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मेरी टाइलर का जेलनामा

March 24, 2023 admin 0
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यह अध्ययन का विषय है कि उन डायरियों को जेल साहित्य का हिस्सा क्यों नहीं माना जाए और इसे एक स्वतंत्र विधा के तौर पर क्यों नहीं स्थापित किया जाए? विशेषकर इसलिए कि इन का सरोकार मानवाधिकार, सामाजिक अन्याय, राजनीतिक दमन और न्याय व्यवस्था के साथ ही साथ जेल व्यवस्था से भी है।

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इतिहास में फिल्म्स डिवीजन

March 11, 2023 admin 0
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– राजीव कटियार फिल्म्स डिवीजन 1 जनवरी 2023 से बंद हो गया है। अदूर गोपालकृष्णन, मणि कौल, कुमार शाहानी, जी. अरविंदन, राजेश बेदी, गिरीश कासरवल्ली, […]

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विचार के स्वराज की जरूरत

March 4, 2023 admin 0
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– अभिषेक श्रीवास्तव पिछले दिनों बिहार के किसी नेता ने रामचरितमानस पर एक  टिप्पिणी की थी। उस टिप्पणी ने हिंदी जगत की सुप्ति प्रेतात्मापओं को […]

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हिंदी लेखन की सीमाएं

February 18, 2023 admin 0
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लेखन में, विशेषकर रचनात्मक लेखन की स्वस्फूर्तता, से इंकार नहीं किया जा सकता, जो कई मामलों में अनुभवजन्य होता है। इसलिए यह लेखन वृहत्तर सामाजिक […]

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अंकिता भंडारी हत्याकांड

January 28, 2023 admin 0
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उत्तराखंड में अंकिता भंडारी का मामला भी देश भर में महिलाओं के रोजगार की स्थिति से अलग नहीं है। लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में काम के अवसर प्रदान करने पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। पूरे राज्य में सरकारी नौकरियों की कमी बनी हुई है । एनएसओ 2020 के आंकड़ों से पता चलता है कि 15-29 वर्ष की आयु के कुल 27 प्रतिशत युवा उत्तराखंड में बेरोजगार हैं, जो राष्ट्रीय औसत के 25 प्रतिशत से कहीं अधिक है। इससे यह भी पता चलता है कि महिलाओं की बेरोजगारी दर 35 प्रतिशत है, जो पुरुषों की 25 प्रतिशत की तुलना में काफी ज्यादा है।

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आंतरिक दुश्मनों की अंतहीन खोज से उभरे सवाल

January 28, 2023 admin 0
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इतिहास इस बात की बार-बार ताईद करता है कि हर असमावेशी विचारधारा – जो खास समूह या तबके के अन्यायीकरण पर आधारित होती है – उसकी पूरी कोशिश उपरोक्त समूह या तबके को ‘मनुष्य से कमतर’ या ‘संहार योग्य’ बताने की रहती है। बीसवीं सदी का पूर्वाद्र्ध ऐसे संहारों के लिए कुख्यात रहा है, जिसमें सबसे अधिक सुर्खियों में रहा है यहूदियों का जनसंहार। हमारे अपने समय में भी आंतरिक दुश्मनों की खोज की कवायद जारी ही दिखती है, कभी ज्यादा भौंडे रूप में, तो कभी अधिक साफ-सुथराक्रत/सैनिटाइज्ड अंदाज में।

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आंतरिक दुश्मनों की अंतहीन खोज से उभरे सवाल

January 24, 2023 admin 0
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इतिहास इस बात की बार-बार ताईद करता है कि हर असमावेशी विचारधारा – जो खास समूह या तबके के अन्यायीकरण पर आधारित होती है – उसकी पूरी कोशिश उपरोक्त समूह या तबके को ‘मनुष्य से कमतर’ या ‘संहार योग्य’ बताने की रहती है। बीसवीं सदी का पूर्वाद्र्ध ऐसे संहारों के लिए कुख्यात रहा है, जिसमें सबसे अधिक सुर्खियों में रहा है यहूदियों का जनसंहार। हमारे अपने समय में भी आंतरिक दुश्मनों की खोज की कवायद जारी ही दिखती है, कभी ज्यादा भौंडे रूप में, तो कभी अधिक साफ-सुथराक्रत/सैनिटाइज्ड अंदाज में।

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आखिर ये माजरा क्या है

January 22, 2023 admin 0
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कॉरपोरेट मालिकाने वाला एनडीटीवी पत्रकारिता का कम, संस्कृति उद्योग का ज्यादा महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि पूंजीवादी नियंत्रण में जन संचार माध्यम ‘संस्कृति उद्योगÓ के तौर पर काम करते हैं। यहां व्यापारिक कंपनियां अपने फायदे के लिए संस्कृति का निर्माण करती हैं और उसे बेचती हैं। इस तरह के उद्योग जनता की चेतना को कुंद कर उन्हें निष्क्रिय उपभोक्ता में बदल देते हैं। मुनाफाखोर कॉरपोरेट मीडिया मालिकों में पत्रकारिता के उद्धारक तलाशना या तो निरी बेवकूफी है या फिर हद दर्जे की चालाकी।