अंकिता भंडारी हत्याकांड

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– श्रुति जैन

उत्तराखंड में अंकिता भंडारी का मामला भी देश भर में महिलाओं के रोजगार की स्थिति से अलग नहीं है। लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में काम के अवसर प्रदान करने पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। पूरे राज्य में सरकारी नौकरियों की कमी बनी हुई है एनएसओ 2020 के आंकड़ों से पता चलता है कि 15-29 वर्ष की आयु के कुल 27 प्रतिशत युवा उत्तराखंड में बेरोजगार हैं, जो राष्ट्रीय औसत के 25 प्रतिशत से कहीं अधिक है। इससे यह भी पता चलता है कि महिलाओं की बेरोजगारी दर 35 प्रतिशत है, जो पुरुषों की 25 प्रतिशत की तुलना में काफी ज्यादा है।

उत्तराखंड के अंकिता भंडारी हत्याकांड में सबूतों से छेड़छाड़ और जांच के दौरान लीपापोती की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। हत्या के तीन महीने बाद पुलिस ने इस मामले में 17 दिसंबर को चार्जशीट दाखिल की है, जिससे साफ पता चलता है कि दोषियों को बचाने की कोशिश की जा रही है। पुलिस अब तक यह पता नहीं लगा पाई है कि अंकिता पर किस वीआइपी को ‘स्पेशल सर्विस’ देने का दबाव था, जिस वजह से उसकी हत्या हुई। हैरानी की बात यह है कि पुलिस द्वारा और विधानसभा में ‘वीआइपी’ को घटनास्थल वनंतरा रिजॉर्ट का एक वीआइपी कमरा बताया गया है। यह बात भी सामने आई है कि पुलिस ने न तो आरोपी पुलकित आर्य का फोन बरामद किया है और न ही उन्हें रिजॉर्ट से कोई फोरेंसिक साक्ष्य या फिंगरप्रिंट मिले हैं। ऋषिकेष के पास वनंतरा रिजॉर्ट में काम कर रही अंकिता की 18 सितंबर, 2022 को हत्या कर दी गई थी।

आरोपियों का सत्ताधारी पार्टी (भाजपा) से संबंधित होना जनमानस में न्याय की उम्मीदों को धुंधला कर रहा है। अंकिता की हत्या के बाद एफआइआर लिखवाने में आई कठनाई और साक्ष्य सुरक्षित करने में दिखाई गई लापरवाही उत्तराखंड की आपराधिक न्याय प्रणाली पर भी सवाल उठाती है। अंकिता के पिता के तीन थानों में भटकने के बाद भी उनकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई। पुलिस ने उन्हें वापस पटवारी के पास भेजा और उसने पिता की बजाय आरोपी की तरफ से अंकिता की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की। पुलकित के पिता और पूर्व राज्य मंत्री विनोद आर्य पटवारी चौकी में बैठे रहे, और अंकिता के पिता बाहर इंतजार करते रहे। बाद में अंकिता के पिता की तरफ से काफी हाथ-पांव मारने के बाद चौथे दिन केस पुलिस के पास गया। जांच प्रक्रिया के दौरान स्थानीय भाजपा विधायक द्वारा पुलिस द्वारा सील रिजॉर्ट में अंकिता के कमरे पर बुलडोजर चलाकर साक्ष्यों को मिटाने की कोशिश भी आरोपियों को मिल रहे सरकारी संरक्षण की कहानी कहती है।

अंकिता हत्याकांड उत्तराखंड में चरमराती कानून व्यवस्था के अलावा बढ़ते रोजगार के सरकारी दावों की पोल भी खोलता है। इससे राज्य में पर्यटन उद्योग के महिमामंडन का छद्म भी सामने आता है। इस हत्याकांड की जड़ें उत्तराखंड की वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक स्थितियों में छिपी हुई हैं। अंकिता हत्याकांड ऐसे वक्त में सामने आया जब पूरे राज्य की सरकारी नौकरियों के घोटालों में सत्ताधारी पार्टी भाजपा की भूमिका चर्चा में है। अंकिता की हत्या साफ तौर से यह बताती है कि राज्य में नौजवानों के लिए, खास तौर पर लड़कियों के लिए, कहीं रोजगार नहीं है। और अगर कहीं है तो अपराध पर टिके उद्योग के आसपास ही है। रोजगार की तलाश उनके लिए जानलेवा भी साबित हो सकती है। सिर्फ 19 साल की अंकिता भी नौकरी की तलाश में ही पुलकित आर्य के रिजॉर्ट वनंतरा पहुंची थी।

 

अंकिता और रोजगार की तलाश

अंकिता पौड़ी गढ़वाल जिले के एक गांव ढोभ-श्रीकोट की रहने वाली थी। गरीब परिवार में पली-बढ़ी अंकिता पढऩे में तेज थी। उसने 12 वीं कक्षा में 88 प्रतिशत अंक प्राप्त करने के बावजूद जल्दी नौकरी पाने की उम्मीद में एक होटल प्रबंधन संस्थान में दाखिला लिया था। 40 और 45 हजार रुपए की फीस भर देने के बाद भी, दूसरी किश्त न चुका पाने के कारण उसे डिप्लोमा कोर्स बीच में ही छोडऩा पड़ा। कोविड के दौरान अंकिता के पिता की नौकरी चली गई थी, जिस वजह से करीब 50 हजार रुपए की राशि एकमुश्त, जैसा कि प्रबंधन संस्थान की मांग थी, चुका पाना उनके लिए मुश्किल था। किसी भी तरह के मार्गदर्शन और सहयोग तंत्र के अभाव में, अंकिता ने ओएलएक्स पर ऑनलाइन विज्ञापित वनंतरा रिसॉर्ट में नौकरी करने का सोचा। सिर्फ 18 दिन की नौकरी के पश्चात वहां उसकी हत्या कर दी गई।

अंकिता भंडारी मामले को ध्यान में रखते हुए देश में, विशेषकर उत्तराखंड में, महिलाओं और विशेष रूप से युवा लड़कियों के लिए उपलब्ध काम के अवसरों पर चर्चा करना जरूरी हो जाता है। देशपांडे (2021) का शोध इस आम समझ को नकारता है कि महिलाएं कार्यक्षेत्र से इसलिए नदारद हैं क्योंकि वे यौन या अन्य प्रकार की हिंसा या बदनामी/आलोचना/स्टिग्मा, आदि के डर से नौकरी करने से कतरा रही हैं। बल्कि इसमे पाया गया है कि भारतीय श्रम बाजार में महिलाओं के लिए बेहतर अवसर पैदा न कर पाना इसकी मुख्य वजह है। सभी व्यवधानों के बावजूद महिलाएं काम करना चाहती हैं, काम की मांग कर रही है, पर यह मांग पूरी नहीं हो रही है। खासकर ग्रामीण और कम पढ़ी-लिखी महिलाओं के लिए रोजगार के साधन बहुत कम हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था बाकी देशों की तुलना में महिलाओं के लिए सबसे कम अवसर उपलब्ध कराने वालों में से एक है। आंकड़ों के अनुसार, 2010 और 2020 के बीच, भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या 26 से घटकर 19 प्रतिशत हो गई थी। कोविड-19 लॉकडाउन ने स्थिति को और खराब कर दिया। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी के आंकड़ों के अनुसार, 2017 से 2022 के बीच, लगभग 210 लाख महिलाएं रोजगार गंवा चुकी हैं और केवल 9 प्रतिशत महिलाओं के पास या तो रोजगार है या तमाम हताशाओं के बावजूद वे रोजगार की खोज में बची रही हैं (बेनीवाल, 2022) ।

अंकिता भंडारी का मामला भी देश भर में महिलाओं के रोजगार की स्थिति से अलग नहीं है। उत्तराखंड में हालांकि लड़कियों की शैक्षिक स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है और लड़कियों को शिक्षित करने और काम करने देने में रोकटोक अपेक्षाकृत कम है। लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में काम के अवसर प्रदान करने पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। पूरे राज्य में सरकारी नौकरियों की कमी बनी हुई है और पिछले कुछ महीनों में सरकारी नौकरियों में भर्ती घोटालों के कई किस्से सामने आए हैं। इनमें अधीनस्थ चयन सेवा आयोग (यूकेएसएससी), विधानसभा, सहकारिता विभाग और उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के भर्ती घोटाले मुख्य रूप से शामिल है। सभी घोटालों में सत्ताधारी पार्टी के नेताओं का नाम खुलकर सामने आए हैं। राज्य में अगर शिक्षा और रोजगार के पर्याप्त अवसर होते तो अंकिता को बीच में पढ़ाई छोड़कर आपराधिक गतिविधियों के केंद्र वनंतरा जैसे रिजॉर्ट में नौकरी करने नहीं जाना पड़ता।

उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में 3.23 लाख बेरोजगारों के साथ स्नातक श्रम शक्ति का 40 प्रतिशत हिस्सा बेरोजगार है (ममगई 2022)। ग्रामीण पहाड़ी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर और भी खराब है, जिससे पलायन बढ़ रहा है। 2020-21 के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) डेटा के अनुसार, राष्ट्रीय दर 3.3 प्रतिशत के मुकाबले उत्तराखंड में ग्रामीण बेरोजगारी दर 5.5 प्रतिशत है (आरबीआई 2022)। एनएसओ 2020 के आंकड़ों से पता चलता है कि 15-29 वर्ष की आयु के कुल 27 प्रतिशत युवा उत्तराखंड में बेरोजगार हैं, जो राष्ट्रीय औसत के 25 प्रतिशत से कहीं अधिक है। इससे यह भी पता चलता है कि महिलाओं की बेरोजगारी दर 35 प्रतिशत है, जो पुरुषों की 25 प्रतिशत की तुलना में काफी ज्यादा है (झा 2021)।

इतने व्यापक पैमाने पर बेरोजगारी के चलते होटल उद्योग या नर्सिंग में नौकरियां दिलवाने का वादा करने वाले कई शिक्षण संस्थान हर दूसरी गली-मुहल्ले में खुल गए हैं। ये संस्थान रोजगार के लिए विभिन्न कोर्स उपलब्ध कराने के नाम पर मोटी फीस वसूल रहे हैं। 6 महीने से लेकर एक साल तक के ऐसे डिप्लोमा कोर्स ऐसा कोई कौशल विकसित नहीं करते जिससे युवा उपयुक्त काम के अवसर प्राप्त कर सकें। ऐसे संस्थान गरीब माता-पिता की जमापूंजी को निचोड़ कर युवाओं पर बोझ को बढ़ा देते हैं। नतीजतन, युवाओं को बहुत कम वेतन और अमानवीय स्थितियों में होटल, रेस्तरां, कारखानों और ऐसे अन्य अनौपचारिक क्षेत्र के उद्यमों में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

अंकिता जैसी पृष्ठभूमि वाली पहाड़ी लड़कियों के लिए बड़े शहरों में नौकरी और रहने की जगह खोज पाना मुश्किल है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के बिना, वे ‘ऑनलाइन नौकरियों’ या राज्य के बाहर बेहतर नौकरियों के लिए प्रतिस्पर्धा कर पाने में भी सक्षम नहीं रहतीं। सरकारी क्षेत्र उन्हें उपयुक्त काम के अवसर प्रदान करने में विफल रहता है, इसलिए वे आम तौर पर अनौपचारिक क्षेत्र की छोटी नौकरियां पाने आसपास के कस्बों-शहरों में पहुंच रही हैं। ये नौकरियां अत्यंत अनियमित और असुरक्षित हैं। उपलब्ध नौकरियों, जॉब प्रोफाइल और काम की शर्तों के बारे में पर्याप्त जानकारी का अभाव रहता है, जिसके चलते वे अंकिता की तरह सूचना के अनौपचारिक माध्यमों का सहारा लेती हैं। इन्ही वजहों से नौकरी का झांसा देकर पहाड़ी लड़कियों की तस्करी के मामले भी सामने आ रहे हैं।

यौन उत्पीडऩ संबंधित कानूनों और अधिकारों के बारे में अनभिज्ञता अनौपचारिक क्षेत्र की महिलाओं को उनके नियोक्ताओं की दया पर छोड़ देती है। कामकाजी महिलाओं के लिए छात्रावास जैसी संस्थागत और सहायक व्यवस्था अनुपस्थित है (नीथा 2022)। अंकिता के साथ भी ऐसा ही हुआ था। पिता ने उसे वनंतरा रिसॉर्ट के मालिक पुलकित आर्य के भरोसे यह कह कर छोड़ा था कि वह उसके पिता समान है। उसी पुलकित ने अंकिता की हत्या कर डाली। कार्यस्थल के ऐसे हालात अंकिता जैसी लड़कियों को शारीरिक या यौन हिंसा को रिपोर्ट करने का अवसर भी नहीं देते।

विकास जनित मुश्किलें

अंकिता के मामले को हाल के दिनों में उत्तराखंड में हुए अन्य सामाजिक-राजनीतिक घटनाक्रमों के संदर्भ में देखने और समझने की जरूरत भी है। जुलाई महीने में चमोली जिले के हेलंग गांव की महिलाओं पर पुलिस अत्याचार का वीडियो सामने आने के बाद नागरिक समाज ने पूरे राज्य में बड़े पैमाने पर आंदोलन किया था। वहां जल विद्युत कंपनी टीएचडीसी द्वारा गांव के चारागाह पर जबरन कब्जे का विरोध कर रही महिलाओं को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। राज्य में कार्यरत ऐसी सैकड़ों पनबिजली कंपनियां ग्रामीण कृषि भूमि, चारागाहों, जंगल और नदियों को कब्जे में ले रही हैं। जिससे स्थानीय जनता के लिए मुश्किलें खड़ी हो रही हैं।

उत्तराखंड में कृषि और पशुपालन के ऊपर काफी गरीब परिवारों, जिसमें एकल/विधवा महिलाओं के परिवार शामिल है, का भरण पोषण निर्भर है। ग्रामीण क्षेत्रों में कैसे भी रोजगार को खोजने की तत्परता शायद इसलिए भी है कि खेती और संबंधित आजीविका के परंपरागत साधन कम होते जा रहे हैं। खेती न केवल जंगली जानवरों के हमलों और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण मुश्किल हो गई है, बल्कि विकास और पर्यटन का गलत मॉडल भी इसके लिए जिम्मेदार है। बाजार के प्रभाव से भी बहुत से पारंपरिक काम खात्मे की कगार पर हैं।

वास्तव में, राज्य के गठन के बाद सरकारों का ध्यान विकास के नाम पर जलविद्युत परियोजनाओं, पर्यटन, शराब, खनन आदि को बढ़ावा देने पर ही रहा है। ग्रामीण अपनी कृषि भूमि और जंगलों को पर्यटन उद्योग, भू-माफिया और जलविद्युत परियोजनाओं के लिए खो रहे हैं और उन्हें कोई वैकल्पिक आजीविका नहीं मिल रही है। जलविद्युत कंपनियां आसपास के इलाकों के लोगों को अस्थायी नौकरियों पर रखती हैं। इनमें से ज्यादातर नौकरियां निर्माण की अवधि के दौरान स्थानीय लोगों के विरोध के रूप में कोई व्यवधान न आने देने के लिए दी जाती हैं। यहां इस तथ्य पर ध्यान देना इसलिए भी प्रासंगिक है क्योंकि अंकिता भंडारी के पिता श्रीनगर में चल रही अलकनंदा जलविद्युत परियोजना में काम करते थे और 2021 में उन्हें हटा दिया गया था। पूरा परिवार भयानक आर्थिक दबाव में था। अंकिता ने भी पढ़ाई छोड़कर नौकरी करने का दबाव महसूस किया होगा।

हेलंग की घटना के विरोध के अलावा राज्य में एक मजबूत भूमि कानून की मांग भी लगातार उठ रही है। 2018 में भाजपा की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने उत्तराखंड के बाहर के लोगों को औद्योगिक उद्देश्यों के लिए कृषि भूमि खरीदने पर प्रतिबंध में ढील दी। यही वजह है कि यहां पर बाहर के पूंजीपतियों के धंधों से जुड़ा अपराधतंत्र तो फैल रहा है, लेकिन युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा, न ही उनके परिवार के पास कृषि भूमि रही।

उत्तराखंड में जिस तरह के पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है उससे स्थानीय लोगों को फायदे के बजाय पारिस्थितिकी का विनाश हो रहा है। अवैज्ञानिक तरीकों से किये जा रहे अनियोजित निर्माणों में पर्यावरणीय मानदंड़ों की अनदेखी की जा रही है। बाहरी लोगों की तुलना में कम पूंजी और कौशल वाले स्थानीय लोग होटल रेजोर्ट्स बनाने वाले बड़े पूंजीपतियों के सामने घाटे में रहते हैं। अधिकांश स्थानीय लोग अपनी जमीन पर बनी पर्यटन इकाइयों में निचले पदों पर काम कर रहे हैं या पलायन कर चुके हैं। रोजगार के नाम पर पर्यटन उद्योग का महिमामंडन करना कई सवाल पैदा करता है। इसी अनियंत्रित पर्यटन उद्योग ने अंकिता भंडारी की जान ली।

आपराधिक पर्यटन

सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के संरक्षण के अलावा पुलकित आर्य जैसे लोगों के बेलगाम होने का कारण यह भी है कि वनंतरा जैसे रिजोर्ट्स के लिए कोई ठोस नियम-कानून नहीं बनाए गए हैं। इन्हे गैरकानूनी रूप से जंगलों और नदियों किनारे बनाया जा रहा है। उत्तराखंड में अधिकतम होटल और रिजॉर्ट बिना पंजीकरण और लाइसेंस के चल रहे हैं। इसके अलावा, पर्यटन उद्योग में काम करने वाली महिलाओं की सुरक्षा के कोई उपाय नहीं हैं। विशाखा दिशानिर्देश और कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीडऩ (रोकथाम, संरक्षण और निवारण) अधिनियम, 2013 के अंतर्गत कोई आंतरिक शिकायत समितियां होटलों और रिजॉर्ट्स समेत उत्तराखंड में पूरे निजी क्षेत्र में ही नहीं बनाई गई हैं। इस कानून की इस प्रकार से अवहेलना के हालात में निरीक्षण या निगरानी की कोई व्यवस्था नहीं है।

पर्यटन उद्योग को सरकारों द्वारा राजस्व और रोजगार के नाम पर आक्रामक रूप से बढ़ावा दिया जाता रहा है। लेकिन अंकिता मामले से पता चलता है कि इस क्षेत्र में महिलाओं को पेशेवर कर्मचारी के रूप में देखने की प्रवृत्ति नहीं है, बल्कि उन्हें यौन सेवाएं प्रदान करने वालों के रूप में देखा जा रहा है। आरएसएस नेता विपिन कर्णवाल का फेसबुक पोस्ट भी इसे दर्शाता है। वह अंकिता के पिता को जंगलों में स्थित एक रिसॉर्ट में अपनी बेटी को काम करने देने के लिए दोषी ठहराते हैं, और अपनी विकृत सोच दर्शाते हुए इसे ”बिल्लों के सामने कच्चा दूध रखने’’ के बराबर कहते हैं।

उत्तराखंड आने वाला पर्यटकों का बड़ा हिस्सा इसे मौज-मस्ती के केंद्र मानकर देखता है। विशेष रूप से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) से आने वालों के लिए ये सप्ताहांत की अय्य़ाशी का अड्डा बनता जा रहा है। आंतरिक क्षेत्रों में स्थित होटलों और होमस्टे में आने वाले अनियंत्रित मेहमान इन संस्थानो में छोटे पदों पर काम कर रहे स्थानीय लोगों को परेशान करते हैं। उनके कारण स्थानीय महिलाओं की जंगलों और खेतों में बेखौफ आवाजाही भी बाधित होती है।

वर्तमान बीजेपी सरकार जनता के हितों को ध्यान में रखने के बजाय भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुई है। अपराधों पर कोई लगाम नहीं है। यही वजह है कि बलात्कार और बाल यौन शोषण जैसे अपराधों के मामले में, उत्तराखंड को राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) 2020 के आंकड़ों द्वारा नौ हिमालयी राज्यों में सबसे ऊपर रखा गया है। इसकी वजह स्थानीय लोग नए भू-कानून को भी मानते हैं (आरा 2022), जिसमें बाहरी निवेश बढ़ाने के लिए भूमि कानून को कमजोर बनाया गया। ऐसा अधिकांश निवेश पर्यटन और हॉस्पिटैलिटी के क्षेत्र में हो रहा है जहां नियम न के बराबर हैं। इसलिए पर्यटन उद्योग के विकास और अंकिता हत्याकांड जैसे अपराधों में वृद्धि के बीच की कड़ी की गहन जांच होनी चाहिए।

अंकिता के मामले से पता चलता है कि लड़कियों को सुरक्षित वातावरण में काम करने में सक्षम बनाने के लिए एक सुविचारित तंत्र स्थापित करने की तत्काल आवश्यकता है। सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए लिहाज से सबसे जरूरी है कि हर कार्यस्थल पर अधिक से अधिक महिलाओं को रोजगार मिले। कार्यस्थल में अधिक महिलाओं के होने से वहां का माहौल बदलेगा और सुरक्षा की भावना भी आएगी। अंकिता रिजॉर्ट में काम करने वाली इकलौती लड़की थी और अपनी तकलीफ किसी से साझा नहीं कर सकी।

अंकिता के मामले में अब तक हुई कार्रवाई ने इस बारे में संदेह पैदा किया है कि दोषियों को कड़ी सजा मिल पाएगी। उन्हे उचित सजा मिलने के साथ ही, राज्य में ऐसा माहौल बनाने की कोशिशों की जरूरत है कि अंकिताएं अपने घरों से बाहर निकलने से डरें नहीं। उनके पास अपने सपनों और आकांक्षाओं को साकार करने के अवसर हों। तभी मुजफ्फरनगर कांड जैसा भयानक दमन झेलने वाली महिलाओं की उम्मीदों का राज्य बन पायेगा और महिलाओं को उनके हक मिल पाएंगे। 

 

संदर्भ

  1. ममगई, राजेंद्र (2022) : ‘उत्तराखंड: फोकस ऑन अनइंप्लॉयमेंट, माइग्रेशन’, डेली पायनियर, 7 फरवरी।
  2. आरबीआई (2022) : हैंडबुक ऑफ स्टेटिस्टिक्स ऑन इंडियन स्टेट्स, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया।
  3. झा, प्रशांत (2021): ‘नीयर्ली 1/3र्ड ऑफ उत्तराखंड यूथ अनएम्प्लॉयड : एनएसओ सर्वे’, टाइम्स ऑफ इंडिया, 20 सितंबर।
  4. नीता एन (2022): ‘अंकिता भंडारी केस : हाउ ड्रीम्स ऑफ फ्रीडम आर शेटर्ड फॉर वर्किंग वुमेन इन स्माल-टाउन इंडियन’, इंडियन एक्सप्रेस, 30 सितंबर।
  5. देशपांडे, अश्विनी (2021): ‘इंडियास वुमेन एंड द वर्कफोर्स’, द हिंदुस्तान टाइम्स, 8 मार्च।
  6. बेनीवाल, वृष्टि (2022): ‘मेजोरिटी ऑफ इंडियास 900 मिल्यन वर्कफोर्स स्टॉप लूकिंग फॉर वर्क’, ब्लूमबर्ग, 25 अप्रैल।
  7. आरा, इस्मत (2022) : ‘अंकिता भंडारी मर्डर केस पॉइंट्स ट राइजिंग क्राइम इन उत्तराखंडÓ, फ्रंटलाइन, 20 अक्टूबर।

 

(लेखिका अंकिता हत्याकांड को लेकर उत्तराखंड महिला मंच द्वारा आयोजित राष्ट्रीय तथ्यान्वेषण दल की सदस्य थीं। इस दल में कई मानवाधिकार और महिला संगठनों ने हिस्सेदारी की थी)

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