लेख
डूबती दिल्ली
कहने की जरूरत नहीं है कि देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह पूंजीपतियों के हाथों सौंपी जा चुकी है और इलाज यानी मानवीय पीड़ा, बड़े […]
फासीवाद के बढ़ते कदम और प्रतिरोध की संभावना
कम्युनिस्ट आंदोलन में दिपंकर भट्टाचार्य का नाम चिर परिचित है। विगत 25 वर्ष से दीपांकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) लिबरेशन के महासचिव हैं। उन्होंने राजनीति, संस्कृति और सामाजिक क्षेत्र में कई उतार चढ़ाव देखे हैं। पिछले दिनों वह नागपुर में प्रगतिशील लोकतांत्रिक मंच द्वारा आयोजित ‘फासीवाद के बढ़ते कदम और प्रतिरोध की संभावना’ विषय पर आयोजित व्याख्यान माला में शिरकत करने आए हुए थे। इस अवसर पर उनसे गोपाल नायडू से हुई बातचीत प्रस्तुत है:
दुनिया के गहनतम जंगल, चार बच्चे और चालिस दिन
– प्रदीप पांडे यह घटना प्रकृति की विराटता के साथ दयालुता की बेमिसाल दास्तान है, जो हमें हर उस घड़ी में हिम्मत दे सकती है […]
भविष्य का अंधेरा
इस संपादकीय के लिखे जाने के बाद भी इस माह का एक दिन बाकी है। डर है कोई और अप्रिय समाचार न सुनने को मिले। […]
राष्ट्रवादियों के समय में औरतें
भारतीय कुश्ती संघ में यौन हिंसा के खिलाफ मुंह खोलने की हिम्मत जुटाने वाली एक लड़की नाबालिग है। कानूनी रूप से ऐसे मामलों में एफआईआर तो तुरंत होनी ही चाहिए, गिरफ्तारी भी 24 घण्टे के अंदर हो जानी चाहिए, लेकिन यह भी नहीं हुआ। इसके लिए महिला पहलवानों को धरने पर बैठना पड़ा है, उनका धरना 23 अप्रैल से जंतर-मंतर, दिल्ली में पर चल रहा है। इस बीच सरकार ने इस आंदोलन को तोडऩे के लिए कई हथकंडे अपनाए हैं पर उन्हें समर्थन देने वालों और कार्यक्रमों का दायरा बढ़ता जा रहा है।
कर्नाटक के संकेत और भविष्य की दिशा
केवल पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों के पढऩे से देशभक्त पैदा नहीं होते। यदि ऐसा होता तो भारत में स्वतंत्रता के लिए लडऩे वाला एक भी देशभक्त पैदा नहीं हुआ होता क्योंकि स्वतंत्रता आंदोलन की अगली पंक्ति के अधिकांश नेताओं की शिक्षा-दीक्षा विदेशों में हुई और जिन लोगों ने भारत में शिक्षा प्राप्त की उन्हें भी वह पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकें पढऩी पड़ीं, जो अंग्रेजों ने ही बनाई थीं। इन सबको पढ़कर भी देशभक्तों की फौज खड़ी हो गई। यह आश्चर्य की बात है!
भविष्य के लिए अच्छा लक्षण नहीं है ‘सेंगोल’
तमिल नाडु की सत्तारूढ़ पार्टी डीएमके – द्रविड़ मुनेत्र कषगम – के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री सी.एन. अन्नादुराई (1967-69) ने 24 अगस्त, 1947 को तमिल साप्ताहिक द्रविडऩाडु में अपनी प्रखर व्यंग्यात्मक शैली में विवादस्पद स्वर्ण आभूषित छड़ी, राजदंड या धर्मदंड ‘सेंगोल’ की पृष्ठभूमि में छिपे मूल वर्गीय हितों और भावी कुप्रभावों को लेकर एक बड़ा लेख लिखा था। लेख में द्रविड़ आंदोलन के नेता ने आधुनिक भारत के आर्किटेक्ट व प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के वैज्ञानिक मानस को झकझोरने वाली चेतावनियां भी दी हैं। तब के लिए ही नहीं, ये गंभीर चेतावनियां 21वीं सदी के भारत पर भी लागू होती हैं। दिवंगत नेता अन्नादुराई लेख में ब्राह्मण पुजारियों द्वारा प्रधानमंत्री नेहरू को सेंगोल दिए जाने पर हैरत भी जाहिर करते हैं…लेख के कुछ हिस्सों का तात्कालिक अनुवाद प्रस्तुत है।