नैतिकता और विवेक का टूटता पुल
पिछले दिनों हुए राज्यों के चुनावों के परिणाम मात्र राजनीतिक हार-जीत के संदर्भ में न तो देखे जा सकते हैं और न ही समझे। विशेष […]
पिछले दिनों हुए राज्यों के चुनावों के परिणाम मात्र राजनीतिक हार-जीत के संदर्भ में न तो देखे जा सकते हैं और न ही समझे। विशेष […]
– प्रकाश चंद्रायन भारत में समाजवाद के वैचारिक प्रयोग के सौ साल हो चुके हैं। वाम, मध्य, दक्षिणपंथी, आदि सभी संगठन अपने-अपने समाजवाद के सहारे […]
– गोपाल नायडू हर काल में राजसत्ता प्रतीकों को लेकर खेल खेलती है और अपने हित में, अपनी सुविधा से उनका इस्तेमाल करती है। […]
रामविलास शर्मा की प्रतिष्ठा का आधार उनकी पुस्तक निराला की साहित्य साधना (भाग दो )है। यहां तक कि अक्सर निराला को स्थापित करने का श्रेय भी इस किताब को मिल जाता है। यह पहली बार 1972 में प्रकाशित हुई थी। इस तरह इस के प्रकाशन के 50वें साल में इस पर दुबारा नजर डालना अनुपयुक्त न होगा। प्रस्तुत है तीन अंकों में प्रकाशित होने वाले इस लेख की दूसरी किस्त।
इस वर्ष की नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रांसीसी लेखक एनी अर्नो में ऐसी कौनसी खासियत या खूबी है कि लोग उनकी किताबों के दीवाने बन जाते हैं और फ्रांस में उन्हें बेशुमार लोकप्रियता हासिल है। क्या किसी का निजी जीवन दूसरे व्यक्ति के लिए या एक लेखक का जीवन गाथा पाठक में कोई उत्सुकता जगा सकती है, रोमांचित या आल्हादित या उद्वेलित कर सकती है? वह निजी वृत्त के अनुभव और स्मृति को एक सार्वभौव व्यथा-कथा में तब्दील कर पाती हैं।
इतालवी और योरोपीय समाज में सतह के नीचे मौजूद फासीवादी विचारधारा के प्रभाव को रेखांकित करते हुए प्रसिद्ध इतालवी उपन्यासकार और निबंधकार अम्बर्तो इको ने लिखा था, ”उर-फासीवाद (आंतरिक फासीवाद) लगातार हमारे आस पास है, कई बार तो बिल्कुल ही सादे कपड़ों में। यह हमारे लिए बहुत ही सामान्य बात होगी कि कोई व्यक्ति इस परिदृश्य में हमारे सामने आए और कहे, मैं आउशवित्स को फिर से खोलना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि इटली के चौराहों पर काली कमीज वाले लोग परेड करें।”
Copyright © 2024 | WordPress Theme by MH Themes