‘राम राज्य’ के मुहाने पर

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ऐसा लगता है हम ‘राम राज्य’ के मुहाने पर पहुंच चुके हैं।

चूंकि इधर राम का कोई नया अवतार नहीं हुआ है इसलिए हम मान कर चल सकते हैं कि राम राज्य का तात्पर्य राम के भक्तों के राज से होगा। संतों-महंतों, संन्यासियों-संन्यासिनों और योगी-योगिनियों का राज होगा। उसी तरह जिस तरह अरब या ईरान में अल्लाह का राज है जिसे उसके बंदे चला रहे हैं। इसकी संभावना बलवती है, सत्य आंखों के सामने है-दिल्ली से लखनऊ तक।

शुभ मुहूर्त मिल गया है, (संयोग-वियोग न देखें) भूमि का पूजन निश्चित है। उस पर भव्य राम मंदिर अटल है। कितना अद्भुद संयोग है यह कि राम-कृष्ण की भूमि के प्रदेश पर एक संत, योगी का राज है। संयोग से यह प्रदेश कम से कम आबादी के हिसाब से तो भारत का सबसे बड़ा (23 करोड़ से ऊपर की आबादी वाला) प्रदेश है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जुलाई के आखिरी सप्ताह में अयोध्या पहुंचे। पूजा-अर्चना की और भावविभोर निर्माण की गतिविधियों का निरीक्षण किया। वह दक्ष और कड़क प्रकाशक माने जाते हैं इसलिए यह सुनिश्चित है कि दीर्घ प्रतीक्षित राम मंदिर समय पर बन कर रहेगा। तब राम राज पूरी गति से आएगा। संभव है अगले दो वर्ष में। मामला सिर्फ प्राथमिकताओं का है।

हमारे प्रधानमंत्री वहां जा रहे हैं जिन्होंने दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति ‘स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी’ की टक्कर की ‘स्टेच्यू ऑफ युनिटीÓ गुजरात के एक कोने में बना कर दुनिया का दिखा दिया है कि राम राज्य की दिशा में किस तरह भारतवर्ष अग्रसर हो रहा है। यह उनकी दूरदर्शिता है कि उन्होंने लिबर्टी-सिब्र्टी जैसा कोई नाम नहीं चुना। देख रहे हैं अमेरिकियों ने लिबर्टी का क्या मतलब लगाया है? बेवकूफ, अश्वेत लोगों की जिंदगी को महत्त्वपूर्ण बतला रहे हैं। हमारी मान्यताएं अटल हैं क्योंकि हमारे मूल्य सनातन हैं और विश्वास शाश्वत। हमारे जन्म हमारे कर्मों से निर्धारित होते हैं। हम कौन होते हैं उन्हें बदलने वाले। अमेरिकियों को सीखना चाहिए।

स्पष्ट है कि राम और कृष्ण के राज्य में सुख-शांति है। पर जैसा कि होता आया है हर भले काम में कुछ न कुछ विघ्न-बाधाएं भी आती ही हैं। पर अंतत: सब पार हो जाती हैं। इसलिए इस तरह की बाधाओं का आना कोई बहुत आश्चर्य नहीं है। हमारे वेद-पुराण तरह-तरह की कथाओं से हमें प्रेरणा देते हैं और आगे भी हमारा मार्गदर्शन करेंगे। फिर साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने हमें सूत्र बता दिया है। बस अगले दस दिन हमें हनुमान चालीसा पढऩी है, कोरोना-वोरोना भागता नजर आएगा। योगी के राज्य में साध्वी के वचनों का पालन करना हमारा कर्तव्य है।

पर आश्चर्य कैसा, जैसा कि होता रहा है, (पुराण कथाएं देखिये। स्वयं राम के साथ क्या नहीं हुआ!) छोटे-मोटे विघ्न उत्तर प्रदेश में भी आ रहे हैं। जैसे कि 23 जुलाई को कानपुर से खबर आई कि कुछ दुष्टों ने संजीत यादव नामक युवक का अपहरण करके उसकी हत्या कर दी और पुलिस की उपस्थिति में फिरौती के रूप में 30 लाख भी ले भागे। यह घटना जून के मध्य की है, तो अब सामने क्यों आ रही है? सवाल जायज है। हमें तो षड्यंत्र की बू आ रही है।

पर इधर दिल्ली से लगे गाजियाबाद में 20 जुलाई को पत्रकार विक्रम जोशी की उनकी दो बेटियों के सामने सरे आम गोली मार कर हत्या कर दी गई। कारण, उन्होंने पुलिस से अपनी भतीजी से छेडख़ानी किए जाने की शिकायत की थी। पुलिस ने कोई कदम नहीं उठाया। पर उसकी मंशा में खोट नहीं था, वे तो बातचीत से मामला निपटा देना चाहते थे, खैर।

उससे दस दिन पहले का भी एक छोटा समाचार कानपुर से ही था जिसमें पुलिस ने दस जुलाई को दुर्दांत अपराधी विकास दुबे को उज्जैन से लखनऊ लाते हुए एक एनकाउंटर में मार गिराया। वह पुलिस की पिस्तौल लेकर भागने की कोशिश कर रहा था। वैसे कहा तो यह भी जा रहा है कि उसने मध्य प्रदेश पुलिस के आगे आत्मसर्मपण किया था। कमबख्त की हिम्मत देखो तीन जुलाई को उसने अपने गांव में पुलिस का एनकाउंटर कर दिया था और उसमें एक डीएसपी पद के अधिकारी समेत आठ पुलिसकर्मी मार गिराए थे। यही नहीं हत्याकांड के बाद उसने पुलिस अधिकारी के शव को क्षत विक्षत कर दिया। शायद भूल गया कि उत्तर प्रदेश में कानून का राज है और वहां की पुलिस निशानेबाजी के लिए जानी जाती है। एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन साल में राज्य में 6,326 एनकाउंटर हुए हैं। कम से कम 123 अरोपी मारे गए और 2,337 गोलियां लगने से घायल हुए। इनमें से अधिकांश वे आरोपी थे जो जमानत पर थे। (टाइम्स ऑफ इंडिया, 22 जुलाई, 2020) वैसे इन एनकाउंटरों में 13 पुलिसवाले भी शहीद हुए। इनमें दुबे और उनके आदमियों द्वारा तीन जुलाई को मार गिराए गए आठ पुलिसर्मी भी शामिल हैं।

दुबे का महत्त्व इस बात से समझा जा सकता है कि उसके खिलाफ 62 फौजदारी के मामले दायर हैं। इनमें पांच हत्या के और आठ हत्या की कोशिश के। इस व्यक्ति की सबसे बड़ी ‘उपलब्धि’ यह है कि इसने 2001 में भाजपा के राज्य मंत्री संतोष शुक्ला की शिवली पुलिस थाने के अंदर हत्या कर दी थी और यहां तक कि मंत्री के गनमैनों तक ने दुबे के खिलाफ गवाही नहीं दी। दुबे बेदाग छूट गए। सन् 2000 के एक मामले में जिसमें उसने अपने पुराने अध्यापक को गोली मार दी थी, चार लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर थी। स्थानीय अदालत ने चारों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इनमें से एक का देहांत हो चुका है और बाकी जमानत पर हैं। अगर वरवर राव और जीएन साईबाबा आदि जेल में बंद हैं तो वे निश्चित ही ज्यादा दुर्दांत तो होंगे ही।

सच यह है कि उत्तर प्रदेश इस तरह के अपराधियों से भरा पड़ा है जिनके नाममात्र से सामान्य नागरिकों की कंपकंपी छूटने लगती है। चाहें तो दो साल पूर्व के एक और मामले को याद किया जा सकता है। यह भी कानपुर के बगल के जिले का है। उन्नाव बलात्कार कांड के नाम से चर्चित इस कांड का आरोपी भाजपा विधायक ठाकुर कुलदीप सिंह सेंगर ने यही नहीं कि बलात्कार किया बल्कि पीडि़ता के चाचा को जेल भिजवा दिया, उस गाड़ी में जिसमें वह मौसियों के साथ जा रही थी ऐसी घातक टक्कर लगी कि कई जानें गईं। हद यह हुई की लड़की के पिता को पुलिस ने किसी छोटे-मोटे मामले में (इशारा समझ लीजिए) पकड़ कर इतना पीटा कि उसकी जान चली गई। कुल मिलाकर तब तक मामले में न्याय नहीं हो पाया जबकि उसे उत्तर प्रदेश से बाहर नहीं भेजा दिया गया।

उत्तर प्रदेश में क्या हो रहा है? बुलंदशहर में 2018 हुई भीड़ की हिंसा में मारे गए पुलिस अधिकारी सुबोध कुमार सिंह की हत्या के षडय़ंत्र के आरोपी शिखर अग्रवाल को जुलाई के मध्य में जिले के भाजपा के अधिकारी ने एक सार्वजनिक समारोह में सम्मानित किया। इस हत्या के, अग्रवाल सहित, सभी आरोपियों को उच्च न्यायालय ने जमानत दे दी है। क्या यह मात्र संयोग है कि 2015 में अखलाक की भीड़ द्वारा की गई हत्या की जांच सुबोध कुमार सिंह कर रहे थे। हमें याद रखना चाहिए कि किसी भी सभ्य समाज में ‘ठोक दो’ न्याय स्वीकार्य नहीं हो सकता। पर इससे भी ज्यादा खतरनाक बात यह है कि हिंसा हिंसा को जन्म देती है। विशेषकर संस्थागत हिंसा अंतत: अराजकता की ओर ले जाती है। उत्तर प्रदेश इसका उदाहरण है। इतने एंकाउंटरों के बावजूद कानून की स्थिति क्यों सुधर नहीं रही है?

निश्चय ही इन सब अपराधों से मंदिर का कोई रिश्ता नहीं है। पर यह राज्य की कानून व्यवस्था की ओर अवश्य इशारा करती है। यह मात्र संयोग है कि विगत जून में अहमदाबाद में निकाली गई रथ यात्रा पर अपने निर्णय में, जो 28 जुलाई को सार्वजनिक हुआ, गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायाधीश पारदीवाला ने महामारी के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा, ”राज्य एक धर्मनिरपेक्ष संस्था होने के कारण  कोविड-19 के खिलाफ जो संघर्ष कर रही है, सरकार का पूरा ध्यान हर कीमत पर जनता के स्वास्थ्य और उसकी भलाई की ओर होना चाहिए, यहां तक कि ऐसा करने में अगर कुछ धार्मिक नेताओं की धार्मिक भावनाओं को थोड़ी ठेस ही क्यों न पहुंचती हो।‘’

पर फिलहाल जो चुनौती है वह वैश्विक महामारी है। इसलिए केंद्र सरकार की इसको लेकर चिंता समझ में आती है।

27 जुलाई की शाम को प्रधानमंत्री ने तीन ऐसी प्रयोगशालाओं का उद्घाटन किया जो कोरोना के हर दिन दस हजार टेस्ट करेंगी। इस अवसर का राष्ट्रीय प्रसारण किया गया। प्रधानमंत्री ने यह भी बतलाया कि छह महीने पहले देश में एक भी पीपीई किट नहीं बनती थी पर अब देश में पांच लाख किट प्रतिदिन बन रही हैं। हम एन-95 मास्क आयात करते थे पर अब तीन लाख मास्क प्रतिदिन बना रहे हैं। अब हमारी वेंटिलेटर बनाने की क्षमता एक लाख प्रति वर्ष हो चुकी है। पर उसी दिन के आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि देश में कोराना पीडि़तों की संख्या 14,35,453 थी और इस बीमारी से मरने वालों की संख्या 32,771 हो चुकी थी। चूंकि आधिकारिक आंकड़े  बताते हैं कि कई राज्यों में बीमारी के फैलने की गति बढ़ रही थी ऐसे में कैसे कहा जा सकता कि बीमारी नियंत्रण में है।

दुर्भाग्य से उत्तर प्रदेश भी उन राज्यों में से एक है जहां कोरोना का प्रकोप घटने की जगह बढ़ रहा है। जुलाई के शुरू में जहां प्रदेश में कुल बीमारों की संख्या 22,828 थी, 30 जुलाई तक वह 77,334 पर पहुंच चुकी थी। कल्पना की जा सकती है कि देश का यह सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य किस ओर जा रहा है।

ऐसे चिंताजनक दौर में क्या राम मंदिर के शिलान्यास को कुछ समय के लिए स्थगित नहीं किया जा सकता था? 29 जुलाई को जारी निर्देशों के अनुसार धार्मिक समारोहों पर भी रोक है। आखिरअयोध्या में सारी पाबंदियों के बावजूद भूमि पूजन के समय पांच सौ से ज्यादा लोग होने की बात तो मानी ही जा रही है, इस संख्या के बढऩे से क्या इंकार किया जा सकता है!

विडंबना यह है कि 27 जुलाई को ही राजस्थान के राज्यपाल कालराज मिश्र ने मुख्यमंत्री से उनके विधानसभा बुलाने की अनुमति के आवेदन पर यह सवाल पूछा था कि मुझे बताया जाए कि कोरोना में विधानसभा बुलाने के लिए क्या प्रबंध किए जाएंगे। इसी तर्क पर विधानसभा जिस की सदस्य संख्या कुल 200 है, अंतत: 14 अगस्त को बुलाई गई है।

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