इतिहास में फिल्म्स डिवीजन

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– राजीव कटियार

फिल्म्स डिवीजन 1 जनवरी 2023 से बंद हो गया है। अदूर गोपालकृष्णन, मणि कौल, कुमार शाहानी, जी. अरविंदन, राजेश बेदी, गिरीश कासरवल्ली, पार्वती मेनन, नीरद महापात्र, बुद्धदेव दास गुप्ता, विधु विनोद चोपड़ा, रीना मोहन, प्रकाश झा, जैसे प्रतिभाशाली निर्देशकों को अवसर देने वाला केंद्र सरकार का ऐतिहासिक विभाग अब 74 साल बाद इतिहास बना दिया गया है। साथ ही नेशनल फिल्म आर्काइव, चिल्ड्रेन फिल्म सोसाइटी ऑफ इंडिया और फिल्म समारोह निदेशालय को नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कार्पोरेशन, एन.एफ.डी.सी. में समाहित कर दिया गया है। बात मर्जर की बताई गई थी लेकिन हुआ कुछ और है। इन चार संगठनों से एक भी कर्मचारी एन.एफ.डी.सी. में नहीं लिया गया।

मर्जर के बाद फिल्म्स डिवीजन के 350 से अधिक कर्मचारी सरप्लस घोषित कर दिए गए हंै। इन्हें वैकेंसी होने पर पोस्टिंग के लिए तीन ऑफर दिए जाएंगे। जो भी पोस्टिंग मिलेगी उसमें इन्हें सबसे जूनियर माना जाएगा। ये पूरे देश में कहीं भी भेजे जा सकते हैं। अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है। फिल्म्स डिवीजन कर्मचारी एसोसिएशन ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। ऐन तारीख के दिन दिल्ली हाई कोर्ट ने कुछ दिन बाद की तारीख दी। इस तारीख को एक अन्य न्यायाधीश महोदय ने मामला सुना। फिल्म्स डिवीजन के वकील ने कहा – कर्मचारियों के सिर पर तलवार लटक रही है। माननीय न्यायाधीश ने पूछा कि क्या अभी तक किसी कर्मचारी के साथ कोई कार्रवाई की गई है। वकील ने कहा कार्रवाई किये जाने का प्रस्ताव है। माननीय न्यायाधीश ने वकील से कहा – आप कार्रवाई होने के बाद आयें।

इस तरह खिचड़ी को डेग में डालकर आग पर रख दिए जाने के बाद फिल्म्स डिवीजन कर्मचारी एसोसिएशन ने अनुरोध किया कि उन्हें अन्य मंत्रालयों या दूरदर्शन में जाने का विकल्प दिया जाए। आजकल लगभग सभी मंत्रालयों के ऑडियो विजुअल सेल हैं। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, एन.एस.डी. में रेकर्डिस्ट की पोस्ट है। आम्र्ड फोर्सेज फिल्म एंड फोटो डिवीजन, ए.एफ.एफ. एंड पी.डी. में कैमरामैन, रेकर्डिस्ट और एडिटर की कई पोस्ट हैं। संस्कृति, विदेश व अन्य मंत्रालयों में ऐसी कई वैकेंसी हैं जहां फिल्म्स डिवीजन के टेक्निकल कर्मचारियों को भेजा जा सकता है पर सरकार का कहना है कि इस सरप्लस स्टाफ को केवल उसके अपने मंत्रालय, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के कार्यालयों में ही पोस्ट किया जा सकता है। इस तरह मर्जर कहते कहते चार संगठनों का मर्डर कर दिया गया।

हम हिंदुस्तानियों ने इतिहास का महत्व बहुत देर में समझना आरंभ किया। आज भी यदि पिछले सौ सालों के बारे में लोगों से बात की जाए तो मनोरंजक धारणाएं सामने आती हैं। (पिछले आठ-नौ साल से इतिहास बदलने का कारखाना चल ही रहा है)। पहली बार पर्दे पर चलती फिरती तस्वीरें सन् 1896 में दुनिया ने देखीं – फ्रांस के लूमिये ब्रदर्स का प्रोग्राम- इसमें आधा आधा मिनट की छह ‘फिल्मेंÓ थीं। जैसे रेलगाड़ी प्लेटफॉर्म पर आना, फैक्ट्री गेट से वर्कर्स का निकलना, समुद्र में नहाना, फूलों के पौधों की पाइप से सिंचाई आदि। एक आदमी पाइप से पौधों की सिंचाई कर रहा है, एक शरारती बच्चा पाइप के ऊपर पैर रख देता है। आदमी नोजल की तरफ देखता है बच्चा पैर हटा लेता है और आदमी का मुंह पाइप की फुहारों से भीग जाता है। फुहारों से भीगना सिनेमा में कॉमेडी (सिचुएशनल कॉमडी-सिटकॉम) का प्रोटोटाइप है और रेलगाड़ी लूमिए प्रोग्राम देख रहे लोगों की ओर तेजी से आना डॉक्यूमेंट्री और एडवेंचर फिल्म का प्रोटोटाइप।

लूमिए प्रोग्राम 1896 में ही बंबई के वॉटसन होटल में दिखाया गया। अंग्रेज सरकार ने 1920 के दशक में ही भारत में होने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं को 35 मिली मीटर सेलुलाइड फिल्म पर शूट करना शुरू कर दिया था। भारतीय स्वाधीनता संग्राम की सभी प्रमुख घटनाओं की फिल्में आज भी उपलब्ध हैं। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान 1943 में अंग्रेज सरकार ने ‘इंफोर्मेशन फिल्म्स आफ इंडियाÓ की स्थापना की। उस समय तक विश्व युद्ध में पांसा पलटने लगा था। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का जनता पर व्यापक असर था। इनफार्मेशन फिल्म्स आफ इंडिया, अंग्रेजी शासन की उजली तस्वीर पेश करता था। 1947 में जब ये फिल्में राष्ट्रीय सरकार को मिलीं तो नए संगठन का नाम फिल्म्स डिवीजन रखा गया।

 

75 साल का इतिहास

फिल्म्स डिवीजन का 74 वर्ष का इतिहास है। जब देश आजाद हुआ साक्षरता बहुत कम थी। देश के विकास लिए साक्षर, अर्धसाक्षर, निरक्षर, प्रत्येक देशवासी तक, विभिन्न योजनाओं, नई कृषि तकनीकों को पहुंचाना था। इसके लिए रेडियो के साथ-साथ एक दृश्य -श्रव्य माध्यम की आवश्यकता थी। कुछ बातों को केवल शब्दों के माध्यम से नहीं कहा जा सकता। हमारे दूरदर्शी पथपर्दशकों ने तय किया कि कम्युनिकेशन के साथ-साथ कलात्मक दृष्टि से उत्कृष्ट फिल्मों का निर्माण भी किया जाएगा।

फिल्म्स डिवीजन ने 74 साल में लगभग नौ हजार फिल्मों का निर्माण किया। सामाजिक कम्युनिकेशन के अलावा फिल्म्स डिवीजन ने सात सौ से अधिक पुरस्कार, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह और प्रतियोगिताओं में हासिल किए। देश के सारे सिनेमाघरों में मुख्य फिल्म से पहले एक 10-20 मिनट की न्यूज मैग्जीन या किसी महत्वपूर्ण विषय पर डॉक्यूमेंट्री दिखाई जाने लगी। फिल्म्स डिवीजन 70 सालों से महत्वपूर्ण राष्ट्रीय घटना क्रम, योजनाएं, कृषि, दस्तकारी, छोटे उद्योग, वैज्ञानिक प्रगति, महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्यक्रम, अंधविश्वास और कुरीतियों का उन्मूलन, राष्ट्रीय पर्व, विशाल मेले, विभिन्न राज्यों की और अंतरराष्ट्रीय प्रमुख गतिविधियां,परिवार नियोजन के सरल उपाय स्त्रियों और बच्चों का स्वास्थ्य इत्यादि विषयों पर फिल्में बनाई जाती रहीं। साथ साथ कलात्मक और प्रयोगशील फिल्मों का निर्माण और प्रचार प्रसार, फिल्म्स डिवीजन हमेशा करता रहा। इन-हाउस निर्देशकों के साथ देशभर के युवा प्रतिभाशाली फिल्मकारों और स्थापित निर्देशकों को फिल्में बनाने के अवसर लगातार मिलते रहे।

सन 1961 में रवींद्रनाथ ठाकुर की जन्म सदी के अवसर पर सत्यजीत रे ने उन पर एक घंटे की प्रभावशाली डाक्यूमेंट्री फिल्म बनायी। इससे पहलेफाली एस बिलिमोरिया ने ‘हाउस आनंदा बिल्ट’ ऑस्कर पुरस्कारों तक पहुंची। मृणाल सेन, श्याम बेनेगल जैसे निर्देशक इसके लिए फिल्में बनाते रहे। व्ही.शांताराम, पॉल जिल्स, एजरा मीर और राम मोहन जैसी महान प्रतिभाओं ने फिल्म्स डिवीजन को अपने खून पसीने से सींचा है।

प्रश्न है 74 साल की इस गौरवशाली परंपरा को, जो अब इतिहास बन जाएगी, कैसे सहेज कर रखा जाएगा? अमेरिकी फिल्म अध्येता जेम्स बेवेरिज कहते हैं कि यदि कोई फिल्म्स डिवीजन की सारी फिल्मों को देखे तो उसे स्वतंत्र भारत के इतिहास की गहरी समझ मिल जाएगी। क्या इस स्मृति को जानबूझ कर मिटाने देने की मंशा के पीछे निहित स्वार्थ हैं? आखिर वर्तमान राजनीतिक निजाम का इस विरासत से कोई सरोकार हो सकता है?

कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट ने सन 2020 में अपनी स्थापना के 150 वर्ष पूरे किये। ट्रस्ट के कुछ लोगों को पता था की सन 1970 में ट्रस्ट की 100 वीं जयंती पर फिल्म्स डिवीजन ने एक फिल्म बनायी थी। अपनी 150 वीं जयंती पर बनी हुयी फिल्म वे दिखाना चाहते थे जो उन्हें फिल्म्स डिवीजन लाइब्रेरी से आसानी से मिल गयी। इसी तरह सैकड़ों फिल्मों को खोजते हुए लोग या उन के पत्र फिल्म्स डिवीजन में आते रहते थे।

कुछ साल पहले कर्नल बवेजा नाम के सज्जन फिल्म्स डिवीजन पहुंचे। बताया 1965 के भारत पाक युद्ध के समय वह कैप्टन थे, उनकी रेजीमेंट गुजरात, भुज में तैनात थी। इस युद्ध का आरंभ कच्छ के रन में हुआ था, जो कराची से बहुत दूर नहीं है। कर्नल ने बताया कि इस प्रसिद्ध लड़ाई की कैमरे से बहुत सारी शूटिंग की गयी थी, स्टिल फोटो खींचे गए थे। वह और उनके साथी कई हफ्तों से खोज में लगे थे लेकिन दूरदर्शन, फोटो डिवीजन और आम्र्ड फोर्सेज फिल्म एंड फोटो डिवीजन से उन्हें कुछ नहीं मिल पा रहा था।

वह अपनी रेजीमेंट के 75 वर्ष पूरे होने वाले जलसे के लिए एक फि़ल्म बना रहे थे। किसी ने उन्हें फिल्म्स डिवीजन के बारे में बताया। फिल्म्स डिवीजन की व्यवस्थित डिजिटाइज्ड लाइब्रेरी में खोजने पर1965 की कच्छ की लड़ाई पर बनी फि़ल्म ढूंढने में ज्यादा देर नहीं लगी। जब वह फिल्म लेने आए पत्नी भी साथ थीं। लड़ाई के समय वे 25 साल के थे और उनकी शादी 28 साल की उम्र में हुई थी। फिल्म में उनका नाम और चेहरा भी कई बार आया। श्रीमती बवेजा एक टक फिल्म देख रही थीं और कर्नल बवेजा पत्नी की ओर। खुशी और गर्व के साथ! फिल्म्स डिवीजन के कर्मचारियों की खुशी और गर्व भी देखने लायक था।

फिल्म्स डिवीजन की न्यूजरील, न्यूज मैगजीन और डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का पूरे देश के सिनेमाघरों में प्रदर्शन 1948 से आरंभ हो गया जो किसी न किसी रूप में 2020 तक चलता रहा। अब तक फिल्म्स डिवीजन, नेशनल फिल्म बोर्ड ऑफ कनाडा और बी.बी.सी, लंदन के साथ संसार के सबसे बड़े फिल्म निर्माण संगठनों में से एक रहा है।

 

कमेटी की स्थापना

19 जनवरी 2019 को भारत सरकार ने सूचना व प्रसारण मंत्रालय की फिल्म सम्बन्धी गतिविधियों का आकलन करने और उन्हें बेहतर बनाने के उद्देश्य से एक कमेटी की स्थापना की जिसका अध्यक्ष सूचना व प्रसारण मंत्रालय के निवर्तमान सेक्रेटरी व केंद्रीय सूचना आयोग के सदस्य बिमल जुल्का को बनाया गया। फिल्म जगत से राहुल रवेल, ए. के. बीर, श्यामा प्रसाद, टी एस नागभरणा, सूचना व प्रसारण मंत्रालय के विभिन्न विभागों के पदाधिकारी इस के सदस्य थे।

मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार जुल्का कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 19 जनवरी, 2022 को दी। लेकिन सन् 2021 में पूछे जाने पर जुल्का ने बताया था कि रिपोर्ट मंत्रालय को सौंप दी गयी है। इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया, न ही इस रिपोर्ट को संसद या मंत्रालय की संसदीय समिति के पटल पर रखा गया। कई बार फिल्म जगत के व्यक्तियों व अन्य स्टेकहोल्डर्स द्वारा आरटीआई की गयीं किंतु रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की गयी।

अंतत: कई महीने बीतने के बाद रिपोर्ट मंत्रालय की वेबसाइट पर प्रदर्शित कर दी गयी। अन्य स्टेकहोल्डर्स को छोड़ भी दें तो अंतिम निर्णय लेने वाली कमेटी में एन.एफ. डी.सी., फिल्म्स डिवीजन, नेशनल फिल्म आर्काइव, डिरेक्टोरेट आफ फिल्म फेस्टिवल, चिल्ड्रेन फिल्म सोसायटी आफ इंडिया के प्रमुख भी शामिल नहीं किये गए। यह घटना क्रम संदेह को पुख्ता करता है। इन चार फिल्म सम्बंधित विभागों को एनएफडीसी में मिला देने का निर्णय लिया गया है। अब तक एनएफडीसी का की जिम्मेदारी मूलरूप से डेढ़ दो घंटे अवधि की कथा फिल्मों का निर्माण करना रहा है।

फिल्म्स डिवीजन और नेशनल फिल्म आर्काइव के बंद किये जाने के बाद अब सबसे बड़ा सवाल इनकी फिल्मों के भविष्य का है। फिल्म्स डिवीजन ने लगभग नौ हजार फिल्में बनाई हैं। आर्काइव की तिजोरी में 10 हजार से ज्यादा फिल्में हैं। इन फिल्मों की अच्छी डिजिटल कॉपी बनाना जरूरी है। इन फिल्मों का उचित तापमान पर, स्वच्छ धूल रहित स्थान पर संरक्षण, वितरण और आवश्यकतानुसार प्रचार-प्रसार, एक बड़ी जिम्मेदारी है। क्या एनएफडीसी इस जिम्मेदारी को सही ढंग से पूरा कर सकेगा? एनएफडीसी में 70 कर्मचारियों का स्टाफ है, 12 परमानेंट है और 58 अनुबंध पर।

कुछ समय पहले नेशनल फिल्म हेरिटेज मिशन, एनएफएचएम बना है। इसका काम पुरानी फिल्मों की अच्छी डिजिटल कॉपी तैयार करना है। इसे 16 करोड़ रुपए की ग्रांट दी गई है। काम शुरू हो गया है। फिलहाल किन्हीं कारणों से पुरानी फिल्मों के पुनरुद्धार का यह निहायत जरुरी काम अटका हुआ है।

सन 1990 फिल्म प्रभाग द्वारा मुंबई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल फॉर डॉक्यूमेंट्री, शॉर्ट एंड एनीमेशन फिल्म्स, एमआईएफएफ मिफ आरंभ किया गया। इसका श्रेय प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक मणि कौल और उनके मित्र फिल्म्स डिवीजन के तत्कालीन मुख्य निर्माता विजय बहादुर चंद्रा को दिया जा सकता है। निरंतर 17 वां फेस्टिवल मिफ द्वारा 2022 में आयोजित किया गया था। इस तरह की अव्यवसायिक फिल्मों का यह समारोह भारतीय दर्शकों को सारी दुनिया की फिल्में देखने और फिल्मकारों से मिलने का अनूठा अवसर देता है। इसमें पच्चीस लाख रुपए से अधिक के पुरस्कार दिए जाते हैं। आयोजन पर एक करोड़ से अधिक खर्च आता है। सबसे बड़ी बात है कि यह फिल्म समारोह उभरती प्रतिभाओं को सम्मानित कर के उनका मार्ग प्रशस्त करता है। अब एशिया के इस सबसे बड़े डॉक्यूमेंट्री और शार्ट फिल्म्स फेस्टिवल का भविष्य अनिश्चित हो गया है। मंत्रालय का कहना है कि फिल्म्स डिवीजन नाम बनाए रखा जाएगा, क्योंकि यह एक ब्रांडनेम है। आशा है मंत्रालय अपना वादा पूरा करेगा ! वैसे दादागीरी और वादागीरी में इस सरकार ने नए प्रतिमान बनाए हैं।

कयास लगाया जा रहा है कि मामला जमीन का हो सकता है। एन. एफ. डी. सी. एक पब्लिक सेक्टर कंपनी है। ज्यादा घाटा होने पर इसे नीलाम करने की नौबत भी आ सकती है। यह प्राइवेट सेक्टर में जा सकता है। पहले से ही इंडियन आर्मी और रेलवे में, अंदरखाने गहरा असंतोष है, उनकी जमीनें उन के हाथ से फिसलती जा रही हैं। इस घटना क्रम के बारे में यह भी सुनने को मिला कि मुंबई शहर के केंद्र में स्थित पांच एकड़ से अधिक, एक हजार करोड़ से ऊपर की मूल्य वाली फिल्म्स डिवीजन की जमीन पर किसी की नजर है।

कुछ समय पहले तक राजनीतिक, सामाजिक विषयों पर चर्चाओं में एक शब्द अकसर आ जाता था – विकेंद्रीकरण। पिछले कुछ सालों से विकेंद्रीकरण शब्द सुनाई ही नहीं पड़ता। बेचारा विकेंद्रीकरण अब अनाथ हो गया लगता है।

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