावा रूस निर्मित वैक्सीन स्पुतनिक-वी को भारत में इस्तेमाल की आपातकालीन मंजूरी मिल चुकी है।

 

एकमात्र विकल्प

सारी दुनिया यह तथ्य स्वीकार कर चुकी है कि कोरोना से बचाव का पुख्ता इंतजाम टीका है। इस तथ्य की स्वीकृति का परिणाम है कि योरोप-अमेरिका ने युद्ध स्तर पर अपने नागरिकों का टीकाकरण किया और उसके परिणाम भी सामने आने शुरू हो गए हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका की कुल आबादी के 40.7 प्रतिशत लोगों (13 करोड़ 35 लाख 32 हजार 544) का पूरी तरह टीकाकरण हो चुका है यानी उन्हें टीके के दोनों डोज दिए जा चुके हैं और 50.7 प्रतिशत लोगों (16 करोड़ 63 लाख 88 हजार 129) को कम से कम टीके का एक डोज दिया जा चुका है (28 मई तक)। संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने यहां 16 वर्ष तक के किशोरों का भी टीकाकरण शुरू कर दिया है। ब्रिटेन में 36.7 प्रतिशत लोगों का पूरी तरह टीकाकरण हो चुका है और 50.3 प्रतिशत लोगों को कम से कम टीके की एक डोज दी जा चुकी है (27 मई तक)। जर्मनी में 17.1 प्रतिशत लोगों को टीके के दोनों डोज और 43.2 प्रतिशत लोगों को टीके का एक डोज दिया जा चुका है (28 मई तक)। चीन में 60.3 करोड़ लोगों को टीके का डोज दिया जा चुका है (28 मई तक)। भारत में सिर्फ 4 प्रतिशत (4 करोड़ 25 लाख 62 हजार 240) लोगों का पूरी तरह टीकाकरण हुआ है। 17.6 प्रतिशत (29 मई, हिंदू) लोगों को एक डोज दिया गया। भारत में 29 मई तक कुल 20 करोड़ 89 लाख 02 हजार 445 लोगों (इंडियन एक्सप्रेस,30 मई) के टीके का एक या दो डोज दिया गया है। भारत को कम से कम अपनी आबादी के 70 प्रतिशत यानी 108 करोड़ लोगों का टीकाकरण करना आवश्यक है। 108 करोड़ में सिर्फ 20 करोड़ 89 लाख 02 हजार 445 लोगों को ही एक डोज दिया जा सका है और जिन्हें टीका दिया जाना है, उनमें सिर्फ 4 करोड़ 25 लाख 62 हजार लोगों को दोनों डोज दिए गए हैं।

भारत को अपनी आबादी के 70 प्रतिशत यानी 108 करोड़ लोगों को टीका देने के लिए कम से कम 216 करोड़ डोज की जरूरत होगी। यदि यह मान लिया जाए कि कोई भी डोज खराब नहीं होगी, ऐसा किसी भी स्थिति में संभव नहीं होता यानी भारत को कम से कम 220 से 225 करोड़ डोज की न्यूनतम जरूरत है। लेकिन सिर्फ 220 करोड़ डोज से काम नहीं चल सकता, क्योंकि जब तक सभी लोगों का पूरी तरह टीकाकरण होगा, तब अगले बूस्टर डोज की जरूरत पड़ जाएगी, क्योंकि दोनों डोज के बाद कोरोना के खिलाफ कितने दिन तक इम्युनिटी रहेगी, अभी यह पूरी तरह पता नहीं है। यह 6 महीने में भी खत्म हो सकती है, ऐसा कुछ विशेषज्ञ कह रहे हैं, लेकिन सभी को बूस्टर डोज की जरूरत पड़ेगी। सभी विशेषज्ञ इस तथ्य से सहमत हैं यानी हर वर्ष 100 करोड़ या इससे अधिक बूस्टर डोज की जरूरत पड़ सकती है, यह सिलसिला कितने वर्षों तक चलेगा, अभी कोई भी दावे के साथ इसके बारे में कह नहीं सकता है।

भले ही भारत सरकार यह दावा कर रही है कि वह 31 दिसंबर, 2021 तक सभी व्यस्क (18 वर्ष से ऊपर) लोगों का पूर्ण टीकाकरण कर देगी, लेकिन कोई भी इस पर विश्वास नहीं कर पा रहा है, क्योंकि औसत तौर पर जिस वर्तमान दर से प्रतिदिन टीकाकरण हो रहा है, उस दर से 2023 के अंत तक ही टीकाकरण हो पाएगा। कुछ का कहना है कि यह प्रक्रिया 2024 तक भी चलती रह सकती है। यदि पूर्ण टीकाकरण के लिए जरूरी दो डोज देने की यह स्थिति है, तो हर छ: महीने या साल भर के अंदर बूस्टर डोज की स्थिति क्या होगी?

भारत टीकाकरण में निरंतर पिछड़ा जा रहा है। 1 अप्रैल तक भारत में प्रति 100 लोगों पर 5 को टीके का डोज दिया जा रहा था। भारत की तुलना में ब्राजील, चीन, रूस, मैक्सिको में यह दर 6.7 से 9.7 प्रतिशत के बीच थी। लेकिन 56 दिनों बाद (1 अप्रैल से 26 मई) यह अंतर बहुत ज्यादा बढ़ गया। भारत की प्रति व्यक्ति 100 पर यह दर 14 हुई, तो चीन की बढ़कर 38, ब्राजील की 30 और मैक्सिको की 21 हो गई यानी भारत बहुत तेजी से विकासशील देशों की तुलना में टीकाकरण की दर में पीछे छूट गया।

 

 

पिछड़ता भारत

भारत टीकाकरण की प्रक्रिया में न केवल विकसित देशों, बल्कि चीन, ब्राजील और मैक्सिको जैसे विकासशील देशों से भी काफी पीछे छूट गया है, जबकि भारत को टीका-निर्माण का हब माना जाता है और भारत ने अपने एक पूर्ण स्वदेशी टीका कोवैक्सीन को भी विकसित कर लिया था और उसे 2 जनवरी, 2021 को ही आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी मिल गई थी। इस टीके को प्राइवेट कंपनी भारत बायोटेक और आईसीएमआर के सहयोग से विकसित किया गया था। इसी तरह ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका को भारत में इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी 1 जनवरी को मिल गई थी, जिसे भारत में ‘कोविशिल्डÓ नाम से जाना जाता है। जिसकी डोज पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) को तैयार करनी थी। इस तरह भारत के पास जनवरी की शुरुआत में इस्तेमाल के लिए दो वैक्सीन मौजूद थीं। भारत में 17 जनवरी को ही टीकाकरण का अभियान शुरू हो गया था। पहले ही दिन 1 लाख 91 हजार 181 लोगों को टीके की पहली डोज दी गई थी। इस तरह भारत में टीकाकरण का अभियान शुरू हुए करीब 4 महीने 15 दिन बीत चुके हैं और अब सिर्फ 20 करोड़ 89 लाख 02 हजार 445 लोगों (29 मई तक) को एक या दोनों डोज दिए गए हैं, जबकि करीब 220 करोड़ डोज देने हैं यानी करीब 200 करोड़ डोज अभी देने बाकी हैं। 29 मई को कुल 29.2 लाख वैक्सीन के डोज दिए गए। भारत सरकार कह रही है कि 31 दिसंबर, 2021 तक सभी लोगों का टीकाकरण कर दिया जाएगा। इसके लिए आवश्यक है कि प्रतिदिन 90 लाख डोज दिए जाएं। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि भारत में 31 दिसंबर, 2021 तक सभी लोगों का टीकाकरण कर दिया जाएगा। लेकिन टीकाकरण की जो वर्तमान दर है, उसके अनुसार तो सभी लोगों का टीकाकरण 2023 के अंत तक भी पूरा नहीं हो पाएगा। क्या वर्तमान दर से करीब तीन गुना टीकाकरण कल से शुरू हो जाएगा, क्या इसके लिए टीका उपलब्ध है, सबका जवाब है नहीं।

सारे देशी-विदेशी विशेषज्ञ भारत के टीकाकरण की वर्तमान धीमी गति से आशंकित हैं और चेतावनी दे रहे हैं कि भारत कोरोना महामारी के कई लहरों की चपेट में आ सकता है और लाखों नहीं, कोरोड़ों लोगों की जिंदगियां खतरे में पड़ सकती हैं, भारत का यह संकट दुनिया के लिए संकट का सबब बनेगा। यह कई तरीके से होगा। पहला, यदि भारत कोरोना से मुक्त नहीं होता है, तो पूरी दुनिया भी इससे मुक्त नहीं हो सकती है, क्योंकि यह एक वैश्विक संकट है, जिसका समाधान पूरे विश्व के लोगों के कोरोना से मुक्त होने में निहित है। इसका दूसरा कारण यह है कि यदि भारत में कोरोना की कई लहरें आती हैं, तो वायरस म्यूटेट करता रहेगा और वह ज्यादा संक्रामक और जानलेवा बन सकता है, जो दुनिया के लिए खतरा बन सकता है, इसका प्रमाण दूसरी लहर में सामने आ गया है।

भारत में म्यूटेट कोरोना वायरस के रूप दूसरे अन्य देशों में पाए गए हैं, जो उनके लिए खतरे की घंटी बन रहे हैं। तीसरी वजह विशेषज्ञ यह बता रहे हैं कि यदि टीकाकरण की गति बहुत धीमी रहती है, तो वायरस टीकाकृत लोगों के संपर्क में आकर म्यूटेट कर सकता है और ज्यादा संक्रामक और जानलेवा बनकर उन लोगों को शिकार बना सकता है, जिनका टीकाकरण नहीं हुआ है। ये सारी प्रक्रियाएं एक साथ मिलकर वायरस को ज्यादा संक्रामक और जानलेवा बना सकते हैं, जो देश और दुनिया दोनों के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है।

सारे तथ्य चीख-चीख कर कह रहे हैं कि भारत में टीके की धीमी गति का एकमात्र कारण टीके की अनुपलब्धता है। यह तर्क करीब-करीब पूरी तरह खारिज हो गया है कि टीका लगाने के प्रति हिचक के चलते भारत में टीका नहीं लग पा रहा है। सारे प्रामाणिक सर्वे यह बता रहे हैं कि भारत में 90 प्रतिशत लोग टीका लगाने के इच्छुक हैं। यह प्रतिशत किसी भी देश की तुलना में कम नहीं है। हां, यह जरूर है कि दूसरी लहर की भयावहता और टीके से बचाव के प्रमाण ने इस दिशा में लोगों को प्रेरित किया है।

 

उत्पादन विशेषज्ञ और टीके की  किल्लत?

सबसे मुख्य प्रश्न यह है कि जो देश उन देशों में शामिल था, जिसने खुद का अपना टीका (कोवैक्सिन) बना लिया और जिस देश की टीका उत्पादन में विशेषज्ञता दुनिया में स्थापित है, आखिर उस देश में टीके की इतनी अधिक किल्लत क्यों हो गई? स्थिति यह हो गई है कि हमारे विदेश मंत्री घूम-घूम कर पूरी दुनिया से टीके की मांग कर रहे हैं और कोई कंपनी टीका देने को तैयार नहीं है, क्योंकि उनके 2023 तक के उत्पादन के कोटे को पहले ही अन्य देशों ने बुक करा लिया है और अब भारत टीका कंपनियों के उन शर्तों को भी स्वीकार करने के लिए तैयार होता दिख रहा है, जिस पर शायद ही कोई संप्रभु देश तैयार हो। जैसे फाइजर (टीका) कंपनी कह रही है कि उसके टीके से किसी कारण से किसी की जान जाती है, तो वह उसकी क्षतिपूर्ति नहीं देगा, जबकि मानक सिद्धांत यह है कि क्षतिपूर्ति टीका बनाने वाली कंपनी देती है। उसकी अन्य भी शर्तें हैं, जैसे भारत में टीके के परीक्षण के बिना उसके इस्तेमाल की मंजूरी।

इस स्थिति के लिए निम्न मुख्य कारण जिम्मेदार हैं- पहला यह कि केंद्र सरकार कोरोना की पहली लहर में अपनी सफलता की ढोल पीटने और अपनी पीठ थपथपाने में इस कदर मशगूल हो गई कि वह यह भूल ही गई कि कोरोना को पराजित करना या कोरोना के खिलाफ विजय हासिल करना नफरत फैलाकर चुनाव जीतना या जोड़-तोड़ करके सरकार बनाना नहीं, बल्कि वह एक वायरस है और उसके खिलाफ जंग ठोस उपायों और वैज्ञानिक सोच के आधार पर जीती जा सकती है, जिसमें विश्व गुरु बनने की डींग कोई भूमिका अदा नहीं कर सकती है। सच तो यह है कि कोरोना की पहली लहर के कमजोर पड़ते ही और कोवैक्सिन को आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी मिलते ही, भारतीय प्रधानमंत्री और उनके चाटुकार इस तरह आत्ममुग्ध हो गए कि उन्होंने कोरोना से जीत की घोषणा कर दी और टीकाकरण के मामले में विश्व गुरु की भूमिका का ऐलान कर दिया।

यह ऐलान सिर्फ भारत में ही नहीं, विश्वभर के नेताओं के समक्ष स्वयं प्रधानमंत्री ने किया। जनवरी में, नरेंद्र मोदी ने दावोस की सालाना बैठक के संदर्भ में कहा : ”हमने कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई को एक जन आंदोलन में बदल दिया और आज भारत लोगों का जीवन बचाने के मामले में सबसे सफल देशों में से एक है…। जबकि भारत निर्मित दो टीके पहले ही दुनिया के सामने पेश किए जा चुके हैं, अभी भारत के पास देने के लिए और भी बहुत कुछ है। …हमने दुनिया को रास्ता दिखाया कि कैसे भारत की पारंपरिक चिकित्सा और आयुर्वेद प्रतिरोधक क्षमता में सुधार करने में मदद कर सकती है। आज भारत कई देशों को अपने टीके भेज रहा है और सफल टीकाकरण के लिए बुनियादी ढांचे को विकसित करने में मदद कर रहा है, इससे उन देशों के नागरिकों की जान बच रही है।‘’

कोई भी कल्पना कर सकता है, जिस देश का सर्वेसर्वा प्रधानमंत्री इतना आत्ममुग्ध तरीके से कोरोना के खिलाफ विजय की घोषणा कर रहा हो और दुनिया की अगुवाई करने का दावा कर रहा हो, वह तथ्यों पर आधारित वास्तविकता से कितना अनभिज्ञ था या उसे अनदेखा किया। उसका परिणाम सामने आया। जब दुश्मन (कोरोना) के खिलाफ विजय हो गई, फिर तो कुछ करने की जरूरत ही नहीं बची, सिर्फ एक जरूरत बची थी, दुनिया को कोरोना से मुक्त करना और ऐतिहासिक हीनताबोध-जनित कुंठा से पैदा हुए विश्व गुरु बनने के स्वप्न को साकार करना।

इस दिशा में पहला कदम उठाते हुए भारत ने 6 करोड़ 45 लाख टीके दुनिया के अन्य देशों को भेज दिए। कुल भेजे गए टीकों में 3 करोड़ 57 लाख डोज वाणिज्यिक आपूर्ति के तौर पर और बाकी एक करोड़ पांच लाख डोज विभिन्न देशों को अनुदान के तहत भेजे गए थे। यह टीके उन देशों में भेजे गए जहां कोरोना महामारी का संक्रमण अभी फैला भी नहीं था और संक्रमण एवं मृत्यु दर, दोनों भारत से कम थे। यहां तक कि अप्रैल में जब संक्रमण दर भारत में तेज हुआ तब तक निर्यात जारी था। 22 अप्रैल को जब भारत में विश्व के सर्वाधिक 3.32 लाख केस आए थे उस दिन भी केंद्र सरकार ने पैराग्वे को दो लाख वैक्सीन निर्यात की थी। विजय के उल्लास में भारत सरकार इस कदर मस्त थी कि उसने भारत बायोटेक (कोवैक्सिन) या सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को टीका बनाने का कोई एडवांस आर्डर नहीं दिया। ये कंपनियां अपने रिस्क पर कुछ न्यूनतम टीके एडवांस में बना रही थीं, इस उम्मीद में कि कोई-न-कोई इसे खरीद लेगा। जबकि इसके उलट दुनिया के कई सारे देश (योरोप-अमेरिका, चीन-रूस) टीका बनाने वाली कंपनियों को टीका बनने से पहले ही एडवांस आर्डर दे चुके थे और उसके लिए एडवांस भुगतान भी कर चुके थे।

कई कंपनियों को यह भुगतान और एडवांस आर्डर 2023 तक के संपूर्ण उत्पादन के लिए दिया गया। दूसरी तरफ भारत ने विजय मुद्रा में न तो किसी विदेशी कंपनी को आर्डर दिया और न ही टीके के लिए कोई समझौता किया। जिन कंपनियों ने आपातकालीन इस्तेमाल के लिए भारत सरकार को एप्रोच किया, उनके साथ भी ऐसा व्यवहार किया गया है, जैसे भारत को अब बाहर से किसी टीके की कोई जरूरत ही नहीं है। जब स्थिति अत्यंत भयावह हो गई, तो आनन-फानन में रूस के टीके स्पुतनिक-वी को आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी दी गई। अब स्थिति यह आ गई है कि किसी भी शर्त पर टीके के लिए तैयार हैं और विदेशमंत्री दुनिया को उपदेश दे रहे हैं कि विश्व के सभी लोगों के टीकाकरण (निहितार्थ भारत) के बाद ही दुनिया कोरोना वायरस से सुरक्षित हो सकती है। जगजाहिर है कि भारत टीके के लिए दुनिया के सामने घुटने टेक चुका है, जो काम सम्मानजनक तरीके से और कम कीमत पर हो सकता था और लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती थी, उसके लिए गिड़गिडऩा पड़ रहा है। खतरा फिलहाल टलता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है, क्योंकि किसी भी सूरत में केंद्र सरकार अपनी विफलता को मानने और जमीनी सच्चाई को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। यह सब कुछ भारत के लोगों पर बहुत भारी पड़ चुका है, पता नहीं इसकी और कितनी कीमत, किस किस  रूप में चुकानी पड़े। अब प्रकृति या कोई संयोग ही हमारी मदद कर सकता है। आत्ममुग्ध और हीनताबोध से ग्रस्त प्रधानमंत्री और उनके चाटुकार सहयोगियों सलाहकारों के लिए यह मुश्किल चुनौती नजर आ रहा है।

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