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भारत में समाजवाद के सौ साल

December 27, 2022 admin 0
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– प्रकाश चंद्रायन भारत में समाजवाद के वैचारिक प्रयोग के सौ साल हो चुके हैं। वाम, मध्य, दक्षिणपंथी, आदि सभी संगठन अपने-अपने समाजवाद के सहारे […]

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निरालाः पुनर्विचार और नए नतीजे

November 25, 2022 admin 0
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रामविलास शर्मा की प्रतिष्ठा का आधार उनकी पुस्तक निराला की साहित्य साधना (भाग दो )है। यहां तक कि अक्सर निराला को स्थापित करने का श्रेय भी इस किताब को मिल जाता है। यह पहली बार 1972 में प्रकाशित हुई थी। इस तरह इस के प्रकाशन के 50वें साल में इस पर दुबारा नजर डालना अनुपयुक्त न होगा। प्रस्तुत है तीन अंकों में प्रकाशित होने वाले इस लेख की दूसरी किस्त।

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सांस्कृतिक हीनता बोध का शिकार एक समाज

November 2, 2022 admin 0
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इधर, उत्तराखंड में जो हो रहा है, उसे कोई अपवाद नहीं माना जाना चाहिए। धर्म, सांप्रदायिकता के सहारे कोई देश नहीं चल सकता। कम-से-कम उत्तराखंड से यही संकेत आ रहा है जो खासा स्पष्ट है।

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आज के भारत में बेरोजगार

October 15, 2022 admin 0
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– अमिल बसोल, मनिंदर ठाकुर और अनुपम डॉक्टर अमित बसोले ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि हालांकि, सुनील से मेरी कभी मुलाकात नहीं […]

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निजीकरण के निहितार्थ

August 16, 2022 admin 0
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– रविकांत औपनिवेशिक भारत में आधुनिक शिक्षा की शुरुआत हुई। मानीखेज है कि ज्योतिबा फुले-सावित्रीबाई फुले जैसे बहुजन समाज सुधारकों के प्रयत्न से गरीब-वंचित तबके […]

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मार्क्सवादी विमर्श के आयाम

June 15, 2022 admin 0
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ऐजाज अहमद के चिंतन के केंद्र में बीसवीं सदी में पूरी दुनिया में चलने वाले उपनिवेश-विरोधी राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन हैं। आजाद होने के बाद इनमें से कुछ ने पूंजीवाद की ओर कदम बढ़ाया और कुछ ने समाजवाद की दिशा में बढऩे का प्रयास किया। ऐजाज अहमद इन प्रयासों की बारीकी से पड़ताल करते हैं, खास तौर पर समाजवाद के सामने आने वाली कठिनाइयों की छानबीन से वह यह निष्कर्ष निकालते हैं।

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अनुत्पादक पूंजी की चरम अभिव्यक्ति

March 14, 2022 admin 0
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हमारे रोजमर्रा के लेन-देन में केवल लेन-देन डिजिटल तरीके से होता है, जबकि हमारी मुद्रा वही रुपया, डॉलर, इत्यादि होती है। जबकि क्रिप्टोकरेंसी मुद्रा ही अलग होती है। इस मुद्रा में इसकी सुरक्षा के लिए गुप्त कोड होते हैं जो इसे सुरक्षित रखते हैं और धारक की पहचान को गुप्त रखते हैं। गुप्त कोडिंग की इस प्रक्रिया को क्रिप्टोग्राफी कहते हैं, इसीलिए ऐसी मुद्राओं को क्रिप्टोकरेंसी कहते हैं। एक वेबसाइट के अनुसार, दुनियाभर में ऐसी लगभग 13,000 मुद्राएं चलन में हैं। इनमें से सबसे ज्यादा चर्चा ‘बिटक्वायन’ की ही होती है।