भारत में समाजवाद के सौ साल
– प्रकाश चंद्रायन भारत में समाजवाद के वैचारिक प्रयोग के सौ साल हो चुके हैं। वाम, मध्य, दक्षिणपंथी, आदि सभी संगठन अपने-अपने समाजवाद के सहारे […]
– प्रकाश चंद्रायन भारत में समाजवाद के वैचारिक प्रयोग के सौ साल हो चुके हैं। वाम, मध्य, दक्षिणपंथी, आदि सभी संगठन अपने-अपने समाजवाद के सहारे […]
रामविलास शर्मा की प्रतिष्ठा का आधार उनकी पुस्तक निराला की साहित्य साधना (भाग दो )है। यहां तक कि अक्सर निराला को स्थापित करने का श्रेय भी इस किताब को मिल जाता है। यह पहली बार 1972 में प्रकाशित हुई थी। इस तरह इस के प्रकाशन के 50वें साल में इस पर दुबारा नजर डालना अनुपयुक्त न होगा। प्रस्तुत है तीन अंकों में प्रकाशित होने वाले इस लेख की दूसरी किस्त।
– सुभाष गाताडे चीजें जितनी बदलती जाती हैं, वह वैसी ही बनी रहती हैं। उन्नीसवीं सदी के अग्रणी फ्रेंच समीक्षक, पत्रकार और उपन्यासकार जां […]
– अमिल बसोल, मनिंदर ठाकुर और अनुपम डॉक्टर अमित बसोले ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि हालांकि, सुनील से मेरी कभी मुलाकात नहीं […]
– रविकांत औपनिवेशिक भारत में आधुनिक शिक्षा की शुरुआत हुई। मानीखेज है कि ज्योतिबा फुले-सावित्रीबाई फुले जैसे बहुजन समाज सुधारकों के प्रयत्न से गरीब-वंचित तबके […]
– अतुल सती यूं तो पूरा हिमालयी क्षेत्र ही संवेदनशील है। हिमालय भूगर्भिक तौर पर सबसे नए बने पर्वत हैं और अब भी निरंतर बनने […]
ऐजाज अहमद के चिंतन के केंद्र में बीसवीं सदी में पूरी दुनिया में चलने वाले उपनिवेश-विरोधी राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन हैं। आजाद होने के बाद इनमें से कुछ ने पूंजीवाद की ओर कदम बढ़ाया और कुछ ने समाजवाद की दिशा में बढऩे का प्रयास किया। ऐजाज अहमद इन प्रयासों की बारीकी से पड़ताल करते हैं, खास तौर पर समाजवाद के सामने आने वाली कठिनाइयों की छानबीन से वह यह निष्कर्ष निकालते हैं।
हमारे रोजमर्रा के लेन-देन में केवल लेन-देन डिजिटल तरीके से होता है, जबकि हमारी मुद्रा वही रुपया, डॉलर, इत्यादि होती है। जबकि क्रिप्टोकरेंसी मुद्रा ही अलग होती है। इस मुद्रा में इसकी सुरक्षा के लिए गुप्त कोड होते हैं जो इसे सुरक्षित रखते हैं और धारक की पहचान को गुप्त रखते हैं। गुप्त कोडिंग की इस प्रक्रिया को क्रिप्टोग्राफी कहते हैं, इसीलिए ऐसी मुद्राओं को क्रिप्टोकरेंसी कहते हैं। एक वेबसाइट के अनुसार, दुनियाभर में ऐसी लगभग 13,000 मुद्राएं चलन में हैं। इनमें से सबसे ज्यादा चर्चा ‘बिटक्वायन’ की ही होती है।
कृष्ण मोहन देश के बंटवारे को गुजरे एक अर्सा हो गया था, जब विगत सदी के आखिरी दशक में इसके प्रति नई जिज्ञासा हिंदी-उर्दू भाषी […]
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