सेना के कॉरपोरेटीकरण और समाज के सैन्यीकरण की योजना
– सिद्धार्थ
भरी जवानी में ही आम के छिलके की तरह फेंक दिए गए इन अग्निवीरों से कैसा समाज बनेगा और पूरे भारतीय समाज पर इसका क्या असर पड़ेगा। इसके बारे में फिलहाल खतरनाक संभावनाएं ही व्यक्त की जा सकती हैं, फिलहाल यह हर चार साल में सेना से बाहर किए जाने वाले हजारों अग्निवीर भारतीय समाज के सैन्यीकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा देंगे। भारतीय समाज के सैन्यीकरण की योजना हिंदू राष्ट्र के मूल प्रस्तोताओं (सावरकर-हेडगेवार आदि) की योजना का मुख्य हिस्सा रहा है। आरएसएस की शाखाएं और उसमें लाठियां भांजते स्वयंसेवक (आजकल हथियार भी) भारतीय राष्ट्र के सैन्यीकरण की योजना के हिस्से रहे हैं। इस सैन्यीकरण की चाहत को अग्निपथ योजना के अग्निवीर बहुत तेजी से बढ़ावा देंगे।
भारत सरकार द्वारा 16 जून 2022 को अग्निपथ योजना की घोषणा के बाद ही बड़े पैमाने पर युवा सड़कों पर उतर आए। इस योजना के खिलाफ प्रदर्शनों की शुरुआत बिहार और उत्तर प्रदेश से हुई, हरियाणा में भी इसके खिलाफ उग्र प्रदर्शन हुए। धीरे-धीरे इसकी आंच दक्षिण के राज्यों तक भी फैल गई। सेना में स्थायी भर्ती के लिए तैयारी कर रहे युवाओं में अग्निपथ योजना के खिलाफ आक्रोश इस कदर था कि कई जगहों पर ट्रेनों में आग लगा दी गई, पुलिस थानों को फूंक दिया गया, बिहार में भाजपा कार्यालय पर प्रदर्शनकारियों ने तोड़-फोड़ की। देश भर में सैकड़ों प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी हुई और कई जगहों पर पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ आंसू गैस और लाठी का इस्तेमाल किया, कुछ जगहों पर पुलिस ने प्रदर्शनकारी युवाओं के खिलाफ गोली-बारी भी की। एक प्रदर्शनकारी की पुलिस की गोलाबारी में मौत हो गई और कुछ घायल हो गए। युवाओं का आक्रोश इतना व्यापक और उग्र था कि केंद्र सरकार में शीर्ष स्तर पर अफरा-तफरी मच गई। भाजपा के प्रवक्ताओं, नेताओं और मंत्रियों ने अग्निपथ योजना के फायदा गिनाने में अपनी ताकत लगा दी। विभिन्न मंत्रालयों ने अग्निपथ योजना के तहत भर्ती किए सैनिकों (अग्निवीरों) को बाद में अपने विभागों की नौकरियों में प्राथमिकता और आरक्षण देने की घोषणा की। युवाओं को आक्रोश को शांत करने के लिए परंपरा को किनारे लगाकर सरकार ने शीर्ष सैन्य अधिकारियों को अग्निपथ योजना के फायदे गिनाने और युवाओं को धमकाने के लिए लगा दिया। इन शीर्ष सैन्य अधिकारियों ने कहा कि हर हाल में अग्निपथ योजना जारी रहेगी और अग्निवीरों की भर्ती की जाएगी। इतना ही नहीं, इन आधिकारियों ने यह भी कहा कि जिस नौजवान को अग्निपथ योजना के खिलाफ प्रदर्शन करते पाया जाएगा, उन्हें अग्निवीर बनने का मौका नहीं दिया जाएगा और उनके भविष्य में सैनिक बनने के सारे मौके बंद होंगे। मोदी सरकार की अग्निपथ योजना की पैरोकारी करने के लिए कार्पोरेट मीडिया ने अपनी पूरी ताकत लगा दी और कुछ कॉरपोरेट घराने भी अग्निवीरों को अपने यहां नौकरी देने की बात करने लगे।
अग्निपथ योजना सशस्त्र बलों की तीन सेवाओं में कमीशन अधिकारियों के पद से नीचे के सैनिकों की भर्ती के लिए भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक नई योजना है। इसकी घोषणा 16 जून, 2022 को की गई। इस योजना के तहत सेना में शामिल होने वाले जवानों को ‘अग्निवीर’ के नाम से जाना जाएगा। लगभग 45, 000 से 50, 000 सैनिकों को हर साल सिर्फ चार साल की सेवा अवधि के लिए भर्ती किया जाएगा। इनमें से एक चौथाई तक को (25 प्रतिशत तक) को स्थायी सेवा (15 वर्ष) के लिए मौका दिया जाएगा और तीन चौथाई (75 प्रतिशत) को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। अग्निपथ के लिए 17.5 साल से 23 साल के बीच के उम्मीदवार आवेदन कर सकेंगे। पहले अधिकतम उम्र 21 वर्ष थी। युवाओं के विरोध प्रदर्शनों के बाद फिलहाल दो साल की छूट दी गई और अधिकतम उम्र सीमा 23 वर्ष कर दी गई है। आवेदन करने वाले युवा कम-से-कम 10वीं/ 12वीं पास होने चाहिए। भर्ती होने वाले युवाओं को छह महीने तक ट्रेनिंग दी जाएगी। इसके बाद 3.5 साल तक सेना में सर्विस देनी होगी। योजना के तहत शुरुआती वेतन 30, 000 रुपए दिया जाएगा जो कि सर्विस के चौथे साल तक बढ़ाकर 40 हजार रुपए तक हो जाएगा। सेवा निधि योजना के तहत सरकार वेतन का 30 फीसदी हिस्सा सेविंग के रूप में रख लेगी। साथ ही इसमें वह भी इतना ही योगदान करेगी। चार साल बाद सैनिकों को लगभग 11.77 लाख रुपए दिए जाने का वादा किया गया है। योजना के तहत भर्ती होने वाले युवाओं को चीन-पाकिस्तान के बार्डर सहित कश्मीर और देश के अलग-अलग हिस्सों में तैनात किया जाएगा।
अग्निपथ योजना के पक्ष में सरकार द्वारा कई सारे तर्क दिए जा रहे हैं। इस योजना के प्रस्तुत करते हुए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि इस योजना का उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत बनाना और देश के नौजवानों को देश के लिए सैन्य सेवा देने का मौका देना है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा, ”इससे अर्थव्यवस्था के लिए एक उच्च-कुशल कार्यबल की उपलब्धता भी होगी जो उत्पादकता लाभ और समग्र सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में सहायक होगी। सैन्य मामलों के विभाग के अतिरिक्त सचिव, लेफ्टिनेंट जनरल अनिल पुरी ने कहा है, ”आज औसत आयु लगभग 32 वर्ष है, आने वाले समय में यह और कम होकर 26 वर्ष हो जाएगी। यह 6-7 वर्षों में होगा। क्रम में सशस्त्र बलों को युवा, तकनीक-प्रेमी, आधुनिक में बदलने के लिए, युवा क्षमता का दोहन करने और उसे भविष्य के लिए तैयार सैनिक बनाने की आवश्यकता है।‘’
अग्निपथ योजना के पक्ष में जितने भी तर्क दिए जा रहे हैं, उसमें सबसे मुख्य तर्क (उद्देश्य) को सरकार और सैन्य अधिकारी छिपा रहे हैं, वह यह कि इस योजना का मुख्य उद्देश्य सैनिकों के पेंशन और तनख्वाह पर होने वाले खर्च को कम से कम करना और इस पैसे का इस्तेमाल सेना के लिए आधुनिक सैन्य साजो-सामान खरीदने के लिए इस्तेमाल करना है। यह जगजाहिर तथ्य है कि भारतीय सेना के ज्यादात्तर सैन्य साजो-सामान परंपरागत हैं और पुराने पड़ चुके हैं, उनके आधुनिकीकरण की जरूरत है। इसके लिए बड़े पैमाने पर सैन्य खर्च बढ़ाना पड़ेगा। लेकिन नरेंद्र मोदी के पिछले 8 वर्षों के कार्यकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर धीमी से धीमी होती गई है। भारतीय अर्थव्यवस्था को इस स्थिति में पंहुचा दिया है कि वह सेना के आधुनिकीकरण के लिए अतिरिक्त संसाधन मुहैया नहीं करा सकती है, ऐसी स्थिति में सिर्फ एक मात्र रास्ता बचता है, वह यह कि पहले से ही खर्च हो रहे सैन्य बजट के कुछ मदों में कटौती की जाए और उस पैसे को सेना के लिए आधुनिककरण और आधुनिक सैन्य साजो-सामान खरीदने पर लगाया जाए। 2022-23 के बजट में 5.25 लाख करोड़ रुपया रक्षा बजट के मद में आवंटित किया गया है। जिसमें से 1 लाख 19 हजार 696 करोड़ रुपया सैनिकों के पेंशन पर खर्च होना है और 1 लाख 63 हजार 453 करोड़ रुपया तनख्वाहों पर खर्च होनी है। इस तरह कुल सैन्य बजट का करीब 54 प्रतिशत पेंशन और तनख्वाह पर खर्च होना है। सेना के लिए आधुनिक सैन्य साजो-सामान खरीदन के लिए बड़े पैमाने पर पैसे की जरूरत है, सिर्फ एक रास्ता बचता है कि सैनिकों के पेंशन और तनख्वाहों में भारी कटौती की जाए। अग्निपथ योजना मूलत: सैनिकों के पेंशन और उन्हें और उनके परिवार को आजीवन दी जाने वाली सुविधाओं (चिकित्सा, आदि) होने वाले खर्च को कम से कम कर देना और तनख्वाहों पर होने वाल खर्च में अधिकतम कटौती करना है। सरकार और सैन्य अधिकारी इस मुख्य उद्देश्य को छिपा रहे हैं। पेंशन का करीब-करीब खात्मा, तनख्वाहों में भारी कटौती और संविदा ( ठेके) पर सैनिकों की भर्ती सेना के पूरी तरह कार्पोरेटीकरण की दिशा में उठाया गया कदम है। कॉरपोरेटीकरण की दिशा में कदम उठाते हुए नरेंद्र मोदी सरकार सैनिकों की संख्या में भी भारी कौटती करने जा रही है। वर्तमान समय में करीब 14 लाख सैन्य बल हैं, जिसमें तीनों सेना के सैनिक शामिल हैं। करीब 25 लाख सेनानिवृत सैनिक हैं, जिन्हें पेंशन और सेवानिवृति के बाद की अन्य सुविधाएं मिलती हैं। इसका मतलब है कि करीब 40 लाख परिवार (मोटी-मोटा डेढ़ करोड लोग) सेना से मिलने वाली तनख्वाह या पेंशन पर जिंदा हैं। थल सेना में पहले से खाली पड़े 1 लाख पदों को पिछले कई वर्षों से भरा नहीं जा रहा है। भारतीय सेना में हर साल करीब 60 हजार सैनिक रिटायर्ड होते थे और इतने ही भर्ती होते थे। अब सिर्फ 46000 सैनिक ठेके पर भर्ती होंगे। इसमें से तीन चौथाई को हर चार साल बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। इस तरह नरेंद्र मोदी सरकार सैनिकों की संख्या करीब आधी करना चाहती है। ताकि उनको दी जाने वाली तनख्वाह भी बचाई जा सके।
इंडियन एक्सप्रेस अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, 78.32 प्रतिशत सैनिक ग्रामीण इलाकों (गांवों-कस्बों) से भर्ती होते हैं। तय है कि करीब सभी गरीब-निम्न मध्यवर्गी मेहनतकश परिवारों के हैं, इनकी सामाजिक पृष्ठभूमि देखी जाए तो पिछड़ी जातियों-दलित जातियों के नौजवान और निम्न मध्यवर्गीय-गरीब सवर्णों के भी बच्चें हैं। गांवों और छोटे कस्बों के इन्हीं नौजवानों के बीच से अग्निवीरों (4 साल के लिए ठेके पर सैनिकों) की भर्ती की जाएगी। इसके उलट अधिकांश सैन्य अफसर (करीब 80 प्रतिशत से अधिक) शहरी मध्यवर्ग- अपर मीडिल क्लास और सामाजिक तौर पर बहुलांश अपरकॉस्ट से आते हैं।
पहले भी सैन्य अफसरों का सामान्य सैनिकों के प्रति व्यवहार बहुत ही असम्मानजनक, अपमानजनक और सेवक जैसा होता था, लेकिन भर्ती की वर्तमान व्यवस्था में सामान्य सैनिक (अग्निवीर) (जो कि सेना का बहुसंख्यक हिस्सा होगा) पूरी तरह से सैन्य अफसरों का बंधुआ मजदूर होगा, क्योंकि भर्ती की वर्तमान व्यवस्था के तहत चार सालों के लिए सैनिक बनने वाले अग्निवीरों की सेवा शर्तें स्थायी सैनिक जैसी नहीं होंगी और चार साल बाद निकाले जाने का डर उन्हें सैन्य अफसरों की जी हजूरी करने के लिए मजबूर करेगा, क्योंकि इन्हीं सैन्य अफसरों की पसंद-नापसंद और इच्छा-अनिच्छा से यह तय होगा कि कौन वे एक चौथाई अग्निवीर होंगे, जो चार साल बाद स्थायी सैनिक बनेंगे। भारत की वर्ण-व्यवस्था की शब्दावली का इस्तेमाल करते हुए कहा जाए, तो ऊपर ब्रह्मा के मुंह से पैदा हुए ब्राह्मण (सैन्य अफसर) होंगे, जो हर तरह के विशेषाधिकार से लैस होंगे और नीचे हर तरह के अधिकारों से वंचित शूद्र-अतिशूद्र (ठेके के सैनिक तथाकथित अग्निवीर) होंगे। इन सैन्य अफसरों पर वैचारिक नियंत्रण कायम करके और उनके करीब बंधुआ मजदूर अग्निवीरों को माध्यम से कोई भी सरकार सेना का प्रोफेशनल चरित्र बदल उन पर नियंत्रण कायम कर सकती है। आरएसएस-भाजपा की सेना पर वैचारिक नियंत्रण कायम करने की लंबी समय से योजना रही है और उन्हें इस दिशा में सफलता पिछेल वर्षों में मिली है। भारतीय राज्य की करीब सभी संस्थाओं पर आरएसएस नियंत्रण कर चुका है। एक हद सेना बची हुई है, लेकिन उसका भी हिंदूकरण पहले ही शुरू हो चुका है। आरएसएस भारतीय सेना को आरएसएस की पक्षधर सेना में तब्दील करना चाहता है, ताकि हिंदू राष्ट्र बनाने की उसकी परियोजना मुकम्मल की जा सके और कोई भी शक्ति उस हिंदू राष्ट्र को चुनौती न दे सके। चुनाव आयोग, सीबाआई, ईडी आदि एजेंसिया, काफी हद तक न्यायपालिका आरएसएस के नियंत्रण में आ चुका है। कॉरपोरेट मीडिया उसके नियंत्रण में है ही। भारतीय सेना पर नियंत्रण करने की कोशिश आरएसएस लंबे समय से कर रहा है। पूर्व सेनाध्यक्ष वी.के. सिंह (वर्तमान में केंद्रीय मंत्री) और पहले चीफ ऑफ डिफेंस विपिन रावत (स्वर्गीय) आरएसएस-भाजपा के प्रति अपनी खुली पक्षधरता जाहिर करते रहे हैं और उनकी भाषा बोलते रहे हैं। अब सेना के कई बड़े अफसर आरएसएस-भाजपा की भाषा खुलकर बोलने लगे हैं। ध्यान रहे, चार साल के लिए ठेके पर रखने जाने वाले सैनिकों का जो एक चौथाई हिस्सा परमानेंट (स्थायी) किया जाएगा, वह सैन्य अफसरों के अनुमोदन के आधार पर यानी उनकी कृपा से, न कि किसी वस्तुगत योग्यता के आधार पर। यह तथ्य पुरजोर तरीके से रेखांकित किया जाना चाहिए कि कोई भी अफसर ठेके पर नहीं रखा जाएगा। अपर मीडिल क्लास-अपरकॉस्ट शहरी सैन्य अफसरों पर नियंत्रण के माध्यम से सेना पर आरएसएस-भाजपा अपना नियंत्रण कायम करेंगे।
अग्निपथ योजना सेना के कॉरपोरेटीकरण और सरकारों द्वारा आसानी से सेना का अपने विचारों-हितों के लिए इस्तेमाल का रास्ता प्रशस्त करेगी ही, साथ यह योजना भारतीय समाज के सैन्यीकरण का रास्ता खोल रही है। प्रति वर्ष करीब 35 से 40 हजार सैनिक चार साल की सैन्य सेवा देने के बाद वापस अपने घरों-गांवों-कस्बों में लौट आएंगे। ये हथियार चलने में प्रशिक्षित और निपुण होंगे। सैन्य ट्रेनिंग और सैन्य सेवा के दौरान इनके भीतर गहरे स्तर पर सैन्य मानसिकता का निर्माण और विकास किया जाएगा। सैन्य मानसिकता और सैन्य प्रशिक्षण से लौटने वाले ये सैनिक भारतीय समाज का तेजी से सैन्यीकरण करेंगे। जो कोई भी सेवानिवृत सैनिकों से मिला होगा और उनकी मानसिकता, सोचने के तरीके, वैचारिकी, जीवन-मूल्यों और शेष समाज के प्रति उनके नजरिए परिचित होगा, वह सहज अंदाज लगा सकता है कि सैन्य मानसिकता और सैन्य प्रशिक्षण किस तरह के व्यक्तित्व का निर्माण करती है। जब यह हाल 15 वर्षों तक स्थायी नौकरी करने वाले, पेंशन और अन्य सुविधाएं पाने वाले सेवानिवृत सैनिकों का है, तो जवानी की दहलीज (25 वर्ष) पर कदम रखते ही सैन्य सेवा से बाहर कर दिए जाने वाले अग्निवीरों की मानसिकता क्या होगी, जिनके 75 प्रतिशत हिस्से को 25 वर्ष की उम्र में ही अयोग्य ठहराकर (ध्यान रहे 25 प्रतिशत योग्य मानकर स्थायी नियुक्ति दी जाएगी) बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। इनके पास कोई सुरक्षित भविष्य की गारंटी नहीं होगी और न ही स्वाभिमान युक्त जीवन जीने का कोई स्थायी आधार। भरी जवानी में ही आम के छिलके की तरह फेंक दिए गए इन अग्निवीरों से कैसा समाज बनेगा और पूरे भारतीय समाज पर इसका क्या असर पड़ेगा। इसके बारे में फिलहाल खतरनाक संभावनाएं ही व्यक्त की जा सकती हैं, फिलहाल यह हर चार साल में सेना से बाहर किए जाने वाले हजारों अग्निवीर भारतीय समाज के सैन्यीकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा देंगे। भारतीय समाज के सैन्यीकरण की योजना हिंदू राष्ट्र के मूल प्रस्तोताओं (सावरकर-हेडगेवार आदि) की योजना का मुख्य हिस्सा रहा है। आरएसएस की शाखाएं और उसमें लाठियां भांजते स्वयंसेवक (आजकल हथियार भी) भारतीय राष्ट्र के सैन्यीकरण की योजना के हिस्से रहे हैं। इस सैन्यीकरण की चाहत को अग्निपथ योजना के अग्निवीर बहुत तेजी से बढ़ावा देंगे।
जहां तक अग्निपथ योजना के माध्यम से सेना के सशक्तीकरण और सैनिकों की सैन्य क्षमता बढ़ाने का प्रश्न है, इस संदर्भ में अनके सैन्य विशेषज्ञों ने गंभीर आशंका जाहिर की है। सबसे बड़ा प्रश्न यह उठा है कि जो सैनिक एक तरह के ठेके पर चार के लिए होंगे और जिनका आगे पूरा भविष्य अनिश्चित होगा, उनकी सेना के प्रति कितना और किस कदर भावात्मक लगाव और प्रतिबद्धता होगी। क्या वे भविष्य की पारिवारिक-व्यक्तिगत दुश्चिंताओं से मुक्त होकर पूरी लगन से अपने सैन्य कर्तव्य की पूर्ति कर पाएंगे? सरकार और सैन्य अधिकारियों द्वारा कहा जा रहा है कि औसत आयु कम होने से सेना में जोश और जज्बा बढ़ेगा, जबकि इसके उलट परिणाम आने की संभावना ज्यादा है। जिन अग्निवीर सैनिकों के सामने अनिश्चित भविष्य मुंह बाए खड़ा होगा, क्या वे सचमुच में जोश और जज्बे के साथ अपने सैन्य कर्तव्यों की पूर्ति कर पाएंगे? अग्निपथ योजना के पक्ष में तर्क देते हुए शीर्ष सैन्य अधिकारियों ने कहा कि सेना में नौजवान नौकरी और पैसे कमाने नहीं है, बल्कि देश के प्रति अपने जज्बे के चलते आते हैं यानि देशभक्ति के चलते आते हैं। इस तर्क में सच का अंश बहुत थोड़ा है, यह सच है कि सेना में भर्ती होने वाले नौजवानों में देशभक्ति की भावना भी होती है, उन्हें देश के लिए जीने-मरने में गर्व का भी अनुभव होता है, लेकिन सेना में भर्ती होने की बुनियादी वजह स्थायी नौकरी, तनख्वाह, पेंशन और अन्य सुविधाएं हैं। तथ्य यह है कि 78.32 प्रतिशत सामान्य सैनिक ग्रामीण इलाकों से सेना में जाते हैं, बहुलांश मेहनतकश निम्न मध्यवर्गीय किसानों के बेटे होते हैं, जो अपनी पारिवारिक आर्थिक स्थिति को मजबूत करने और आजीवन मिलने वाली एक निश्चित आर्थिक सुरक्षा के लिए सेना में जाते हैं। सेना उनके लिए आर्थिक स्थिति को बेहतर करने या बनाए रखने का माध्यम होती है। सेना में जाने वाले अधिकांश नौजवान के पास सेना से बेहतर नौकरी का कोई विकल्प नहीं होता है, यदि विकल्प होता है, उस विकल्प को ही चुनते हैं और चुनेंगे। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि शहरी मध्यवर्ग-उच्च मध्यवर्ग के नौजवान किसी भी सूरत में सेना में सामान्य सैनिक बनना पसंद नहीं करते हैं, सामान्य सैनिक के रूप में सेना में उनकी उपस्थिति नहीं के बराबर है, क्योंकि उनके पास नौकरी के दूसरे बेहतर विकल्प हैं। सैन्य रिपोर्टों में लगातार इस तथ्य का खुलासा होता है कि सेना में अफसर बनने के इच्छुक योग्य अभ्यर्थी कम मिल रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि उच्च मध्यवर्ग-मध्यवर्ग से सेना में अफसर बनने के योग्य अभ्यर्थियों के लिए वैश्वीकरण और निजिकरण ने नौकरी के अन्य अनेक अवसर मुहैया कराए हैं, उन अवसरों को छोड़कर वे सेना में नहीं जाना चाहते हैं। चूंकि ग्रामीण इलाकों के अनस्किल्ड मेहनतकश परिवारों के नौजवानों के पास अन्य विकल्प नहीं होते, वे सेना को एक बेहतर विकल्प के रूप में देखते हैं, भले ही इसमें जोखिम भी हो। इस तथ्य से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि सेना में भर्ती होने वाले नौजवानों के सेना में जाने का मुख्य कारण देशभक्ति नहीं, बल्कि तुलनात्मक तौर पर बेहतर नौकरी की चाहत हैं। यह इतना जग-जाहित तथ्य है कि इसे छिपाया नहीं जा सकता है। इसका सबसे बड़ा हालिया प्रमाण अग्निपथ योजना के खिलाफ सेना में भर्ती के लिए लंबे समय से तैयारी कर रहे है, नौजवानों के विरोध प्रदर्शनों और आक्रोश में सामने आया। ये नौजवान एक स्थायी नौकरी, आजीवन पेंशन और अन्य सुविधाओं की उम्मीद में सेना में भर्ती होने के लिए तैयारी कर रहे थे। उन्हें ज्यों ही यह पता चला कि अब सेना की नौकरी स्थायी नहीं होगी, न ही पेंशन और अन्य सुविधाएं मिलेंगी, अब उन्हें सिर्फ चार सालों के लिए संविदा ( ठेके) पर नियुक्त किया जाएगा, उन्होंने सड़कों पर उतर कर अपने गुस्से और आक्रोश का इजहार किया। यह इसका साफ प्रमाण है कि ये नौजवान सेना में एक बेहतर भविष्य के लिए जाने की तैयारी कर रहे थे, न कि सिर्फ देशभक्ति के लिए सेना में जाना चाहते थे।
सैन्य भर्ती की अग्निपथ योजना को खारिज करते हुए पूर्व डाइरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन्स (डीजीएमओ) लेफ्टिनेंट विनोद भाटिया ने अपने ट्विट में सटीक लिखा, ”(यह) सशस्त्र बलों के लिए मौत की घंटी है, टीओडी का परीक्षण नहीं, कोई पायलट प्रोजेक्ट नहीं, सीधे कार्यान्वयन। (यह) समाज के सैन्यीकरण को भी बढ़ावा देगा, लगभग 40, 000 (75 प्रतिशत) युवा साल-दर-साल बिना नौकरी के खारिज और हताश, हथियारों के मामले में अर्ध प्रशिक्षित भूतपूर्व अग्निवीर । यह अच्छा विचार नहीं है। किसी को फायदा नहीं।‘’ (द हिंदू, 16 जून, 2022)
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