– गगनदीप सिंह
पिछले साल मानसून हिमाचल प्रदेश के लिए बहुत भयंकर किस्म की तबाही लेकर आया था। आपदा प्रबंधन–भू–राजस्व विभाग द्वारा जारी रिपोर्ट भू–स्खलन की एक डरावनी तस्वीर पेश करती है। यह सोचने पर मजबूर करती है कि हम विकास के नाम पर कहीं विनाश की कहानी तो नहीं लिख रहे। क्या इस साल भी मानसून हिमाचल के लिए तबाही लेकर आएगा। पिछले साल की कुछ घटनाओं पर गौर करें।
12 जुलाई, 2021 कांगड़ा जिला के गांव भोह में करीब 10.30 बजे भंयकर बारिश के कारण आई बाढ़ से भारी तबाही हुई थी। जिसमें 10 व्यक्ति मारे गए, 5 घायल हुए थे। इसके अलावा 11 घर गिरे, सड़कें तबाह हुईं और खेती की जमीन बर्बाद हो गई। इसने आस पास के इलाके को भी प्रभावित किया।
25 जुलाई को 1 बजकर 10 मिनट पर किन्नौर जिले के सांगला–छित्तकुल रोड पर बटसेरी गांव के किनारे पर भारी मात्रा में पत्थर गिरे। पत्थर मिनी बस पर भी गिरे जिसमें सवार 9 पर्यटकों की मौत हो गई, तीन अन्य ग्रामीण भी घायल हुए। बस्पा नदी पर बना पुल बमबारी से ध्वस्त हुए पुल की तरह एक झटके में टूट गया। इसकी वायरल हुई वीडियो हिमाचल में भू–स्खलन का प्रतीक बन गई और देश में पहली बार हिमाचल का पर्यावरण चर्चा में आया। इसका कारण शायद यह भी था कि इस घटना में मारे गए सारे पर्यटक देश के दूसरे राज्यों के थे।
पिछले साल मानसून में जान–माल का सबसे अधिक नुकसान 11 अगस्त, 2021 को जिला किन्नौर के गांव निगुलसेरी में हुआ, जहां एक सरकारी बस भू–स्खलन की चपेट में आ गई थी, पूरी पहाड़ी बस पर टूट कर गिर गई थी। जिसमें एक बस, एक ट्रक और दो कारें दब गई। इस घटना में 28 व्यक्ति मारे गए थे और 13 घायल हुए थे।
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हिमाचल प्रदेश का कुल क्षेत्रफल 55673 वर्ग किलोमीटर है और इसमें से 42093 वर्ग किलोमीटर इलाका संभावित भू–स्खलन जोन में आना हिमाचल के आर्थिक जन–जीवन के लिए भयानक खतरे की घंटी है। सरकारी आकलन के अनुसार, जून, 13 से लेकर 20 सितंबर, 2021 तक प्रदेश भर में भू–स्खलन, बादल फटने, बाढ़, पेड़, घर आदि गिरने से 410 लोगों की मौत हो चुकी थी और 12 लोग लापता थे। वहीं 688 पशु मारे गए, 1050 घर और 676 पशुशालाओं का नुकसान हुआ। पिछले साल विभागों के अनुसार खर्च का आकलन किया जाए तो पीडब्लूडी को 388 करोड़, जलशक्ति विभाग को 308 करोड़, कृषि विभाग का 45 करोड़, बागवानी विभाग का 28 करोड़, ग्रामीण विकास विभाग का 4 करोड़, शहरी विकास विभाग का 8 करोड़, विद्युत विभाग का 5 करोड़ व शिक्षा, स्वास्थ्य विभाग के नुकसान को जोड़कर प्रदेश में कुल 1 हजार 64 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था।
राज्य में भू–स्खलन संबंधी अर्ली वार्निंग सिस्टम एवं आवश्यक रणनीति पर 21 सितंबर, 2021 को मुख्य सचिव हिमाचल प्रदेश राम सुभाग सिंह की अध्यक्षता में मीटिंग हुई जिसमें भारतीय भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण के विशेषज्ञ डॉक्टर सैबल घोष ने भी भाग लिया। उन्होंने विभिन्न पहलुओं जैसे भू–विज्ञान, वर्षा, भूमि उपयोग, मिट्टी आदि पर आधारित मानचित्र प्रस्तुत किया, जिसमें स्पष्ट तौर पर 17000 के करीब स्थान चिन्हित किए गए हैं जहां पर भू–स्खलन हो सकता है। इसमें से 6000 स्थान भारतीय भू–वैज्ञानिक सर्वेक्षण ने जमीनी अध्ययन के बाद चिन्हित किए हैं। ये 6000 हजार स्थान अकेले चंबा, किन्नौर, कुल्ली और लाहौल स्पिति में पड़ते हैं। उनका कहना है कि इस डेटा को समय–समय पर अपडेट किए जाने की जरूरत है। इस मानचित्र में पिछले साल मानसून में सर्वाधिक प्रभावित हुई बोह, निगुलसरी और बटसेरी भू–स्खलन जगहों का भी उल्लेख था। इस रिपोर्ट में किन्नौर के रिकांगपिओ को सर्वाधिक संभावित खतरनाक भू–स्खलन जोन में चिन्हित किया गया है जिसके लिए विशेष योजना बनाए जाने की अनुशंसा की गई है।
हिमाचल प्रदेश में जिलावर भू–स्खलन संभावित क्षेत्र
बिलासपुर-446, चंबा-2384, गुरदासपुर-6, हमीरपुर-124, कांगड़ा-1781, किन्नौर-1556, कुल्लू-1327, लाहौल स्पिती-2296, मंडी-1799, शिमला-1358, सिरमौर-2563, सोलन-1037, उना-391
हिमाचल प्रदेश सरकार का आपदा प्रबंधन, राजस्व विभाग अपनी प्रस्तुति में मानता है कि प्रदेश में मानसून के दौरान अधिक भू–स्खलन होता है, क्योंकि भौगोलिक रूप से हिमालय नवीन पर्वत श्रृंखला है और इसकी ढलाने अभी टिकाऊ नहीं हैं, पिछले दशक में तेजी के साथ अनुचित रूप से मानवीय गतिविधियों में इजाफा हुआ है, हिमाचल प्रदेश की नाजुक भू–गर्भीय संरचना और जल–मौसम संबंधी परिस्थितियां भू–स्खलन की संभावनाओं को और बढ़ाते हैं। खासतौर पर जलवायु परिवर्तन, बारिश के स्वरूप में बदलाव, रोड कटिंग, माइनिंग, भूमि उपयोग स्वरूप में बदलाव, जंगलों का कटाव, बढ़ते निर्माण ढांचे इसके लिए सीधे रूप में जिम्मेदार हैं। वहीं समाचार एजेंसी यूएनआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, नेशनल हाई–वे अथॉरिटी को भी यह रिपोर्ट सौंपी गई है, जो कि हिमाचल में रोड निर्माण का कार्य देखती है। आगे से कहा जा रहा है कि बिना भू–वैज्ञानिक जांच के कोई डीपीआर तैयार नहीं की जाएगी।
क्या इन घटनाओं को रोका जा सकता था
उपरोक्त घटनाओं की लिए जांच कमेटियां बनी, भारतीय भू–वैज्ञानिक सर्वेक्षण की हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, चंडीगढ़ इकाइयों ने इनका अध्ययन किया। हिमाचल प्रदेश में घटी बहुत सारी भू–स्खलन की घटनाओं को पहले ही विभाग द्वारा चिन्हित किया जा चुका था। निगुलसेरी में इस से पहले 2019 में भी इसी स्थान पर भू–स्खलन हुआ था। इतना ही नहीं पहले से ही भारतीय भू–सर्वेक्षण विभाग इस स्थान को उच्च संभावित भू–स्खलन स्थान के रूप में चिन्हित किया हुआ था।
बटसेरी घटना की जांच करने वाली कमेटी के लिए तकनीकी रूप से इसकी गंभीरता केवल 75 सेकेंड थी, लेकिन यह हादसा आने वाले 75 साल तक भी नहीं भुलाया जा सकेगा। जांच टीम ने पाया कि बारिश के हिसाब से यह हिमाचल के सबसे सूखे इलाकों में से है, जहां पर केवल 50 से 100 मिमी तक वर्षा दर्ज होती है और तापमान 12 से 20 डिग्री के आसपास बना रहता है। अपने निष्कर्ष में कमेटी लिखती है कि यह स्थान 2018-19 के भारतीय भू–वैज्ञानिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में भू–स्खलन संभावित स्थान के रूप में चिन्हित किया जा चुका था। बस्पा वैली में पिछले कुछ सालों में पर्यटकों की संख्या में और ढांचागत विकास परियोजनाओं में भारी इजाफा हुआ है। इसको रोकने और खतरे को कम करने के लिए रणनीतिक रूप से योजना बनाने की जरूरत है। खासतौर पर किसी भी तरह का ढांचागत निर्माण करने, ढलान काटने, से पहले भू–वैज्ञानिक रूप से अध्ययन करना चाहिए।
बोह गांव की घटना में पाया गया है कि नाले से आए मलबे ने गांव को बुरी तरह से रौंद दिया है। गांव को पूरी तरह से दूसरी जगह बसा कर ही इसका हल किया जा सकता है, अन्यथा आने वाले समय में भी ऐसी तबाही हो सकती है। भागसू नाला पूरी तरह से संभावित भू–स्खलन क्षेत्र में आता है। इसके बाद क्षेत्र का उचित तरीके से स्थायीकरण किया जाना चाहिए, नालो बहो ठीक गिया जाए, किनारे ठीक किए जाएं और जमीन को मजबूत किया जाए। बाढ़ संभावित स्थानों पर निर्माणों पर रोक लगाई जाए।
कमेटियों की तरफ से बताए गए ये सब बीमारी के लक्षणों का इलाज तो करते हैं लेकिन बीमारी की जड़ को नहीं काटते। दरअसल हिमाचल के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन मुनाफे की हवस वाली वित्तीय पूंजी के लिए हो रहा है, जिसकी हवस की कोई सीमा नहीं है। इस अंतरराष्ट्रीय वित्त पूंजी द्वारा बड़े–बड़े बांध बनाए गए, फिर नवीकरणीय ऊर्जा के नाम पर सतलुज नदी को बर्बाद कर अंधाधुंध जल–विद्युत योजनाएं स्थापित की गई और अब पिछले दशक से विश्व बैंक, एशियन डेवलेपमेंट बैंक आदि रोड, रेल परियोजनाओं को कर्ज दे–दे कर स्थापित करवा रहे हैं। विकास का मतलब आम लोगों के राजनीतिक–आर्थिक–सामाजिक–वैज्ञानिक–सांस्कृतिक जीवन स्तर को ऊंचा उठाना होता है। लेकिन इस पूंजी ने लोगों को और अधिक गरीबी, पर्यावरण संकट, बीमारियों की तरफ धकेला है। जरूरत है विकास के इस मॉडल पर सोचने की।
केरल में मानसून दस्तक दे चुका है और जून के आखिरी तक हिमचाल में प्रवेश करने की संभावना है। हो सकता है इस से पहले भी पहुंच जाए। लेकिन सवाल आम आदमी को यही सता रहा है कि इस साल क्या होगा।
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